निजी और विदेशी बैंकों द्वारा कर्ज में कमी किए जाने तथा इक्विटी और विदेश से आने वाले फंडों के स्रोतों पर मंदी के बादल छाने से व्यावसायिक क्षेत्र पर बहुत बुरा असर पडा है।
फरवरी के अंत इस क्षेत्र को मिलने वाले वित्तीय संसाधनों में करीब 20 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। अनुमानों के अनुसार निजी बैंकों द्वारा व्यावसायिक क्षेत्रों को दिए जाने वाले कर्ज में साल-दर-साल के आधार पर गिरावट दर्ज की गई है और यह अक्टूबर 2008 में 28.5 फीसदी के स्तर से घटकर फरवरी के अंत तक 5 फीसदी रह गया।
इसी तरह विदेशी बैंकों ने इस क्षेत्र को ऋण देने की रफ्तार कम की है और इसी अवधि के दौरान यह दर 20.2 फीसदी से घटकर 8.1 फीसदी के स्तर पर आ गया। इसके ठीक उलट सरकारी बैंकों के कर्ज देने की रफ्तार में ज्यादा गिरावट नहीं आई और यह अक्टूबर से फरवरी की अवधि के दौरान 27.5 फीसदी के स्तर से घटकर 26 फीसदी के स्तर पर रहा।
इन आंकडों से जनवरी की तुलना में व्यावयायिक क्षेत्र को मिलने वाले कर्ज में और कमी आने का संकेत मिलता है। जनवरी में निजी बैंकों की कर्ज देने की रफ्तार साल-दर-साल के हिसाब से 11.8 फीसदी थी जबकि विदेशों बैंक के लिए यह आंकड़ा 18.9 फीसदी था।
भारतीय रिजर्व बैंक ने हाल ही में जो आंकड़े जारी किए हैं उसके अनुसार 2 जनवरी 2009 तक व्यावसायिक क्षेत्रों को मिलने वाला अनुमानित कर्ज 4,84,713 करोड रुपये था जबकि 4 जनवरी 2008 में यह राशि 4,99,484 करोड़ रुपये था। इस एक साल की अवधि में व्यवसायिक क्षेत्र को मिले रकम में 2.96 फीसदी तक की कमी आई है।
दूसरी तरफ, हालांकि ताजा आंकड़े अभी उपलब्ध नहीं हैं, जमाकर्ताओं ने सरकारी बैंकों में अपने पैसे को जमा करने में खासा उत्साह दिखाया है। रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार 2 जनवरी 2008 तक इसमें 24.2 फीसदी तक की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
अगर विदेशी बैंकों की बात करें तो लोगों की इन बैंकों में अपने रकम को जमा करने में दिलचस्पी कम हुई है और यह 12.1 फीसदी रही जबकि पिछले साल की समान अवधि के दौरान यह 34.1 फीसदी था।
इसी तरह निजी बैंकों साल-दर-साल के हिसाब से इस दर में कमी आई क्योंकि यह यह 26.9 फीसदी के मुकाबले घटकर मात्र 11.8 फीसदी तक रह गई। अमेरिका से शुरू हुई मंदी का भारत में बैंकिंग क्षेत्रों पर बहुत ही बुरा असर पडा है।