लौह और इस्पात उत्पादों पर लग रहे निर्यात शुल्क और मूल्य वर्द्धित शुल्क को इस उद्योग में हो रहे निवेश के रास्ते में रुकावट माना जा रहा है।
वित्त मंत्री पी चिदंबरम को सौंपे गए ज्ञापन में वाणिज्य एवं उद्योग मंडल फिक्की ने इस्पात और इसके उत्पादों पर लग रहे निर्यात शुल्क को हटाने का आग्रह किया है। संगठन का मानना है कि अगर यह कदम नहीं उठाया गया तो एक लाख करोड़ रुपये के इस्पात बाजार में निवेश प्रभावित हो सकता है।
वैसे भी अप्रैल-मार्च 2007-08 में इस्पात की उत्पादन क्षमता में महज 5.1 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। इसी अवधि के लिए पिछले वित्तीय वर्ष में यह बढ़ोतरी 13.1 प्रतिशत थी। इस्पात, टयूब और पाइप के मूल्यवर्द्धित शुल्क में भी आए दिनों में बढोतरी हो रही है।
इस्पात के ब्लैक पाइप और गैल्वनीकृत पाइप के मूल्यवर्द्धित शुल्क में क्रमश: 100 डॉलर प्रति टन और 250 डॉलर प्रति टन का इजाफा किया गया है। ऐसे में इस तरह के मानक के परिणाम इस उद्योग के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं। स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड की एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इन शुल्कों से लाभ मार्जिन तो घट ही जाता है।
इसके बावजूद निर्माण लागत और कच्चे माल की बढ़ती हुई कीमतों से भी कंपनी के राजस्व पर असर पड़ता है। इन बढ़ोतरी के बावजूद मूल्य वर्द्धित शुल्क और निर्यात शुल्क की वजह से कंपनियों के लाभ पर असर पड़ता है। भारत में इस्पात और लौह उत्पाद के निर्यात की विकास दर पिछले साल की तुलना में अप्रैल-दिसंबर 2007 में -0.78 प्रतिशत रहा है, जबकि इसी अवधि में इसके आयात में 43 प्रतिशत की बढोतरी हुई है।