नौकरियों की तलाश में उतरेंगे 9 करोड़ नए युवा

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 15, 2022 | 2:57 AM IST

भारत में 2029-30 तक गैर कृषि नौकरियों की तलाश में 9 करोड़ अतिरिक्त लोग निकलेंगे और भारत को इस चुनौती से निपटने के लिए हर साल 8 से 8.5 प्रतिशत वृद्धि की जरूरत होगी। मैकिंसी ग्लोबल इंस्टीट्यूट (एमजीआई) ने यह आंकड़े दिए हैं। इन आंकड़ों में 5.5 करोड़ महिलाओं को शामिल नहीं किया गया है, जो ऐतिहासिक रूप से कम प्रतिनिधित्व होने की स्थिति में आंशिक सुधार की कवायद में श्रमबल में शामिल हो सकती हैं।
‘इंडियाज टर्निंग प्वाइंट- एन इकोनॉमिक एजेंडा टु स्पर ग्रोथ ऐंड जॉब’ नाम से जारी रिपोर्ट में एमजीआई ने चेतावनी दी है कि अगर इसके लिए जरूरी प्रमुख सुधार नहीं किए गए तो इससे आर्थिक स्थिरता आ सकती है।
एमजीआई के अनुमान के मुताबिक मौजूदा जनसांख्यिकी से संकेत मिलते हैं कि कार्यबल में 6 करोड़ नए कामगार प्रवेश करेंगे और कृषि के काम से 3 करोड़ अतिरिक्त कामगार ज्यादा उत्पादक गैर कृृषि क्षेत्र में उतर सकते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड के बाद 2029-30 तक हर साल 1.2 करोड़ गैर कृषि नौकरियों की सालाना जरूरत होगी। यह 2012 और 2018 के बीच हर साल महज 40 लाख नौकरियों के सृजन की तुलना में बहुत ज्यादा है।
वृद्धि के तेज रफ्तार पर अर्थव्यवस्था को ले जाने के लिए एमजीआई ने 3 थीम का सुझाव दिया है- वैश्विक केंद्र की स्थापना, जो भारत और दुनिया में काम करे और विनिर्माण व कृषि निर्यात व डिजिटल सेवाओं पर इसका जोर हो। दूसरा- प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना, जिसमें अगली पीढ़ी के वित्तीय उत्पाद और उच्च कौशल के लॉजिस्टिक्स व पॉवर शामिल हैं और तीसरा रहने व काम करने की नई राह, जिसमें शेयरिंग इकोनॉमी और मॉर्डन रिटेल शामिल हैं।
इन तीन व्यापक थीम के भीतर एमजीआई ने 43 कारोबार की संभावनाएं देखी है इससे 2030 तक 2.5 लाख करोड़ डॉलर के आर्थिक मूल्य का सृजन किया जा सकता है और 2030 तक करीब 30 प्रतिशत गैर कृषि कार्यबल को समर्थन दिया जा सकता है।
इसके तहत विनिर्माण क्षेत्र बढ़े सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 2030 तक पांचवें हिस्से का योगदान कर सकता है, जबकि निर्र्माण क्षेत्र की गैर कृषि नौकरियों में 4 में से एक नौकरी की हिस्सेदारी कर सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि श्रम एवं ज्ञान आधारित सेवा क्षेत्र को भी पहले की तरह मजबूत वृद्धि दर बनाए रखने की जरूरत होगी।
यह पूछे जाने पर कि 8 से 8.5 प्रतिशत वृद्धि दर लगातार 8 साल तक बनाए रखना क्या काल्पनिक बात नहीं है, मैकिंसी के सीनियर पार्टनर शिरीष सांके ने कहा, ‘मुझे नहींं लगता कि यह काल्पनिक बात है। कुछ सुधारों की घोषणा की गई है और सरकार की ओर से कुछ की इच्छा दिखाई गई है। लेकिन 8 साल तक 8 से 8.5 प्रतिशत की वृद्धि दर बनाए रखने के लिए ज्यादा बड़े सुधारोंं की जरूरत है। यह इस पर निर्भर करेगा कि कितने सुधार होते हैं।’
विनिर्माण के बारे में एमजीआई ने विभिन्न सुधारों की बात की है, जिसमें स्थिर व घटता शुल्क शामिल है। यह पूछे जाने पर कि सरकार शुल्क बढ़ा रही है, एमजीआई की पार्टनर अनु मडगावकर ने कहा, ‘अगर आप एशिया के उभरते बाजारोंं से उच्च वृद्धि वाले विनिर्माण निर्यातकों को देखें तो हम पाते हैं कि स्थिर व घटती हुई शुल्क दरें हैं।’
अवसरों के लाभ उठाने के मोर्चे पर भारत को बड़ी फर्मों की संख्या बढ़ाकर तीन गुना करने की जरूरत है, जिनमें 1000 से ज्यादा मझोले आकार की और 10,000 छोटी बढ़ती कंपनियां हों। भारत में करीब 600 बड़ी फर्में हैं, जिनका राजस्व 50 करोड़ डॉलर से ज्यादा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ये औसत से 11 गुना ज्यादा उत्पादक हैं और कुल निर्यात में इनकी हिस्सेदारी 40 प्रतिशत से ज्यादा है।

First Published : August 26, 2020 | 11:30 PM IST