डॉलर की बाढ़ पर नहीं बढ़ रहा रोजगार

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 15, 2022 | 1:41 AM IST

हाल के समय में विदेशी मुद्रा के बड़े प्रवाह से नई फैक्टरियों की स्थापना और अन्य निवेश में मदद के बजाय कर्ज में डूबे प्रवर्तकों को ज्यादा राहत मिलने की संभावना है।

ब्लूमबर्ग आंकड़े के विश्लेषण से पता चलता है कि अगस्त में किए गए करीब 67 प्रश्तिात सौदे परिसंपत्ति बिक्री के थे। हालांकि हमेशा ऐसा नहीं होता है (यह जुलाई में 1 प्रतिशत से भी कम था), इससे ऐसी नई क्षमता के निर्माण में विदेशी निवेश के लिए सीमित प्रोत्साहन दिख रहा है जिससे नई नौकरियां पैदा हो सकें।

आईडीएफसी ऐसेट मैनेजमेंट कंपनी के अर्थशास्त्री (फंड प्रबंधन) श्रीजित बालासुब्रमण्यन  ने कहा कि यह स्थिति वृहद आर्थिक परिवेश को देखते हुए नए कारखानों की स्थापना के लिहाज से नए निवेश के लिए उपयुक्त नहीं दिख रही है। भारत जैसे उभरते बाजार नए व्यवसायों की स्थापना के संदर्भ में जोखिमपूर्ण दिख रहे हैं।

यह मौजूदा परिवेश को देखते हुए चुनौतीपूर्ण हो सकता है। उन्होंने कहा, ‘लोग अक्सर जोखिम से बचने पर जोर देते हैं।’

कई ताजा सौदे कुछ हद तक कर्ज घटाने से जुड़े हुए हैं। इनमें सबसे बड़ा सौदा रिलायंस इंडस्ट्रीज द्वारा अपने जियो प्लेटफॉम्र्स में निवेशकों को आकर्षित करने से जुड़ा था। इमामी समूह के प्रवर्तकों नेकहा है कि वे कर्ज घटाने के लिए हिस्सेदारी बिक्री की संभावना तलाशेंगे। उन्होंने इससे पहले इमामी सीमेंट को नुवोको कॉरपोरेशन के हाथों बेचा था।

विदेशी पूंजी शेयर बाजार में भी बढ़ी है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) अगस्त में 47,080 करोड़ रुपये के शुद्घ खरीदार थे।

विदेशी पूंजी के इस प्रवाह ने मुद्रा प्रबंधन ज्यादा कठिन बना दिया है। मुद्रा डीलरों का कहना है कि डॉलर में प्रवाह को देखते हुए, रुपया आसानी से 60 (प्रति डॉलर) का आंकड़ा छू सकता है, बशर्ते कि आरबीआई ने हस्तक्षेप नहीं किया होता।

भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अगस्त 2019 में 428 अरब डॉलर था। केंद्रीय बैंक द्वारा आक्रामक तौर पर डॉलर खरीदारी की वजह से यह आंकड़ा 3 सितंबर तक बढ़कर 542 अरब डॉलर पर पहुंच गया। यह 116 अरब डॉलर की वृद्घि है। इसके विपरीत, विदेशी मुद्रा भंडार में पिछली 100 अरब डॉलर की वृद्घि में चार साल (जनवरी 2015 से अगस्त 2019 तक) से ज्यादा का समय लगा था।

हालांकि केंद्रीय बैंक ने संकेत दिया है कि वह आयात (मुख्य तौर पर सस्ते कच्चे तेल आयात) संबंधित मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए वह रुपये को मजबूत बनाए जाने के पक्ष में हो सकता है।

आरबीआई ने हाल में कहा, ‘रुपये में ताजा वृद्घि आयात संबंधित मुद्रास्फीति दबाव को नियंत्रित करने की दिशा में कारगार साबित हो रही है।’ अगले दिन 1 सितंबर को रुपया 1.03 प्रतिशत बढ़कर 72.87 प्रति डॉलर पर बंद हुआ। 16 सितंबर को यह कमजोर होकर 73.5 पर था।

542 अरब डॉलर के मौजूदा स्तर पर, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार करीब 14 महीने के आयात को कवर करने के लिए पर्याप्त है।

एसबीआई के लिए मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष के अनुसार, जहां बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार एक्सचेंज दर में उतार-चढ़ाव के खिलाफ सुरक्षा के तौर पर काम करता है, वहीं यह वित्तीय एकीकरण, एक्सचेंज दर स्थिरता, मौद्रिक नीति स्वायत्तता और वित्तीय स्थायित्व की नीति का परिणाम है।

कुछ प्रभाव वित्त वर्ष 2020 के लिए सालाना खातों में पहले ही दिख चुका है। आरबीआई परिसंपत्तियों का सालाना प्रतिफल वित्त वर्ष 2020 में महज 2 प्रतिशत रहा, जो वित्त वर्ष 2019 के 2.6 प्रतिशत से कम है। उसकी रुपये में परिसंपत्तियों पर ब्याज प्रतिफल एक साल पहले के 4.6 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2018 के 4 प्रतिशत से घटकर वित्त वर्ष 2020 में 3.4 प्रतिशत रह गया।

First Published : September 18, 2020 | 1:29 AM IST