रोटी, कपड़ा, मकान से आगे भी ध्यान

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 12, 2022 | 9:02 AM IST

आर्थिक समीक्षा में शुक्रवार को आवास, शौचालय, पीने के पानी और खाना पकाने के स्वच्छ ईंधन की गुणवत्ता मापने के लिए ‘बेयर नेसेसिटीज इंडेक्स ‘ (बीएनआई)   नामक एक संयुक्त सूचकांक शुरू किया गया है। बेयर नेसेसिटीज इंडेक्स मूल आवश्यकताओं की डिलिवरी की प्रगति को मापेगा।
रुडयार्ड किपलिंग की जंगल बुक को उद्धृत करते हुए समीक्षा में कहा गया है कि बेयर नेसेसिटीज इंडेक्स (मूल आवश्यकता सूचकांक) पर शहरी और ग्रामीण सहित भारत के सभी क्षेत्रों में अनावृत आवश्यकताओं की उपलब्धता में सुधार हुआ है।
समीक्षा में कहा गया है कि आवास, पानी, स्वच्छता, बिजली और खाना पकाने के स्वच्छ ईंधन की मूल आवश्यकताओं का उपभोग किसी घर के सभी सदस्यों द्वारा संयुक्त रूप से किया जाता है। इसलिए वे घर के सदस्य के जीवन से संबंध रखती हैं। इन तक पहुंच होने से किसी घर का समय बचता है जिसका उपयोग वे शिक्षा और सीखने जैसी सृजनात्मक गतिविधियों में कर सकते हैं।
समीक्षा में भारत में पेयजल, स्वच्छता और आवासीय स्थिति के संबंध में एनएसओ के दो दौर – 69 वें और 76वें के आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया। वर्ष 2012 से 2018 के बीच छह साल की अवधि के बीच मूल आवश्यकताओं की पहुंच में राज्यों की संख्या में इजाफा देखा गया है। सूचकांक में पाया गया कि मूल आवश्यकताओं तक पहुंच केरल, पंजाब, हरियाणा और गुजरात जैसे राज्यों में सबसे अधिक है, जबकि ओडिशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में यह सबसे कम है। मूल आवश्यकताओं तक अपनी पहुंच में सुधार दिखाने वाले राज्य हैं जम्मू और कश्मीर, पंजाब, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल, गोवा, मेघालय और अरुणाचल प्रदेश। समीक्षा में कहा गया है कि शहरी भारत में किसी भी राज्य ने वर्ष 2018 के दौरान बीएनआई का निम्नतम स्तर नहीं दिखाया है और वर्ष 2012 से सुधार दिखाने वाले राज्यों में शामिल हैं उत्तराखंड, जम्मू और कश्मीर, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, केरल, तमिलनाडु, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर। मूल आवश्यकताओं तक पहुंच का और महत्व बताते हुए समीक्षा में 1950 के दशक के दौरान भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ता पीतांबर पंत के ‘न्यूनतम आवश्यकताओं’ पर ध्यान दिए जाने के आह्वान को याद किया गया है। समीक्षा में कहा गया है कि इसमें हैरानी की कोई बात नहीं है कि अक्सर देश में सामाजिक-आर्थिक मुद्दों को प्रतिबिंबित करने वाले बॉलीवुड की वाकपटुता ‘रोटी, कपडा और मकान’ (1974) जैसी फिल्मों में मूल आवश्यकताओं को सामने लाई है।

First Published : January 29, 2021 | 11:50 PM IST