भारतीय कंपनियों ने कार्बन-डाई-ऑक्साइड से वातावरण को हो रहे नुकसान से बचाने की तैयारियां शुरू कर दी हैं।
वातावरण की ओर हाथ बढ़ाने वालों में जेएसडब्ल्यू स्टील, आईटीसी, टाटा समूह, केपीएमजी जैसी कंपनियां शामिल हैं। इन कंपनियों ने अपनी कार्बन की मात्रा को कम करने का लक्ष्य तय किया है।
केपीएमजी के वातावरण संबंधी एक अध्ययन ‘इज इंडिया इंक प्रीपेयर्ड’ के उनसार भारतीय कंपनियां अब एक अनिश्चित भविष्य के लिए खुद को तैयार करने की शुरुआत कर चुकी हैं, जबकि कार्बन उत्सर्जन को कम करने का दुनियाभर में दबाव काफी बढ़ रहा है।
इस अध्ययन के लिए 70 कंपनियों में से 21 प्रतिशत या 14 कंपनियों ने कहा है कि उन्होंने कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए इस बारे में सोचना शुरू कर दिया है और उन्होंने अपने लिए लक्ष्य भी तय कर लिया है। अमेरिका और ब्रिटेन में परिचालन कार्यों वाली कंपनी केपीएमजी ने चार महीने पहले ही अपने कार्बन उत्सर्जन का अध्ययन किया है और कंपनी ने खुद से 2010 तक उत्सर्जन में 25 प्रतिशत की कमी लाने का लक्ष्य रखा है।
आईटीसी के निरंजन खत्री का कहना है कि भारतीय कंपनियां अब इसमें कटौती करना चाह रही हैं, क्योंकि उन पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दबाव बढ़ रहा है और साथ ही इससे लागत में भी कमी होती है। जहां तक आईटीसी की बात है, हमने अपने मकसद को हासिल कर लिया है। आईटीसी के कार्यकारी वाइस प्रेजीडेंट, कॉर्पोरेट (ईएचएस) सुभाष रस्तोगी का कहना है, ‘हमने 2002-03 में ही कार्बन उत्सर्जन पर नजर रखना शुरू कर दिया था।
आईटीसी के लिए कार्बन उत्सर्जन के आंकड़े सबसे पहले हमारी पर्यावरण, काम के दौरान स्वास्थ्य और सुरक्षा वार्षिक रिपोर्ट के दौरान प्रकाशित किए गए। हमारा पेड़ लगाओ कार्यक्रम वास्तव में इतनी कार्बन-डाई-ऑक्साइड पर्यावरण से खींच लेता है, जितनी हमारे कुल परिचालन कार्यों से निकलती है। किसी उत्पाद की प्रति इकाई के लिए जितनी कम से कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है, हमारे कारोबार में उसका उतना ही इस्तेमाल किया जाता है।’
टाटा स्टील ने 2008 के लिए अपने विजन में कहा था कि उसने 2012 तक कार्बन-डाई-ऑक्साइड के उत्सर्जन के लिए मौजूदा 1.8 टन प्रति तरल इस्पात टन से कम कर 1.5 टन प्रति तरल इस्पात टन करने का लक्ष्य रखा है। भारती एयरटेल, डॉ. रेड्डीज लैबोरेटरीज, एस्सार ऑयल, नेस्ले और हिन्दुस्तान लीवर, डीसीएम श्रीराम बारुका पावर और कायनेटिक इंजीनियरिंग उन कंपनियों में शुमार हैं, जिन्होंने कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए अपने कदम आगे बढ़ाए हैं।