संरक्षणवादी रुख अपना सकती है सरकार

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 12, 2022 | 10:01 AM IST

देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार बजट में और अधिक संरक्षणवादी रुख अख्तियार कर सकती है। वहीं विशेषज्ञों ने चेताया है कि आगामी बजट में सीमा शुल्क में वृद्घि जैसे कदम उठाकर आत्मकेंद्रित होने के बजाय उसे बुनियादी ढांचे को मजबूत करना चाहिए जिससे घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा मिले।
इन दिनों सरकार आगामी बजट की तैयारियों में जुटी है जिसको लेकर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का कहना है कि यह पहले के मुकाबले सबसे अलग बजट होगा। ऐसे में संदेह हो रहा है कि सरकार घरेलू उद्योगों को संरक्षित करने, स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए पहले की तरह शुल्कों में और अधिक वृद्घि कर सकती है और इसके साथ ही अपने खजाने को मजबूत कर सकती है क्योंकि कोविड-19 के कारण उसके राजस्वों पर असर पड़ा है।
उद्योग संगठन सीआईआई ने वित्त मंत्रालय को दिए आपने ज्ञापन में अगले तीन वर्ष में प्रतिस्पर्धी आयात शुल्कों के लिए श्रेणीकृत रोडमैप का सुझाव दिया। उसने इनपुट या कच्चे मालों के लिए 0 से 2.5 फीसदी का न्यूनतम स्लैब, अंतिम रूप से तैयार उत्पादों के लिए 5-7.5 फीसदी का उच्चतम स्लैब और बीच की श्रेणी में आने वाले उत्पादों के लिए 2.5 से 5 फीसदी का स्लैब रखने की सिफारिश की है। सीआईआई के एक प्रवक्ता ने कहा, ‘उद्योग को संरक्षित करने के लिए जरूरी नहीं है कि हर बार संरक्षणवादी उपाय करने पड़ते हैं। भारत काफी संया में दूसरे देशों से कच्चे माल का आयात करता है जिससे अंतिम उत्पादों का विनिर्माण प्रतिस्पर्धी होता है।’
प्रवक्ता ने कहा कि उलटे पुलटे शुल्कों की भरमार है जिससे उद्योग जगत प्रभावित हो रहा है। इनवर्टेड ड्यूटी से आशय है कि उत्पाद के मुकाबले कच्चे माल पर अधिक शुल्क या कर लगाना जिससे पूंजी अटकने की स्थिति आ जाती है।
उद्योग संगठन के प्रवक्ता ने कहा, ‘तब हम क्षमता निर्माण पर ध्यान देना शुरू कर सकते हैं जो कि चरणबद्घ तरीके से हो सकता है।’
विगत पांच वर्षों में सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक्स, रसायनों और फुटवियर सहित विभिन्न उत्पादों पर सीमा शुल्क बढ़ाया है। कोविड-19 महामारी के कारण परिचालन और वित्त दोनों स्तर से कारोबार पर असर पड़ रहा है और भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार की ओर से बढ़ चढ़ कर किए जा रहे प्रयासों से लगता है कि आगामी बजट में शुल्कों में और अधिक इजाफा किया जा सकता है।
सरकार की ओर से और अधिक सरंक्षणवादी कदम उठाने को लेकर चेताते हुए परामर्श कंपनी एकेएम ग्लोबल में कर पार्टनर अमित माहेश्वरी ने कहा, ‘कोविड और बढ़ते व्यापार घाटा के कारण जीडीपी में नकारात्मक वृद्घि को देखते हुए हमें प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की आवश्यकता है ताकि अधिक नौकरी, अधिक प्रतिस्पर्धी बाजार और अर्थव्यवस्था को सुनिश्चित किया जा सके। अर्थव्यवस्था वैश्विक आपूर्ति शृंखला का हिस्सा है। इनके कारण बेहतर वृद्घि का मार्ग प्रशस्त होगा।’
ग्रांट थॉर्नटॉन भारत एलएलपी में पार्टनर कृष्ण अरोड़ा ने कहा कि एक ओर जहां सरकार घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए दीर्घकालिक उद्देश्यों को हासिल करने के लिए आयात शुल्कों में इजाफा कर रही है तो दूसरी ओर ये बुनियादी ढांचा और दूसरे कर लाभों जैसी सहूलियतों को देने केलिए अनुकूल होने चाहिए।
ईवाई इंडिया में पार्टनर अभिषेक जैन ने कहा कि भले ही शुल्क में वृद्घि जैसे उपाय वैश्विक व्यापार के खिलाफ जाते हैं लेकिन बहुत सारे देशों ने घरेलू उद्योग को संरक्षित करने और प्रोत्साहित करने के लिए ऐसे उपाय किए हैं। भारत में शुल्कों में वृद्घि देश में विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए किया जा रहा है।
जैन ने कहा कि सीमा शुल्क में बदलाव की उमीद उन क्षेत्रों में भी की जा सकती है जहां सरकार स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देना चाहती है। उन्होंने कहा कि आयातों पर उच्च सीमा शुल्क लगाकर और स्थानीय उत्पादन के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना जैसे प्रोत्साहन से स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा मिलने की उमीद है।  
ग्रांट थॉर्नटॉन भारत एलएलपी के अरोड़ा ने कहा कि पीएलआई योजना जो घरेलू विनिर्माताओं को प्रोत्साहन देती है, की तरह ही छोटे कारोबारों के लिए लाभकारी योजनाएं होनी चाहिए।  

First Published : January 11, 2021 | 12:08 AM IST