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सर्विस टैक्स पर रोक को स्थगित करने का अर्थ इस व्यवस्था को मंजूरी नहीं: अदालत

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भाषा
Last Updated- April 12, 2023 | 8:00 PM IST

दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि खाने के बिल पर अपने आप सेवा शुल्क लगाने से रोकने वाले उसके पिछले आदेश पर स्थगन का अर्थ इस व्यवस्था को मंजूरी देना नहीं है।

अदालत ने कहा कि रेस्तरां ग्राहकों को इस फैसले को ऐसे नहीं दिखा सकते हैं, जिससे लगे कि सेवा शुल्क को मंजूरी दे दी गई है।

न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने यह भी कहा कि ‘सेवा शुल्क’ शब्द से ऐसा लगता है कि इसे सरकार का समर्थन है और उन्होंने याचिकाकर्ताओं से पूछा कि किसी भ्रम से बचने के लिए शब्द को ‘कर्मचारी प्रभार’ या ‘कर्मचारी कल्याण निधि’ जैसे नाम से बदलने में क्या उन्हें कोई आपत्ति है। वह केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) के चार जुलाई, 2022 के आदेश को चुनौती देने वाली दो रेस्तरां निकायों की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थीं।

न्यायाधीश ने याचिकाकर्ताओं – नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एनआरएआई) और फेडरेशन ऑफ होटल्स एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन – से कहा कि वे अपने सदस्यों की संख्या बताएं, जो अनिवार्य रूप में सेवा शुल्क लगाते हैं।

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने कहा कि कुछ रेस्तरां सेवा शुल्क लगाने को वैधता देने के लिए स्थगन आदेश की गलत व्याख्या और दुरुपयोग कर रहे हैं।

उच्च न्यायालय ने 20 जुलाई, 2022 को सेवा शुल्क पर प्रतिबंध लगाने के लिए सीसीपीए के दिशानिर्देश पर रोक लगा दी थी। अदालत ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि वे अपने सदस्यों का प्रतिशत बताएं, जो उपभोक्ताओं को यह बताना चाहते हैं कि सेवा शुल्क अनिवार्य नहीं है और ग्राहक अपनी मर्जी से योगदान कर सकते हैं। मामले की अगली सुनवाई 24 जुलाई को होगी।

First Published : April 12, 2023 | 8:00 PM IST