भारत में खिलौना उद्योग अब कोई बच्चों का खेल नहीं रह गया है। परंपरागत तौर पर देश खिलौने के निर्यात के लिए नहीं जाना जाता है लेकिन मौजूदा वित्तीय वर्ष में भारत में खिलौने के निर्यात में बड़ा बदलाव दिखने की उम्मीद है। उद्योग के सूत्रों का कहना है कि चाइना प्लस वन पॉलिसी के तहत वैश्विक दिग्गज रिटेल कंपनी वॉलमार्ट इंक और टारगेट कॉरपोरेशन ने पहली बार खिलौनों के भारतीय ब्रांड मंगाने शुरू किए हैं।
दिलचस्प है कि वॉलमार्ट भारत से अपने आयात को तिगुना कर वर्ष 2027 तक 10 अरब डॉलर करना चाहती है और खिलौने में विविधता इस ओर बढ़ाया गया एक कदम है। यह सब ऐसे वक्त में हो रहा है जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट 2025 को पेश करते हुए एक राष्ट्रीय कार्य योजना की घोषणा की ताकि भारत को खिलौने के निर्माण के लिए एक वैश्विक केंद्र बनाया जा सके। वैश्विक खिलौना ब्रांड जैसे कि हैसब्रो, मैटल, स्पिन मास्टर और अर्ली लर्निंग सेंटर भारत में पहले से ही अनुबंध के जरिये विनिर्माण कर रहे हैं और यह पहली बार है जब घरेलू कंपनियों के उत्पाद जैसे कि फनस्कूल इंडिया की मांग वैश्विक रिटेल कंपनियां भी कर रही हैं। गौर करने की बात यह है कि ड्रीम प्लास्ट, माइक्रोप्लास्ट और इनकास जैसी इटली की दिग्गज कंपनियां भी भारत में अनुबंध आधारित विनिर्माण पर जोर दे रही हैं।
टायर निर्माता कंपनी एमआरएफ ऐंड एसोसिएट्स की स्वामित्व वाली कंपनी फनस्कूल इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) के ए शब्बीर कहते हैं, ‘हम बेहद मजबूती से अपने भारतीय ब्रांड को बना रहे हैं। अब दुनिया की सबसे बड़ी रिटेल कंपनी वॉलमार्ट हमारे पास सीधे आ रही है। इस वित्तीय वर्ष में उन्होंने हमारे तीन और चार आइटम को बड़ी संख्या में लिया है। अमेरिकी कंपनी टारगेट की टीम इस महीने हमारे कारखानों का दौरा करने आई। उन्होंने हमारे कारखानों में काफी दिलचस्पी दिखाई है। रानीपेट की हमारी फैक्टरी वियतनाम की कई इकाइयों की तुलना में बेहतर है।’ फनस्कूल ने बड़ी अंतररराष्ट्रीय खिलौना कंपनियों जैसे कि स्पिन मास्टर, अर्ली लर्निंग सेंटर, फ्लेयर और ड्रमंड पार्क गेम्स को आपूर्ति की है। उद्योग के खिलाड़ियों के मुताबिक जो कारक भारतीय कंपनियों के पक्ष में कारगर रहे हैं उनमें सरकारी नियमन जैसे कि भारत में खिलौने की बिक्री के लिए भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) के मानक की अनिवार्यता और बुनियादी सीमा शुल्क को 20 फीसदी से बढ़ाकर 70 फीसदी करना शामिल है। बीआईएस के नियमन से पहले खिलौने के लिए भारत की चीन पर निर्भरता करीब 94 फीसदी थी जो अब घटकर करीब 60 फीसदी हो गई है।
भारत में करीब 6,000 खिलौना विनिर्माण इकाइयों के संगठन, भारतीय खिलौना संघ (टीएआई) के अध्यक्ष अजय अग्रवाल कहते हैं, ‘भारत का खिलौना उद्योग सरकार की मदद से फल-फूल रहा है। पिछले कुछ वर्षों में न केवल गुणवत्ता में सुधार हुआ है बल्कि हम पैकेजिंग और कीमतों के लिहाज से भी प्रतिस्पर्द्धी बन रहे हैं। इसी वजह से वॉलमार्ट और टारगेट जैसी कंपनियों ने किसी तीसरे पक्ष पर निर्भर रहने के बजाय अब सीधे भारतीय विनिर्माताओं से चीजें मंगाना शुरू कर दिया है।’ इस उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सरकार अब ऐसे क्लस्टर की पेशकश कर रही है जिसका जोर पर्यावरण अनुकूल और टिकाऊ खिलौने पर है। अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, नीदरलैंड, डेनमार्क और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भारत से खिलौने का आयात करते हैं और देश के खिलौना निर्यात में इनका 70 फीसदी का योगदान है।
पिछले पांच वर्षों में भारत का खिलौना निर्यात वर्ष 2019-20 के 10.9 करोड़ डॉलर से बढ़कर 2023-24 तक 15.2 करोड़ डॉलर हो गया। इसी तरह सरकारी उपायों जैसे कि सीमा शुल्क में बढ़ोतरी और गुणवत्ता नियंत्रण उपायों के चलते आयात समान अवधि के दौरान 30.4 करोड़ डॉलर से घटकर 6.5 करोड़ डॉलर रह गया। भारत से निर्यात होने वाले बड़े उत्पादों में सॉफ्ट टॉय गुड़िया, स्पोर्ट टॉयज, बिल्डिंग डेवलपमेंट टॉयज, एजुकेशनल टॉयज(बोर्ड गेम्स और पजल), म्यूजिकल टॉयज और इलेक्ट्रॉनिक आइटम भी शामिल है।
आईएमएआरसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में खिलौना उद्योग की वैल्यू, वर्ष 2023 में 1.7 अरब डॉलर थी और इसके 2032 तक 4.4 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है।वर्ष 2024-2032 के दौरान इसमें 10.6 फीसदी की वृद्धि दर की उम्मीद है। 1 जनवरी, 2021 को भारत ने उन खिलौनों की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया था जिसे बीआईएस से सत्यापित नहीं किया गया है। वहीं दूसरी ओर घरेलू उद्योग को समर्थन देने के लिए, सरकार ने खिलौने पर बुनियादी सीमा शुल्क फरवरी 2020 में 20 फीसदी से बढ़ाकर 60 फीसदी कर दिया। मार्च 2023 में इसे बढ़ाकर 70 फीसदी कर दिया गया।