मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के सदस्यों का मानना है कि भारत की अर्थव्यवस्था महामारी की तीसरी लहर को लेकर लचीली रही है, लेकिन इसकी रफ्तार कुछ कम रही और महंगाई में तेजी आई, जो बाद में कम होने की संभावना है। गुरुवार को जारी मौद्रिक नीति समिति के ब्योरे से पता चलता है कि इन वजहों से समिति ने समावेशी रुख बनाए रखने व अर्थव्यवस्था को मौद्रिक नीति के समर्थन की जरूरत बताई।
मौद्रिक नीति समिति ने नीतिगत दरों में बदलाव न करने के पक्ष में मतदान किया और 10 फरवरी को हुई एमपीसी की बैठक में समावेशी रुख जारी रखने का फैसला किया। लेकिन जयंत वर्मा ने समावेशी नीतिगत रुख के खिलाफ मतदान किया क्योंकि उनका मानना था कि तटस्थ रुख अपनाना लंबे समय से अपेक्षित था और महामारी के दुष्प्रभाव का मुकाबला करने के हिसाब से मौजूदा रुख प्रतिकूल हो गया है। वर्मा के मुताबिक इसने एमपीसी का ध्यान मूल मुद्दे से हटा दिया है, जिससे मंदी की स्थिति से वापस कम से कम 2019 की स्थिति में जाया जा सके।
गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा, ‘ऌअगले वित्त वर्ष में महंगाई दर में संभावित सुधार मौद्रिक नीति को समावेशी बनाए रखने का अवसर देता है। ठीक इसी समय महामारी से आर्थिक रिकवरी अपूर्ण व असमान बनी हुई है और टिकाऊ रिकवरी के लिए विभिन्न नीतिगत समर्थन अहम बना हुआ है।’
बहरहाल उन्होंने यह भी कहा कि कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय दाम में तेजी पर नजदीकी से नजर रखने की जरूरत है। दास ने कहा, ‘हमें भू-राजनीतिक गतिविधियों की वजह से जिंसों के अंतरराष्ट्रीय दाम में बढ़ोतरी से घरेलू बाजार में महंगाई के जोखिम पर नजर रखने की जरूरत है।’ एमपीसी ने अगले वित्त वर्ष के लिए महंगाई दर 4.5 प्रतिशत कर दिया है, जो एमपीसी के टॉलरेंस बैंड के भीतर है।
रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर माइकल पात्र ने कहा, ‘ऐसा लगता है कि भारत में आर्थिक गतिविधियां तीसरी लहर को लचीलेपन के साथ झेल गई हैं, लेकिन उच्च फ्रीक्वेंसी के संकेतकों से मिल रहे संदेश मिले जुले हैं। यह अनुमान लगाना ठोस होगा कि 2021-22 की चौथी तिमाही और 2022-23 की पहली तिमाही में गति कुछ सुस्त हो सकती है। महंगाई बढ़ी है और अनुमान है कि इसके बाद 2022-23 में पूरे साल यह कम रहेगी।’
रिजर्व बैंक के कार्यकारी निदेशक मृदुल सागर ने सकल बाजार उधारी के आकार को लेकर आगाह किया, जो 14.3 लाख करोड़ रुपये हो गई है। बाहरी सदस्य वर्मा की राय थी कि तीसरी लहर का असर खत्म हो रहा है ऐसे में मौद्रिक नीति व्यापक परिप्रेक्ष्य में होनी चाहिए, न कि सिर्फ कोविड महाारी के असर को कम करने तक सीमित होना चाहिए।
एमपीसी में बाहरी सदस्य अशिमा गोयल ने कहा कि हालांकि महामारी की तीसरी लहर की कम आर्थिक कीमत चुकानी पड़ी है, लेकिन खपत लगातार महामारी के पहले के स्तर के नीचे बनी हुई है, जिससे आमदनी और मांग में कमी का पता चलता है। इसके अलावा बेरोजगारी उच्च स्तर पर है, ऐसे में समझदारी यह होगी कि महंगाई घटाने की कवायद में बेरोजगारी और नहीं बढ़ाई जानी चाहिए, खासकर ऐसे समय में जब महंगाई में कमी आने की संभावना है।
बाहरी सदस्य शशांक भिडे ने कहा कि अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और इसमें धनात्मक वृद्धि बनाए रखने के लिए इसके पक्ष में मौद्रिक व वित्तीय स्थिति बनाए रखना जरूरी शर्त है। ग्राहकों और फर्मों दोनों के लिए ही वित्तीय संसाधन जरूरी है।