मंदी की मार बड़े कारोबारियों के साथ-साथ छोटे-मझोले कारोबारियों पर भी खूब पड़ी है।
हालांकि कुछ कारोबारियों ने कुशल रणनीति और व्यापार मॉडल में बदलाव लाकर इस आंच की तपिश से खुद को बचाने की पुरजोर की है।
ऐसे ही उद्यमियों की दास्तां और उनकी रणनीति बिजनेस स्टैंडर्ड किश्त-दर-किश्त पेश कर रहा है। पहली कड़ी में पेश है उत्तर प्रदेश के सिल्क वस्त्र निर्यातक सिनर्जी फैब्रीक्रॉफ्ट के मालिक रजत पाठक की दास्तां :
मंदी की आंच से सहमे उत्तर प्रदेश के छोटे और मझोले कारोबारियों ने अब उससे मुकाबले की ठान ली है। छोटे कारोबारियों को लगता है कि मंदी से कोई सरकारी मदद नहीं, बल्कि अपनी कोशिशों से बचा जा सकता है। सिनर्जी फैब्रीक्राफ्ट के मालिक रजत पाठक ने तो इससे निपटने के लिए पूरी कार्ययोजना ही तैयार कर ली है।
उनके मुताबिक, हल खुद निकालने से ही निकलेगा न कि सरकार की ओर देखने से। उन्होंने बताया कि व्यापार मेले में भाग लेने और अपने उत्पाद वहां प्रदर्शित करने का मतलब है कम से कम 5 से 10 लाख रुपए का खर्च, जबकि अब वहां से कारोबारी ऑर्डर बहुत कम ही मिल पाता है।
ऐसे में इस तरह के मेलों से बचने में ही भलाई है। सच तो यह है कि मंदी के इस दौर में जो खुद को बचा ले गया, वह बहुत आगे तक जाएगा।
रजत ने बीते साल 3 व्यापार मेलों में भाग लिया था, पर इस साल एक भी व्यापार मेले में हिस्सा नहीं लिया। रजत ने बताया कि डिजाइन डेवलमेंट पर होने वाले खर्च को फिलहाल रोका गया है।
सिनर्जी ने बीते तीन सालों से डिजाइन डेवलपमेंट पर सालाना 25 से 30 लाख रुपये का खर्च करती रही है, जिसे घटाकर 5 लाख रुपये कर दिया गया है। मैंने कोर टीम में केवल 2-3 लोगों को रखा है, बाकी के दस लोगों को निकाल दिया है। वैसे भी, इस समय ऑर्डर की कमी है, लिहाजा खर्च में कटौती ही बेहतर विकल्प है।
प्राथमिकता वाले कर्मचारियों के अलावा बाकी स्टाफ की छंटनी कर दी गई है। लखनऊ के चिकन कारोबारियों ने तो अब ठेके पर ही माल बनवाना चालू कर दिया है। इसके लिए लखनऊ के करीबी काकोरी गांव के कारीगरों का नाम फेहरिस्त में सबसे उपर है।
श्री पाठक का कहना है कि मंदी के दोर में छोटे और मझोले कारोबारियों के लिए विज्ञापन पर खर्च कम से कम करना ही बेहतर होगा। उनका कहना है कि अपने उत्पाद के प्रमोशन के लिए इंटरनेट का सहारा लेना ठीक है।
उनके मुताबिक इससे कम खर्च में ही उत्पादों का प्रमोशन हो जाएगा। ऑनलाइन प्रमोशन के जरिए हाल ही में मुंबई की दो फर्मों ने उनसे माल लेने के लिए संपर्क साधा है।
सिल्क निर्यातक का मानना है कि हर तरह का मुनाफा अखिरकार मुनाफा होता है। कई बैंकों में खाता रखने वाले रजत का कहना है कि यह समय है ।
जब किसी एक बैंक से बात करके वहीं पर चालू खाता रखा जाए। साथ ही बैंक से यह सुनिश्चित कर लिया जाय कि चालू खाते में जमा धन पर फिक्स डिपाजिट के बराबर ब्याज मिलता रहे।
मेरे पांच बैंकों में चालू खाता था, पर मंदी से बचने के उपायों के तहत मैंने कोटक बैंक से बात की और यह तय किया कि चालू खाते पर फिक्स डिपॉजिट के बराबर ब्याज मिले। छोटे उद्योगों के लिए सबसे जरूरी कदम है कि कम मुनाफे पर माल को बेचना।