केंद्र सरकार प्रस्तावित ई-कॉमर्स नीति का दूसरा मसौदा जल्द जारी करने वाली है। कई सूत्रों ने मिली जानकारी के मुताबिक इस मसौदे में ग्राहकों को लुभाने के लिए घाटा उठाकर सामान बेचने पर सख्ती बढ़ाने और घरेलू कारोबारियों पर ध्यान देने पर जोर होगा।
अंतिम नीति के लिए अभी कोई अंतिम तिथि नहीं तय की गई है, लेकिन सूत्रों ने कहा कि उद्योग संवर्धन एवं आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआईआईटी) के सचिव गुरुप्रसाद महापात्र अपनी टीम के साथ अगले कुछ दिनों में समीक्षा बैठक करने वाले हैं, जिससे मसौदा नीति को अंतिम रूप दिया जा सके और इसे मंत्री के पास समीक्षा के लिए पेश किया जा सके।
उन्होंने कहा कि डीपीआईआईटी डेटा के स्थानीयकरण और गैर व्यक्तिगत डेटा पर अपनी सिफारिशें पेश करने पर विचार कर रहा है, जो संसद में पेश व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक 2019 से अलग होगा। एक अधिकारी ने कहा, ‘डेटा का स्थानीयकरण चिंता का बड़ा विषय बना हुआ है और इसके लिए सरकार के व्यापक मानकों के बावजूद इसे ई-कॉमर्स क्षेत्र के मुताबिक करना होगा।’
खुदरा कारोबारियों की मुख्य चिंता कीमतों को लेकर है, जिस पर खास ध्यान दिया जाने वाला है। सरकार ई-मार्केटप्लेस द्वारा दी जाने वाली छूट की सालाना समीक्षा की संभावना तलाश रही है। नीति के शुरुआती मसौदे में लुभावनी कीमत नीतियों पर सनसेट क्लॉज का प्रावधान किया गया था, जिसमें ‘जीरो पेमेंट ऑफर’, ‘फ्लैश सेल’ और ‘अनलिमिटेड ऑफर’ शामिल है। इसमें इन सभी गतिविधियों को परिभाषित करने और हर एक के लिए मानक तय करने की बात कही गई है, लेकिन कई अंतर मंत्रालयी सलाहों के बाद इस पर काम बहुत सुस्त रफ्तार से हो रहा है। अधिकारियों ने कहा कि नई नीति में निश्चित रूप से कीमतों को लेकर सीमा तय होगी और इसका उल्लंघन करने वालों पर जुर्माने का प्रावधान होगा। कीमतोंं को लेकर पहले सूचना देना भी अनिवार्य किया जा सकता है।
नई नीति में तमाम ई-कॉमर्स फर्मों के लिए मौजूदा बिजनेस मॉडल पर काम करना मुश्किल हो सकता है, जिन पर बाजार की गणित बिगाडऩे के आरोप लगते हैं। अहम बात है कि नए मसौदे में इन क्षेत्रों में विदेशी निवेश को प्रोत्साहन देने की बात नहीं की गई है, बल्कि छोटे खुदरा कारोबारियों को पुरस्कृत करने की बात की गई है, जो अपने सामान डिजिटल बिक्री के लिए रखते हैं। सूत्रों ने कहा कि सरकार एक ऐसी योजना पर काम करने को भी इच्छुक है, जिससे छोटे कारोबारियों पर असर कम हो सके और उनके कारोबार को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अलग किया जा सके। परिणामस्वरूप कॉन्फेडरेशन आफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के इसमें सभी आधिकारिक सलाह में हिस्सेदार बनाया जा सकता है, जिसमें अब तक सिर्फ ऑनलाइन कारोबारियों को शामिल किया गया है।