पारदर्शिता और विवेकपूर्ण निर्णय पर जोर

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 12, 2022 | 9:02 AM IST

अनिश्चितता के माहौल में अधूरे अनुबंधों और विनियमों के कारण जरूरत से अधिक विनियमन होता है। विनियमों और विवेकपूर्ण निर्णय के बीच सामंजस्य न होने के कारण होने वाले नुकसान को दूर करते हुए आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि इस प्रकार के मामलों को पहले देखना और फिर दुनिया के सभी (अथवा अधिकतर) देशों के लिए उचित अनुबंध परिणामों के साथ उनका वर्णन करने की लागत काफी अधिक होती है।
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है, ‘इस प्रकार अधूरे अनुबंधों की वास्तविकता अधूरा विनियमन की ओर ले जाती है। इसके लिए कुछ विवेकपूर्ण निर्णय लेना अपरिहार्य हो जाता है।’
कुल मिलाकर एक जटिल एवं अनिश्चित माहौल में वास्तविक परिणाम अथवा परिस्थितियां विनियमन में परिकल्पित परिस्थितियों के बिल्कुल अनुरूप नहीं होती हैं। इसलिए पर्यवेक्षक को कुछ निर्णय खुद लेने होंगे। हालांकि व्यापक तौर पर लोगों का मानना है कि कहींं अधिक विस्तृत विनियमन से विवेकपूर्ण निर्णय की रफ्तार कम हो जाती है। इसके विपरीत, जटिल नियमों और विनियमों के कारण कई मायनों में विवेकपूर्ण निर्णय लिए जाते हैं।
एक जटिल एवं अनिश्चित दुनिया में विवेक का इस्तेमाल करना अपरिहार्य हो जाता है जहां जरूरत से अधिक विनियमन (सरल विनियमन नहीं) अत्यधिक एवं अपारदर्शी विवेक की ओर जाता है। सर्वेक्षण में अध्ययन का हवाला देते हुए कहा गया है कि विनियमन की मात्रा के साथ विवेक में भी वृद्धि होती है। इसमें कहा गया है कि सक्रिय पर्यवेक्षण और विवेक का कोई विकल्प नहीं है। समीक्षा में कहा गया है कि विशेष तौर पर पूर्व-विनियमन बाद के पर्यवेक्षण का विकल्प नहीं हो सकता है। वास्तव में, पूर्व-विनियमन की अधिकता से अपारदर्शी विवेक को बढ़ावा मिलता है जिससे बाद के पर्यवेक्षण की गुणवत्ता खराब होती है।
पर्यवेक्षकों को विवेकपूर्ण निर्णय लेने के दौरान जवाबदेह बनाए रखने के लिए आर्थिक समीक्षा में तीन तरीकों का उल्लेख किया गया है: पूर्व-जवाबदेही को मजबूत करना, निर्णय लेने की प्रक्रिया में पारदर्शिता को बढ़ाना और समाधान के बाद के ढांचे को लचीला बनाना।
आर्थिक समीक्षा में रूल्स ऐक्ट में पारदर्शिता लाने पर जोर दिया है ताकि नागरिकों द्वारा अक्सर सामना किए जाने वाले नियमों एवं विनियमों के बारे में सूचना में किसी भी प्रकार की विषमता को खत्म किया जा सके। शुरू में आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 इसे प्रस्तावित किया गया था। यह सुधार उन समस्याओं का समाधान करता है जो आमतौर पर नियमों बदलते रहते हैं और ऐसे में नागरिकों को तमाम परिपत्रों एवं सूचनाओं का ध्यान रखना पड़ता है। इस अधिनियम के तहत सभी विभागों के लिए अनिवार्य किया गया है कि वे लोगों से संबंधित नियमों को अपनी वेबसाइट पर जारी करें। अधिकारी उन नियमों को लागू करने में सक्षम नहीं होंगे जिनका स्पष्ट तौर पर वेबसाइट पर उल्लेख न किया गया हो। सभी कानूनों, नियमों और विनियमों को लगातार अद्यतन करना होगा और उन्हें एकीकृत तौर पर प्रस्तुत करना होगा। इससे पारदर्शिता आएगी और नियमों की समझ आसान होगी।
आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि अफसरशाह स्वाभाविक तौर पर विनियमों के साथ पर्यवेक्षण को स्थापित करेंगे और वे उपलब्ध होने पर भी विवेक का उपयोग नहीं करेंगे। यह सरकारी अनुबंधों के लिए एल1 यानी सबसे कम बोली लगाने वाले के चयन की प्रथा का हवाला देता है। समीक्षा में कहा गया है, ‘नियामकीय प्रणाली में समस्या के कारण एल1 व्यवस्था बनी रहती है। भविष्य में पूछताछ के डर से कोई भी निर्णय लेने वाला अपने विवेक का प्रयोग नहीं करना चाहता। यह मानदंड सरल और मात्रात्मक दिखाई दे सकता है लेकिन एक जटिल दुनिया में जहां पूर्व-खरीद प्रक्रिया में सब कुछ परिभाषित करना संभव नहीं हो सकता है, पर्याप्त पारदर्शिता एवं सक्रिय पर्यवेक्षण को बनाए रखने के साथ-साथ प्रशासकों को कुछ विवेकपूर्ण निर्णय लेने का अधिकर देना उचित है।
बहरहाल, इसका एक अन्य उदाहरण सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को सूचीबद्ध कराना है। कंपनियों को सूचबद्ध कराने के लिए लाए जाने वाले आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) में पहले दिन अधिक अभिदान मिलने या बड़ा लाभ होने पर विवेकपूर्ण निर्णय लिए जाने पर आमतौर पर सवाल उठाए जाते हैं। लेकिन गैर-सूचीबद्ध कंपनियों का बाजार मूल्य अज्ञात है। जबकि बेहतरीन मूल्यांकन तकनीक, प्रयास और संसाधनों का उपयोग किए जाने के बादवजूद उसका वास्तविक मूल्य निश्चित नहीं होता है। ऐसे में आमतौर पर देखा जाता है कि उस आईपीओ को मामूली अथवा जबरदस्त अभिदान मिलता है और उसकी कीमतों में गिरावट अथवा बढ़त दिखता है।

First Published : January 29, 2021 | 11:42 PM IST