क्षमता बढ़ी, तो रिफाइनिंग मार्जिन कम

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 05, 2022 | 9:26 PM IST

रिफाइनिंग के मामले में दुनिया भर की कंपनियों की कमर टूटी जा रही है।


विस्तार से मुनाफे की सोच रही कंपनियों के सिर पर अब रिफाइनिंग मार्जिन कम होने की तलवार लटक गई है।वर्ष 2010 से पांच वर्षों तक दुनिया भर में वैश्विक रिफाइनिंग मार्जिन में कमी आ सकती है। क्षमता विस्तार पेट्रोलियम उत्पादों की मांग से अधिक होने के कारण ऐसा हो सकता है।


2000-01 से 2005-06 की अवधि के दौरान वैश्विक रिफाइनिंग क्षमता 20.5 करोड़ टन प्रति वर्ष (एमएमटीपीए) की बढ़ोतरी हुई है।तब से तकरीबन 700 एमएमटीपीए की अतिरिक्त क्षमता घोषित की जा चुकी है जिसमें से 370 एमएमटीपीए 2012 तक जुड़ जाने की संभावना है।


ब्रिटेन की ऊर्जा कंसल्टेंसी कंपनी केबीसी  के मुख्य कार्यकारी अधिकारी जॉर्ज ब्राइट ने कहा, ‘कम से कम 2015 तक क्षमता की मात्रा का प्रवाह रिफाइनिंग क्षमता की जरूरत से ज्यादा होने की संभावना है।’वैश्विक रिफाइनिंग क्षमता के लिहाज से भारत पांचवें नंबर पर है। वैश्विक रिफाइनिंग क्षमता में भारत की 3 प्रतिशत की भागीदारी है और यह तेल उत्पादों के बड़े निर्यातक के तौर पर उभर रहा है।


2011-12 तक भारत की रिफाइनिंग क्षमता 145.96 एमएमटीपीए से बढ़ कर 237.95 एमएमटीपीए हो जाने की संभावना है। 92 एमएमटीपीए की इस अतिरिक्त क्षमता में बड़ी भागीदारी भारत के निजी क्षेत्र के सबसे बड़े रिफाइनर रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड की होगी जो इस वर्ष जामनगर में 29 एमएमटीपीए की नई रिफाइनरी शुरू करेगी। ब्राइट का मानना है कि अधिशेष वैश्विक क्षमता असर अगले कुछ वर्षों में दिखेगी।


हालांकि उन्होंने रिफाइनिंग मार्जिन पर अतिरिक्त क्षमता से पड़ने वाले असर की मात्रा निर्धारित नहीं की है। भारत का सामान्य रिफाइनिंग मार्जिन मार्च में 304 रुपये प्रति बैरल था। कॉम्प्लेक्स रिफाइनिंग के लिए यह मार्जिन मार्च महीने में 420 रुपये प्रति बैरल था। ब्राइट ने कहा, ‘क्षमता में अधिक बढ़ोतरी की वजह से उद्योग के लिए उपयोग मौजूदा 95 प्रतिशत से घट कर 85 प्रतिशत रह जाने की संभावना है।


‘मुंबई के ब्रोकरेज असित सी. मेहता के मुताबिक भारत में पेट्रोलियम उत्पादों की मांग में सालाना 3.3 प्रतिशत का इजाफा होने की संभावना है वहीं आपूर्ति में 2006-07 से 2011-12 तक 7.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी की संभावना है। 2011-12 में यह सरप्लस 60.2 एमएमटी होगा। ब्रोकरेज का कहना है, ‘इस दशक की शुरुआत तक मार्जिन पर अतिरिक्त क्षमता का विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा।’


ईडलवाइस सिक्युरिटीज लिमिटेड के मुताबिक भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र की रिफाइनरी के लिए बिना आयात शुल्क के मार्जिन वित्तीय वर्ष 2001 और 2002 में 30 रुपये प्रति बैरल और 28 रुपये प्रति बैरल रहा।

First Published : April 15, 2008 | 2:43 AM IST