जगुआर-लैंड रोवर को भारत लाकर तहलका मचाने वाली कंपनी टाटा मोटर्स लिमिटेड दो खास वजहों से इस हफ्ते सुर्खियों में रही।
एक वजह कंपनी की शान में इजाफा करने वाली थी, तो दूसरी ने उसकी साख को कुछ धक्का लगाया। दरअसल लंबी जद्दोजहद के बाद इस हफ्ते टाटा मोटर्स ने फोर्ड कंपनी के इन दोनों ब्रांडों का अधिग्रहण पूरा कर ही लिया।
जाहिर है कि टाटा समूह के चेयरमैन रतन टाटा के लिए यह खासी राहत की बात रही होगी। लेकिन इसके अगले ही दिन कॉर्पोरेट साख तय करने वाली एजेंसी मूडीज इनवेस्टर सर्विस ने कंपनी की रेटिंग में अच्छी खासी कटौती कर दी। मूडीज ने कंपनी की रेटिंग बीए 1 से बीए 2 कर दी। इसकी वजह भी जगुआर-लैंड रोवर का अधिग्रहण ही था।
मूडीज ने साफ तौर यह कहा भी कि इस तरह के भारी भरकम अधिग्रहण को पूरा करना और उसके बाद वापस रफ्तार भरना खासा मुश्किल काम है। टाटा मोटर्स की वित्तीय तस्वीर इससे बिगड़ सकती है। लेकिन यह बात दीगर है कि मूडीज की नकारात्मक प्रतिक्रिया के बावजूद शेयर बाजारों में कंपनी के शेयरों में खास बदलाव नहीं आया।
बहरहाल, यह तय हो गया कि कंपनी के लिए जगुआर-लैंड रोवर की सवारी बहुत खुशनुमा नहीं है। वैसे टाटा को इस बात का अहसास उस समय भी था, जब उसने इन दोनों ब्रांडों पर निशाना साधा था। लेकिन कंपनी ने समय रहते 9,200 करोड़ रुपये से भी ज्यादा रकम के इस सौदे के लिए वित्तीय सहयोग जुटा लिया था।
मूडीज के गुणा-भाग को छोड़ दिया जाए, तो टाटा मोटर्स के लिए यह हफ्ता वाकई अच्छा रहा। जगुआ-लैंड रोवर सौदा पूरा होना ही कंपनी के लिए बहुत बड़ी खुशखबरी है। फोर्ड मोटर्स कंपनी के पास से इसके सभी अधिकार अब टाटा मोटर्स के पास आ गए हैं। कंपनी को इन दोनों ब्रांडों के साथ दुनिया भर में अपनी पहचान पुख्ता करने का पूरा भरोसा है।
हालांकि घरेलू मोर्चे पर कंपनी के लिए राह खासी पथरीली रही है। धातु और दूसरे कच्चे माल की बढ़ती लागत ने समूचे भारतीय वाहन उद्योग की रफ्तार पर ब्रेक लगाए हैं और टाटा मोटर्स भी इससे अछूती नहीं रही है। बीते वित्त वर्ष में कंपनी के बिक्री के आंकड़े और उसका बहीखाता साफ बयां करता है कि हालत वाकई अच्छी नहीं है।
टाटा मोटर्स ने वित्त वर्ष 2007-08 की चौथी तिमाही में 8749.52 करोड़ रुपये के वाहन बेचे। उससे पिछले वर्ष की इसी तिमाही में यह आंकड़ा केवल 8235.69 करोड़ रुपये था। समूचे वित्त वर्ष में भी कंपनी की बिक्री में लगभग 4.5 फीसद का इजाफा दर्ज किया गया, लेकिन मुनाफे के मामले में गंगा उलटी बहने लगी।
कंपनी ने चौथी तिमाही में 536.27 करोड़ रुपये का शुद्ध मुनाफा अर्जित किया, जबकि वित्त वर्ष 2006-07 की चौथी तिमाही में उसे 576.69 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ था। जाहिर है, लागत की चोट उसे जोर से लगी।लेकिन विश्लेषक मानते हैं कि आगे जाकर कंपनी इस चोट को सह लेगी। यह बात अलग है कि लागत का झटका इस साल भी जारी रहेगा, लेकिन मजूबत बुनियाद कंपनी को इससे उबारेगी।