अर्थव्यवस्था

भारत के लिए वैश्विक मूल्य श्रृंखला की रणनीति

नीति आयोग वैश्विक मूल्य आपूर्ति (जीवीसी) में भारत की पैठ जमाने और वैश्विक विनिर्माण में इसकी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए रणनीति बना रहा है

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सुरजीत दास गुप्ता   
Last Updated- December 25, 2023 | 10:26 AM IST

नीति आयोग वैश्विक मूल्य आपूर्ति (जीवीसी) में भारत की पैठ जमाने और वैश्विक विनिर्माण में इसकी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए रणनीति बना रहा है। इसके लिए उसने प्राथमिकता वाले दो क्षेत्र वाहन और इलेक्ट्रॉनिक्स पहचाने हैं, जो उसके मुताबिक न केवल दबदबे वाले क्षेत्र हैं बल्कि भारत इनमें गहरी पैठ भी बना सकता है।

जीवीसी अंतरराष्ट्रीय उत्पादन साझेदारी है, जिसमें किसी उत्पाद के विचार से लेकर अंतिम उत्पादन तक की गतिविधियां कई कंपनियों के बीच बंटी होती हैं और कई देशों के कामगार इन्हें अंजाम देते हैं (जैसे ऐपल इंक के आईफोन बनते हैं)। आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) के मुताबिक 70 फीसदी वैश्विक व्यापार जीवीसी के जरिये आपस में जुड़ा है। जीवीसी के कारण देशों और उनकी कंपनियों को अपनी बढ़त का इस्तेमाल करने और मूल्य श्रृंखला के निर्धारित क्षेत्रों में विशेषज्ञता हासिल करने का मौका मिलता है। लेकिन एशियाई विकास बैंक (एडीबी) के अनुसार वैश्विक जीवीसी निर्यात में भारत की हिस्सेदारी केवल 1.5 फीसदी है।

कुछ ही दिन पहले संबंधित पक्षों (कंपनियों, सीआईआई और अन्य उद्योग संगठनों तथा राज्य सरकारों) के साथ हुई कार्यशाला के लिए तैयार कॉन्सेप्ट नोट में नीति आयोग ने वाहनों की वैश्विक मूल्य श्रृंखला में भारत की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए चार बिंदु वाली रणनीति बताई है। आयोग के अधिकारियों का कहना है कि वाहन कलपुर्जों की वैश्विक मूल्य श्रृंखला करीब 700 अरब डॉलर की है, जिसमें 20 अरब डॉलर के साथ भारत की हिस्सेदारी करीब 3 फीसदी है। 650 अरब डॉलर की पेट्रोल-डीजल इंजन जीवीसी में भी भारत का करीब 3 फीसदी योगदान है, जिसमें ज्यादातर ड्राइव ट्रांसमिशन और स्टीयरिंग इंजन के पुर्जे निर्यात होते हैं।

लेकिन इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए सेल को हटाने के बाद बची वैश्विक मूल्य श्रृंखला में भारत की हिस्सेदारी 1 फीसदी से भी कम है और वह भी ई-मोटर के निर्यात तक सीमित है। अलबत्ता टियर 1 आपूर्तिकर्ताओं और वाहन निर्माताओं के वैश्विक आपूर्ति केंद्रों की असंगठित भागीदारी वाहन की कीमत में खासी हिस्सेदारी रखती है।

रणनीति समझाते हुए कॉन्सेप्ट नोट कहता है कि सबसे पहले सभी पक्षों को उन सही श्रेणियों तथा उप श्रेणियों में योगदान दोगुना करने के लिए मिलकर जोर लगाना होगा, जिनमें आकर्षक मौका है और भारत ‘कुदरती तौर पर आगे’ रह सकता है। उसके बाद लागत के मामले में होड़ करने तथा उभरते हुए मौकों का फायदा उठाने के लिए उद्योग एवं शिक्षा जगत की भागीदारी इस्तेमाल करनी होगी।

तीसरे बिंदु के तहत कौशल विकास कार्यक्रमों और इनक्यूबेटर कार्यक्रमों के जरिये प्रतिभाएं तैयार करने तथा प्लग ऐंड प्ले के जरिये मजबूत बुनियादी ढांचा बनाने पर जोर देना होगा ताकि वैश्विक कसौटी पर खरी उतरने वाली बुनियादी क्षमताएं तैयार हो सकें। रणनीति के चौथे बिंदु के रूप में सरकार को कारोबारी सुगमता बढ़ाने, हरित तकनीक को बढ़ावा देने एवं व्यापार समझौते करने के लिए पहल करनी होंगी।

इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र के लिए चार बिंदुओं की रणनीति पर बात चल रही है। इसमें सरकार से पीएलआई जैसा नीतिगत राजकोषीय समर्थन बढ़ाने, वित्तीय सहायता देने और लागत के मामले में आ रही दिक्कतें दूर करने की अपेक्षा की गई है। दूसरे बिंदु के तहत देसी और विदेशी बाजारों में बड़े दांव लगाने के लिए वैश्विक फर्मों (जैसे ऐपल और सैमसंग) से अधिक जोर लगाने की उम्मीद की गई है। तीसरा, असेंबलिंग का आकार बढ़ाकर स्थानीयकरण की ओर बढ़ा जाए ताकि स्थानीय सब असेंबलियों यानी उत्पादन इकाइयों के लिए अधिक मांक उत्पन्न हो। चौथा और अंतिम बिंदु मूल्यवर्द्धन बढ़ाना है, जिसके लिए उत्पाद के डिजाइन और विकास के लिए भारतीय आपूर्तिकर्ताओं को क्षमताएं उपलब्ध कराई जाएं।

इस रणनीति का कारण बताते हुए पेपर में कहा गया है कि भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स बाजार वित्त वर्ष 2022-23 में 155 अरब डॉलर का रहा था और सरकारी मदद एवं प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में वृद्धि के कारण इसमें सालाना 15 फीसदी की चक्रवृद्धि की उम्मीद है। पिछले वित्त वर्ष में भारत ने 24 अरब डॉलर का इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात किया था, जो 2025-26 तक पांच गुना होकर 120 अरब डॉलर पर पहुंच सकता है। पिछले दो साल में इलेक्ट्रॉनिक्स असेंबली में खासी सफलता के बावजूद पुर्जों तथा सेमीकंडक्टर में आयात पर काफी निर्भरता है, जिसे दूर करने की जरूरत है।

First Published : December 25, 2023 | 10:26 AM IST