कहां है महंगाई… मॉल में तो लगातार लुट रहा है माल

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 07, 2022 | 11:43 AM IST

पच्चीस साल के दीपांजन भट्टाचार्य पिछले शनिवार को जब अपनी गर्लफ्रेंड दिशा के साथ घूमने निकले, तो उनके कदम दक्षिण दिल्ली के सेलेक्ट सिटी वॉक मॉल की ओर मुड़ गए।


बार्कलेज बैंक में काम करने वाले दीपांजन ने वहां मैंगो स्टोर से एक बिंदास शर्ट खरीदी, जिसकी कीमत 2,700 रुपये थी। ध्यान दीजिए, महज एक शर्ट और वह भी 2,700 रुपये की। तो फिर महंगाई कहां है। दीपांजन को न तो ब्याज की बढ़ती दरों की फिक्र है और न ही मुद्रास्फीति की दर या आर्थिक मंदी की आहट उनकी सेहत पर कोई असर डाल रही है।

उनका वेतन अभी 30 फीसद बढ़ा है, इसलिए उन्हें कुछ पैसा खर्च करने में कोई परेशानी नहीं है। दीपांजन ही नहीं, उनकी तरह दूसरे कई लोग यह साबित करने पर तुले हुए हैं कि महंगाई केवल गरीबों के लिए है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में फैले दर्जनों शॉपिंग मॉल्स में रोजाना हजारों लोगों का जमावड़ा होता है। जवां और बूढ़े, परिवार, गांव से आकर हैरत के साथ चकाचौंध देखते लोग और सेल में कम पैसे देकर बढ़िया सामान खरीदने की जुगाड़ में आए लोग यहां आसानी से दिख जाते हैं।

कार पार्किंग में आपको जगह नहीं मिलती और सिनेमा थिएटर ऐसे खचाखच भरते हैं कि टिकट भी आसानी से नसीब नहीं होते। शॉपिंग मॉल्स और उनके अंदर मौजूद स्टोर्स के मालिक इससे खुश हैं। जाहिर है कि जितने ज्यादा लोग आएंगे, बिक्री की संभावना भी उतनी ही ज्यादा होगी। सबसे ज्यादा भीड़ बार्गेन स्टोर्स पर लगती है, जहां मोलभाव की गुंजाइश होती है। इसके अलावा फूड कोर्ट और बच्चों के मनोरंजन से जुड़ी दुकानें भी भरी रहती हैं।

बिजनेस स्टैंडर्ड के संवाददाता ने शनिवार को पांच मॉल्स में दिन बिताया। ये मॉल्स थे, सेलेक्ट सिटी मॉल, सहारा मॉल, एमजीएफ मेट्रोपोलिटन, डीएलएफ सिटी सेंट और एंबिएंस मॉल। जो दिखा, उसका एक ही मतलब है – मुद्रास्फीति की दर सरकार और नीति नियंताओं को चाहे जितना परेशान करे, मध्यम और उच्च आय वाले तबके उससे बिल्कुल बेअसर हैं। इन मॉल्स में कुल मिलाकर 1800 के लगभग शोरूम्स और दुकानें हैं, जिनमें तकरीबन हर चीज मिलती है।

सेलेक्ट सिटी वॉक में रोजाना तकरीबन दो-ढाई हजार लोग आते हैं, जिनती तादाद शनिवार, रविवार को 6000 तक पहुंच जाती है। वहां रीबॉक स्टोर में सहायक प्रबंधक ओम सिंह का कहना है, ‘हमारे पास पैसे नहीं बल्कि ब्रांड की फिक्र करने वाले ग्राहक आते हैं। अगर उन्हें टी शर्ट या जूते पसंद आते हैं, तो कीमत कोई मायने नहीं रखती। हमारे ग्राहक समाज के ऊपरी तबके से हैं, जनपथ जाने वाले हमारे यहां नहीं आते।’ हालांकि सबके लिए हालात अच्छे नहीं हैं।

एमजीएफ मेट्रोपोलिटन मॉल में महिलाओं के परिधान बेचने वाले एक शोरूम को ऊंचे किराये की वजह से हर महीने तकरीबन 50,000 रुपये का नुकसान हो रहा है। वहां के एक कर्मचारी ने बताया कि रविवार को भी शोरूम में बमुश्किल 30-35 लोग आते हैं। आने वाले इन लोगों में से सिर्फ  आधे ही खरीदारी करते हैं। महीने में कारोबार सिर्फ डेढ़ लाख रुपये का है और ऐसे में किराया बहुत भारी पड़ रहा है। इन वजहों से कई स्टोर्स में ताले भी पड़े हैं। डीएलएफ सिटी सेंटर में सुरक्षाकर्मियों और कुछ कर्मचारिरयों के मुताबिक ग्राहकों की कमी की वजह से टस्कन वर्व, मायाज टॉय्ज स्टोर और दूसरे कई छोटे शोरूम बंद हो चुके हैं।

हां.. फूड कोर्ट का धंधा जोरों पर चल रहा है। ऐसे ही एक कोर्ट में पांच युवाओं ने पंजाबी खाना खाया और 1,000 रुपये का बिल आराम से चुका दिया। सेलेक्ट मॉल में अपने दोस्तों के साथ पांच घंटे तक सिर्फ मौजमस्ती करने आई हिमानी ने कहा, ‘यह जगह बेहद शानदार है। हमने टेरेस पर खाना खाया और वहां से नजारा बेहद खूबसूरत था।’

First Published : July 16, 2008 | 11:38 PM IST