स्पाइसजेट और किंगफिशर के बहुप्रतीक्षित विलय पर ग्रहण लग गया है। पिछले कई दिनों से दोनों कंपनियों का विलय होने की खबरें आ रही थी।
विलय के बाद किंगफिशर-डेक्कन विमानन क्षेत्र की सबसे बड़ी कंपनी बन जाती। विशेषज्ञों के मुताबिक अगर ऐसा हो जाता तो विजय माल्या की कंपनी किंगफिशर पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ने की संभावना बढ़ जाती। विशेषज्ञों के मुताबिक विलय के मामलों पर सरकार की नियामक संस्था की कड़ी नजर के कारण भी इस विलय की संभावनाएं काफी कम ही थी।
इस साल स्पाइसजेट का घाटा दोगुना होकर लगभग 133 करोड़ रुपये हो गया है। इसमें से लगभग 123 करोड़ रुपये का घाटा कंपनी को मार्च के तिमाही में ही हुआ था। नागरिक उड्डयन मंत्रालय के जून के आंकड़ों के मुताबिक किंगफिशर-डेक्कन की बाजार में हिस्सेदारी लगभग 29 फीसदी थी। जबकि जेट-जेटलाइट की हिस्सेदारी 29.1 फीसदी ही थी। स्पाइसजेट के साथ विलय से किंगफिशर-डेक्कन-स्पाइसजेट की हिस्सेदारी 39.8 फीसदी हो जाती। किंगफिशर-डेक्कन की बाजार में हिस्सेदारी जेट-जेटलाइट से लगभग 10 फीसदी ज्यादा हो जाती।
इस विलय के साथ किंगफिशर के विमानों की संख्या एयरबस, एटीआर और बोइंग विमान समेत 98 हो जाती जोकि जेट के विमानों की संख्या के बराबर ही होती। लेकिन इसके बाद छोटी विमानन कंपनियों के लिए इस बाजार में टिकने की गुंजाइश काफी कम ही रह जाती।
विशेषज्ञों के मुताबिक, ‘स्पाइसजेट और किंगफिशर के विलय के बाद गो-एयर जैसी छोटी कंपनियों के पास इस बाजार में टिकने के लिए किसी और कंपनी के साथ साझेदारी करनी पड़ती या फिर इस बाजार से बाहर हो जाना पड़ता।’ किंगफिशर के अधिकारियों के मुताबिक कम कीमत में सेवाएं मुहैया कराकर इस बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाना ही इस विलय का मकसद था।