यूरोप और अमेरिका की कंपनियां चीन पर निर्भरता कम कर रही हैं और अपने कारखानों को उभरते बाजारों में ले जाना चाहती हैं। इस वजह से, भारत उनके लिए सबसे पसंदीदा निवेश स्थल बन गया है। एक अध्ययन में पाया गया कि भारत में निवेश करने वाली 759 कंपनियों के 65% वरिष्ठ अधिकारी पिछले तीन सालों के मुकाबले 50% ज्यादा निवेश करने की सोच रहे हैं।
भारत, दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका से आगे निकल चुका है, जो निवेश के लिए आकर्षक विकल्प बने हुए हैं। ये आंकड़े बताते हैं कि भारत वैश्विक कंपनियों के लिए एक बड़ा उत्पादन केंद्र बनने की राह पर है।
कैपजेमिनी की एक रिपोर्ट का अनुमान है कि अगले तीन सालों में यूरोप और अमेरिकी कंपनियां उभरते बाजारों में 3.4 ट्रिलियन डॉलर तक का पुनः औद्योगिकीकरण निवेश करेंगी। इस रिपोर्ट के मुताबिक 58% से ज्यादा अधिकारी सप्लाई चेन के जोखिम को कम करने के लिए भारत जैसे देशों में निवेश की योजना बना रहे हैं।
ये कंपनियां अपने कारखाने, गोदाम और लॉजिस्टिक्स सेंटर जैसे अहम ठिकानों को उभरते बाजारों में ट्रांसफर करेंगी। ये सर्वे 1 बिलियन डॉलर से ज्यादा सालाना कमाई वाली कंपनियों के 1300 से ज्यादा अधिकारियों पर किया गया था।
कैपजेमिनी की रिपोर्ट बताती है कि एप्पल जैसे बड़ी कंपनियों के सप्लायर्स पिछले पांच सालों में चीन से बाहर निकलने की राह पर हैं और 16 अरब डॉलर से ज्यादा का निवेश कर चुके हैं। इनमें फॉक्सकॉन जैसी दिग्गज कंपनियां भी शामिल हैं, जिन्होंने अपनी कुछ फैक्ट्रियों को भारत में लगा लिया है।
जर्मनी की कार निर्माता बीएमडब्ल्यू ने भी भारत में निवेश बढ़ाकर “चीन प्लस” रणनीति अपनाई है। ये कंपनियां भारत के स्किल्ड कारीगरों और कारोबार के लिए अनुकूल माहौल का फायदा उठा रही हैं।
रिपोर्ट बताती है कि अमेरिका-चीन तनाव की वजह से भी कंपनियां चीन से बाहर निकल रहीं हैं और उम्मीद है कि अगले तीन सालों में 23 फीसदी मैन्युफैक्चरिंग का काम “फ्रेंडशोरिंग” हो जाएगा, यानी उन देशों में ट्रांसफर कर दिया जाएगा जिनसे अमेरिका के अच्छे संबंध हैं।
भारत की तरह दूसरे देश भी अब घरेलू मैन्युफैक्चरिंग पर जोर दे रहे हैं, जिससे भविष्य में आयात कम होगा और रिपोर्ट के मुताबिक अगले तीन सालों में ऑफशोरिंग घटकर 49 फीसदी पर पहुंच जाएगी।