इस साल द्वितीयक बाजारों में उबाल ने प्राथमिक बाजारों को मजबूती दी है। नवंबर तक 50 से अधिक कंपनियों ने आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) के माध्यम से रिकॉर्ड 1.1 लाख करोड़ रुपये जुटाए हैं। हालांकि, केंद्र सरकार इस अवसर का लाभ उठाने में नाकाम रही। उसने अपने विनिवेश कोष को बढ़ाने का सुनहरा मौका गंवा दिया।
सार्वजनिक क्षेत्र के केवल दो उपक्रम (पीएसयू) ही अपना आईपीओ लाने में सफल रहे। इनके द्वारा कुल मिलाकर जुटाई गई रकम 5,5000 करोड़ रुपये से कम रही जो कि इस साल आईपीओ के जरिये जुटाई गई कुल रकम के 5 फीसदी से भी कम है। यदि आईपीओ लाए जाने के लिहाज से पांच सबसे अच्छे वर्षों पर विचार करें तो इस वर्ष ही पीएसयू आईपीओ की हिस्सेदारी सबसे कम रही है।
आईपीओ लाए जाने के लिहाज से इससे पहले सबसे अच्छा वर्ष 2017 था जिसमें कुल जुटाई गई रकम में पीएसयू आईपीओ की हिस्सेदारी एक तिहाई से अधिक थी। 2010 में इनकी हिस्सेदारी करीब आधी रही थी।
उद्योग से जुड़े कंपनियों का कहना है कि केंद्र सरकार में निजी क्षेत्र जैसी तत्परता का अभाव है जो अवसरों को भूनाने में तेज पहल करता है। एक निवेश बैंकर ने कहा, ‘केंद्र कभी भी निजी निजी कंपनियों की तरह फुर्तीला नहीं हो सकता है। वहां पर काफी लाल फीताशाही है। सकारात्मक धारणा और तरलता की अच्छी उपलब्धता को देखते हुए आदर्श रूप से एलआईसी का आईपीओ जिसकी घोषणा पिछले वर्ष की गई थी, इस वर्ष लाया जा चुका होता।’ उन्होंने कहा, ‘आईपीओ को भूल जाइए, इस वर्ष पीएसयू की ओर से कोई बड़ा आईपीओ दाखिल नहीं किया गया।’ सरकार मार्च से पहले एलआईसी का आईपीओ लाने का लक्ष्य लेकर चल रही है जो अनुमानित तौर पर 1 लाख करोड़ रुपये का होगा। एक ओर जहां अगले वर्ष भी प्राथमिक बाजारों के आईपीओ के लिए उत्पादक बने रहने की उम्मीद है वहीं तरलता के मोर्चे पर थोड़ी सुस्ती आ सकती है क्योंकि केंद्रीय बैंक महामारी के बाद के अपने प्रोत्साहन कार्यक्रमों में कमी ला रहे हैं।
विशेषज्ञ कहते हैं कि कुछ ही आईपीओ लाए जाने की पीछे प्रमुख वजह यह है कि अब ध्यान अन्य माध्यमों से पूंजी जुटाने की तरफ है।
इक्विटी कैपिटल मार्केट्स सेंट्रम में पार्टनर प्रांजल श्रीवास्तव ने कहा, ‘विनिवेश की रणनीति सामारिक बिक्रियों की तरफ चली गई है। कोई भी ऐसी असूचीबद्घ पीएसयू नहीं है जो बाजारों के लिए आकर्षक हो।’