ठंडा तेल ठंडे न कर दे निवेश के अरमान

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 08, 2022 | 11:08 AM IST

कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट से इस क्षेत्र की कंपनियों को देश में निवेश से बहुत फायदा होता नहीं दिख रहा है। जानकारों के मुताबिक, वर्ष 2009 में भी तेल की कीमत 45 से 60 डॉलर प्रति बैरल रहने की उम्मीद है,


जिससे उन्हें निवेश से अच्छा रिटर्न मिलने की संभावना बहुत कम है। ऐसे में रिफाइनरी क्षेत्र में निवेश पर असर पड़ सकता है। यही नहीं, वैकल्पिक ईंधन क्षेत्र में भी निवेश प्रभावित हो सकता है।

तेल मंत्रालय के एक अधिकारी भी इसकी पुष्टि करते हुए कहते हैं कि कच्चे तेल की कम कीमत का मतलब है कि तेल उत्खनन कंपनियों को कम मुनाफा। साथ ही वित्तीय संकट की वजह से भी कंपनियों को फंड प्राप्त करने में समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

नई एक्सप्लोर लाइसेंसिंग नीति (नेल्प-7) के तहत सरकार को तेल और गैस खोज में करीब 1.5 अरब डॉलर निवेश की उम्मीद है। साथ ही अगले तीन सालों में नई रिफाइनरियों की स्थापना और मौजूदा संयंत्रों के रख-रखाव पर करीब 20 अरब डॉलर खर्च किया जा सकता है।

उल्लेखनीय है कि पिछले हफ्ते तेल की कीमतों में करीब 27 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई, जो 17 साल पहले हुए खाड़ी युद्ध के बाद सबसे बड़ी गिरावट है। तेल की कीमतों में आ रही गिरावट के कारण तेल उत्पादक  देशों के संगठन ओपेक ने उत्पादन में कटौती की घोषणा की है।

इसके मुताबिक, अगले साल जनवरी से प्रतिदिन करीब 24 लाख टन कम उत्पादन किया जाएगा। हालांकि ओपेक की घोषणा का असर भी तेल की कीमतों पर नहीं पड़ा और घोषणा करने के दो दिन के अंदर ही इसकी कीमतों में करीब 22 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई।

ओएनजीसी के चेयरमैन आर. एस. शर्मा ने भी पिछले दिनों एक साक्षात्कार में कहा था कि वर्ष 2009 में तेल की कीमतें 70 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती है। उन्होंने इस बात को भी स्वीकारा कि मांग में कमी आएगी।

ओपेक के मुताबिक, अगले साल तेल की रोजाना खपत में करीब 0.2 फीसदी की गिरावट आ सकती है। जबकि अमेरिकी ऊर्जा विभाग ने दिसंबर में कहा था कि अगले साल तेल की मांग में रोजाना 0.5 फीसदी की कमी आने की संभावना है।

दिल्ली स्थित तेल क्षेत्र के एक विशेषज्ञ ने बताया कि तेल की मौजूदा कीमतों और मांग को देखते हुए कहा जा सकता है कि इस क्षेत्र में निवेश कम ही होगा। उन्होंने कहा कि मांग कम हो, तो कोई भी कंपनी नई रिफाइनरी खोलने में निवेश क्यों करेगी।

इस बीच, इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन ने कहा है कि अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए कंपनी नई रिफाइनरी खोल सकती है, लेकिन यह तभी संभव है, जब नकदी की किल्लत दूर होगी।

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2008 में कच्चे तेल की कीमतों में करीब 63 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई, जबकि जुलाई माह में तेल कीमत 150 डॉलर के आस-पास पहुंच गई थी।

मुनाफे की गणित से गड़बड़ाया खेल

2009 में कच्चे तेल की कीमत 45 से 60 डॉलर प्रति बैरल रहने की उम्मीद

तेल क्षेत्र में निवेश पर भी पड़ेगा इसका असर

नई रिफाइनरियों की योजना भी जा सकती है ठंडे बस्ते में

First Published : December 25, 2008 | 11:58 PM IST