गरीबी रेखा से नीचे जाएगी आधी आबादी!

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 15, 2022 | 3:12 AM IST

विश्व बैंक ने आज कहा कि कोविड-19 के मामले बढऩे और क्षेत्रीय स्तर पर लॉकडाउन के कारण भारत की अर्थव्यवस्था में 3.2 प्रतिशत से ज्यादा संकुचन आ सकता है, जिसका अनुमान पहले लगाया गया था। साथ ही चीन से निकलने की फिराक में लगी फर्मों को आकर्षित करने के लिए शुल्क नीति के इस्तेमाल को लेकर भी सावधानी बरतने की सलाह दी है।
अपनी रिपोर्ट इंडिया डेवलपमेंट अपडेट 2020 में विश्व बैंक ने कर्ज के जोखिम को लेकर चेतावनी दी है।  बैंक ने कहा है कि अर्थव्यवस्था सुस्त होने पर फर्मों व परिवारों को ब्याज और पुनर्भुगतान की बाध्यताएं पूरी करने में दिक्कत आ सकती है। इसमें सुझाव दिया गया है कि बाजार की स्थिति में सुधार होने पर कुछ सरकारी बैंकों के पूर्ण निजीकरण और निजी पूंजी डालने सहित कुछ अन्य कदम उठाए जाने चाहिए।
बैंक ने कहा, ‘हमारे पुनरीक्षित अनुमानों में, जो अक्टूबर 2020 में उपलब्ध होगा, हम अर्थव्यवस्था में तेज संकुचन का अनुमान पेश कर सकते हैं।’
इसमें कहा गया है कि तब तक नई सूचनाएं भी शामिल हो जाएंगी। खासकर कोरोनावायरस के रोज के आंकड़े बढ़ रहे हैं और इसके कारण कुछ राज्यों और जिलों में फिर से लॉकडाउन किया जा रहा है। साथ ही सूचकों से पता चलता है कि अर्थव्यवस्था अभी आधार स्तर से ऊपर नहीं पहुंची है।  वित्त वर्ष 2020-21 में भारत की अर्थव्यवस्था में संकुचन को लेकर विभिन्न एजेंसियों व अर्थशास्त्रियों ने अलग अलग आंकड़े पेश किए हैं। पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद प्रणव सेन ने 12.5 प्रतिशत, इक्रा ने 9.5 प्रतिशत, इंडिया रेटिंग ने 5.3 प्रतिशत संकुचन का अनुमान लगाया है।
बैंक जब अक्टूबर में भारत की अर्थव्यवस्था के पुनरीक्षित अनुमान पेश करेगा, जीडीपी के पहली तिमाही के आधिकारिक आंकड़े मौजूद होंगे, लेकिन दूसरी तिमाही के सभी प्रमुख संकेतक जारी नहीं हुए होंगे। मौजूदा संकट के कारण संभावनाएं घटने को लेकर नीतिगत उपायों के बारे में बैंक ने कहा कि प्रतिक्रिया जोखिम घटाने और निवेशकों को स्थिरता प्रदान करने को लेकर होनी चाहिए।
इसमें कहा गया है कि मौजूदा संकट भारत के नए अवसर के द्वार खोल सकता है। इसमें से एक अवसर यह है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां चीन से इतरह अपनी गतिविधियों में विविधीकरण पर जोर दे सकती हैं।
बहुपक्षीय एजेंसी ने कहा है, ‘भारत इस अवसर का कितना लाभ उठा सकता है, वह उसके आर्थिक सुधार लागू करने की क्षमता पर निर्भर होगा। इसमें शुल्क का इस्तेमाल शामिल नहीं है। इसके विपरीत व्यापार नीति निश्चित रूप से सक्षम बनाने योग्य होनी चाहिए।’
बैंक ने अनुमान लगाया है कि केंद्र का राजकोषीय घाटा 2020-21 में बढ़कर जीडीपी का 6.6 प्रतिशत हो सरकती है और यह अगले साल भी 5.5 प्रतिशत के उच्च स्तर पर बना रहेगा। इसमें कहा गया है, ‘अगर कल्पना करें कि राज्यों का घाटा 3.5 से 4.5 प्रतिशत के बीच है तो केंद्र का घाटा बढ़कर वित्त वर्ष 20/21 में करीब 11 प्रतिशत रह सकता है।’
अनुमानों में जहां अनिश्चितता का उल्लेखनीय स्तर है, सरकार का कर्ज व जीडीपी का अनुपात 2022-23 में करीब 89 प्रतिशत के उच्च स्तर पर पहुंचने की संभावना है और उसके बाद इसमें धीरे धीरे कमी आएगी। इसमं कहा गया है कि वैकल्पिक स्थिति में घाटा व कर्ज के आंकड़े इससे ज्यादा भी हो सकते हैं।
2011-12 से 2015 के बीच जहां भारत में गरीबी 21.6 प्रतिशत से घटकर 13.4 प्रतिशत पर आई है, बैंक ने कहा है कि कोविड-19 के असर के कारण भारत की आधी आबादी के खपत का स्तर गरीबी रेखा के निकट हो सकता है। इन परिवारों के  गरीबी रेखा के नीचे जाने का जोखिम है क्योंकि कोविड-19 महामारी के कारण इनकी आमदनी और नौकरियां चली गई हैं।

First Published : August 19, 2020 | 11:42 PM IST