भारत की ऊर्जा खपत में शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को 2050 तक पूरा किया जा सकता है लेकिन यह तभी संभव है जब विद्युत क्षेत्र को चार गुना बढ़ाया जाए और उसमें 90 फीसदी अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी हो तथा कोयले के उपयोग को चरणबद्घ तरीके से समाप्त किया जाए। यह नया परिदृश्य आज एनर्जी ऐंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (टेरी) और शेल ने जारी किया। टेरी में एकीकृत आकलन और मॉडलिंग के निदेशक रितु माथुर ने कहा, ‘हमने यह जांचने का प्रयास किया है कि क्या ऊर्जा क्षेत्र को पूरी तरह से कार्बन उत्सर्जन से मुक्त करने के लिए तकनीकी समाधान उपलब्ध हैं। हम ऐसे क्षेत्रों को भी रेखांकित करते हैं जिनके पास पूर्ण कार्बनीकरण के लिए विकल्प नहीं हैं। और हम देखते हैं कि इनमें से प्रत्येक क्षेत्र 2050 तक शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।’
परिदृश्य का खाका सन् 2050 को ध्यान में रखकर दोबारा से खींचा गया है। 2050 तक पूरी तरह से शून्य उत्सर्जन (एनजेडई) ऊर्जा प्रणाली तक पहुंचने के लिए भारत को बड़े पैमाने पर स्वच्छ ऊर्जा तकनीकों को बहाल करने के लिए एक उपयुक्त नीति और नवाचार से संचालित संदर्भ की दरकार है। देश भर में अधिक विद्युतीकरण के लिए बड़े पैमाने पर सौर, पवन और पनबिजली को अधिक और पहले से तेज गति से स्थापित करने की आवश्यकता है। देश में तरल जैव इंधन और बायोगैस जैसे नए ईंधन का विकास करने की भी जरूरत है। इसके साथ ही इलेक्ट्रोलाइसिस की प्रकिया से हाइड्रोजन का उत्पादन करने की जरूरत है। ऊर्जा दक्षता को निश्चित तौर पर काफी हद तक बढ़ाया जाना चाहिए और तकनीक तथा प्रकृति आधारित उपायों से कार्बन को बाहर करने का शून्य उत्सर्जनों की ओर बढऩे में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी।
माथुर के मुताबिक, ‘आज की उपलब्ध तकनीकों के साथ 2050 तक शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए केवल ऊर्जा क्षेत्र के पास पर्याप्त विकल्प नहीं हैं।