अर्थशास्त्रियों ने चेतावनी दी है कि महामारी बढऩे से आर्थिक वृद्धि पर बुरा असर पड़ेगा और लॉकडाउन के कारण महंगाई दर में बढ़ोतरी होगी। भारतीय रिजर्व बैंक के लिए यह उहापोह की स्थिति होगी। एक तरफ उसे वृद्धि बरकरार रखने के लिए समावेशी नीति बनाए रखना है, वहीं दूसरी तरफ महंगाई दर को भी काबू में रखना है।
उपभोक्ता मूल्य पर आधारित (सीपीआई) महंगाई दर मार्च में 5.52 प्रतिशत बढ़ा है, जो फरवरी में 5.03 प्रतिशत था। वहीं प्रमुख महंगाई में 5.7 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। हालांकि कुछ महंगाई दर से जुड़े बॉन्ड प्रतिफल बढऩे शुरू हुए हैं। बहरहाल 10 साल के बॉन्ड का प्रतिफल नीचे और स्थिर बना हुआ है क्योंकि केंद्रीय बैंक 10 साल के सेग्मेंट को सिग्नल रेट के रूप में लक्षित कर रहा है।
सोमवार को 10 साल का बॉन्ड प्रतिफल 6.01 प्रतिशत पर बंद हुआ, जो पहले की बंदी के बराबर ही था। 15 अप्रैल को, जब दो दिन की सार्वजनिक छुट्टी के बाद बॉन्ड बाजार खुलेगा, केंद्रीय बैंक 25,000 करोड़ रुपये की अपनी पहली जी-सैप की खरीद कर रहा होगा, इसमें वह 10 साल के बॉन्ड को भी खरीदेगा।
एक बैंक के वरिष्ठ बॉन्ड डीलर ने नाम न दिए जाने की शर्त पर कहा, ‘रिजर्व बैंक की बॉन्ड खरीद के समर्थन के कारण 10 साल के सेग्मेंट का प्रतिफल कम है। लेकिन अन्य दीर्घावधि प्रतिफल उस स्तर पर थे, जिस स्तर पर वे पिछले वित्त वर्ष में थे। रिजर्व बैंक के जी-सैप पर बाजार वास्तव में प्रतिक्रिया नहीं कर रहा है, बल्कि 10 साल के सेग्मेंट में यह एक तकनीकी करेक्शन है।’
एक अवधारणा यह भी है कि रिजर्व बैंक समावेशी स्थिति बनाए रखने में संभवत: सक्षम नहीं होगा क्योंकि महंगाई बनी हुई है। लेकिन अब वृद्धि चिंता का प्रमुख विषय है, जैसा कि रिजर्व बैंक ने 7 अप्रैल की मौद्रिक नीति में कहा था। नैशनल स्टॉक एक्सचेंज के मुख्य अर्थशास्त्री तीर्थंकर पटनायक ने कहा, ‘बढ़ी हुई महंगाई दर से दरों में किसी कटौती की संभावना खत्म होगी, वहीं कोविड के कारण आई अनिश्चितता से वृद्धि के परिदृश्य पर भी असर पड़ेगा। ऐसे में पूरे साल तक रिजर्व बैंक समावेशी रुख बनाए रख सकता है।’
पटनायक ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, ‘संभवत: रिजर्व बैंक का ध्यान व्यवस्था में पर्याप्त नकदी बनाए रकने पर बना रहेगा, जिससे अर्थव्यवस्था को समर्थन लि सके और सरकार की उधारी कार्यक्रम को आसानी से लागू किया जाना सुनिश्चित हो सके और इसका वित्तीय स्थिरता पर असर न पड़े।’
संक्रमण में तेजी आने से रिजर्व बैंक का महंगाई का गणित बिगड़ सकता है और इसे देखते हुए कुछ अर्थशास्त्रियों ने पहले ही अपने अनुमान में संशोधन शुरू कर दिया है। डॉयचे बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री कौशिक दास ने कहा, ‘कोविड-19 के प्रसार के कारण देश के कुछ इलाकों में स्थानीय स्तर पर बंदी और नाइट कफ्र्यू की घोषणा की गई है। ऐसे में हमें यह चिंता है कि आने वाले महीनों में महंगाई उससे ज्यादा हो सकती है, जितना हमने अनुमान लगाया था।’
दास ने अपने नोट में लिखा है, ‘अप्रैल-नवंबर के बीच पक्ष वाले आधार का असर है, वहीं मांग और आपूर्ति में अंतर के कारण अनुमान से कहीं ज्यादा महंगाई बढ़ सकती है।’ डॉयचे बैंक ने सीपीआई महंगाई दर का अुमान बदलकर वित्त वर्ष 22 के लिए करीब 4.9 प्रतिशत कर दिया है, जबकि पहले 4.5 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान लगाया था। रिजर्व बैंक का अपना अनुमान महंगाई दर 5 प्रतिशत रहने का है।
ब्रोकरेज फर्म आनंद राठी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि उम्मीद से ज्यादा महंगाई दर और उम्मीद से कम औद्योगिक उत्पादन से स्टैगफ्लेशन का डर है। आनंद राठी रिसर्च रिपोर्ट में कहा गया है, ‘भारत व अन्य जगहों पर व्यापक आर्थिक नीतियों को प्राथमिकता दी जा रही है और वृद्धि को बल मिल रहा है। वृद्धि को लेकर लगातार चिंता बढऩे से रिजर्व बैंक खुदरा महंगाई की व्यापक तौर पर उपेक्षा करेगा, भले ही यह कुछ माह 6 प्रतिशत से ऊपर बनी रहे, जिसकी संभावना कम दिखती है।’