खजाना तो भरा पूरा है मगर रास्ता नहीं आ रहा नजर

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 07, 2022 | 2:44 PM IST

अधिक ब्याज दरों का बड़ी कंपनियों की मौजूदा परियोजनाओं पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। लेकिन कंपनियों को फिलहाल नकदी के संकट का सामना नहीं करना पड़ रहा है।


इसकी एक प्रमुख वजह यह है कि पिछले तीन सालों में बड़े मुनाफे के जरिये कंपनियों ने अच्छी खासी नकदी जुटाई है। निजी क्षेत्र की 758 कंपनियों की 2007-2008 की सालाना रिपोर्ट के आंकड़ों में यह खुलासा किया गया है कि कंपनियों की संचयी नकदी पोजीशन 100,000 करोड़ रुपये से अधिक है जो 2006-07 में 75,000 करोड़ रुपये से काफी अधिक है।

इनमें से अधिकांश कंपनियों ने बैंकों और म्युचुअल फंडों की तरल योजनाओं में पैसा जमा कर रखा है। दूसरी उन 500 कंपनियों की सालाना रिपोर्टों का अनुमान अभी उपलब्ध नहीं है जिनका 2006-07 में कैश बैलेंस 1,50,000 करोड़ रुपये था। 2007-08 में कंपनियों को विस्तार और आधुनिकीकरण परियोजनाओं के लिए वित्त की समस्या का सामना नहीं करना पड़ा। 758 कंपनियों ने पिछले वित्तीय वर्ष में पूंजी विस्तार पर 105,000 करोड़ रुपये खर्च किए जो 2006-07 की तुलना में 40 फीसदी अधिक है।

पिछली आंकड़ों पर नजर दौड़ाने के बाद अब भविष्य के परिदृश्य पर भी नजर डालने की जरूरत है। क्या अब ब्याज दरों में इजाफा होने से कोष जुटाने के रास्तों के अभाव में कंपनियों को मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। इसके परिणाम के तौर पर नई परियोजनाओं को ठंडे बस्ते में डाला जा सकता है। उदाहरण के लिए, कंपनियों ने 2007-08 में इक्विटी और डेट इश्यू के जरिये 300,000 करोड़ रुपये जुटाए। प्राइम डाटा की वेबसाइट के आंकड़ों के मुताबिक इस कोष में से 55 फीसदी इक्विटी के जरिये, 38 फीसदी ऋण के निजी प्लेसमेंट के जरिये और 7 फीसदी रकम बॉन्ड जारी कर जुटाई गई थी।

लेकिन पूंजी बाजार में उदासी छाए रहने के वजह से वित्त के स्रोत में कमी आई। इक्विटी कीमतों में 8 जनवरी के स्तर से 40 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई थी। कंपनियों ने इस साल अब तक महज 1900 करोड़ रुपये जुटाए हैं जिसमें से अधिकांश रकम डेट इश्यू के जरिये जुटाई गई है। बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज की वेबसाइट पर जारी घोषणाओं से पता चलता है कि सात कंपनियों ने इक्विटी इश्यू के जरिये 8000 रुपये और राइट इश्यू के जरिये 7,000 करोड़ रुपये लगाए।

यूबीएस इन्वेस्टमेंट के एक अध्ययन में कहा गया है कि आसन्न निर्माण और निवेश मंदी का कारण मुनाफे की समस्या नहीं है, लेकिन बढ़ती लागत का कॉरपोरेट कैश फ्लो पर दबाव पड़ रहा है और इसलिए निवेश में विलंब हो रहा है। उच्च ब्याज दर एक ऐसा कारक है जिसने हलके और भारी उद्योगों को प्रभावित किया है। ये उद्योग तकरीबन 47 फीसदी ऋण कमर्शियल बैंकों से लेते हैं। इसी तरह उपभोक्ता कंपनियां 17 फीसदी ऋण इन बैंकों से लेती हैं। इसके अलावा वैश्विक तौर पर कच्चे माल की कीमतों में तेजी बढ़ोतरी से संकट गहराया है।

First Published : August 2, 2008 | 12:46 AM IST