वैश्विक न्यूनतम कर के प्रभावी होने पर भारत को होगा नुकसान!

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 12, 2022 | 5:51 AM IST

वैश्विक न्यूनतम कर को लेकर चर्चा जोर पकड़ रही है। अमेरिका इसको लागू करने के लिए दबाव बना रहा है और इसके लिए उसने आईएमफ और कुछ अन्य उन्नत देशों का समर्थन हासिल किया है। हालांकि इस प्रकार के कर का नकारात्मक असर भारत जैसे विकासशील देशों पर पड़ सकता है। यह असर दर की सहमति पर निर्भर करेगा।
कर आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के आधार क्षरण और लाभ हस्तांतरण (बीईपीएस) तंत्र के स्तंभ 2 का हिस्सा है।
बीईपीएस तंत्र में सभी चर्चाओं में से अमेरिका का मुख्य हित स्तंभ 2 में निहित है क्योंकि यह बाइडन प्रशासन द्वारा हाल में लाई गई मेड इन अमेरिका कर योजना से मेल खाता है।
इस योजना के तहत अमेरिका ने कॉर्पोरेशन कर को 21 फीसदी से बढ़ाकर 28 फीसदी और ग्लोबल इंटैंजिबल लो टैक्स्ड इनकम (जीआईएलटीआई) कर को 10.5 फीसदी से बढ़ाकर 21 फीसदी करने का प्रस्ताव रखा है। इसके साथ ही इसका लक्ष्य अगले 15 वर्षों में कर राजस्व में अतिरक्त 2 लाख करोड़ रुपये जुटाने का है जिससे कि कोविड और बुनियादी ढांचे के लिए मंजूर किए गए व्यापक खर्च के लिए रकम की व्यवस्था की जा सके।  
अनुमानों के मुताबिक अमेरिका द्वारा कॉर्पोरेशन कर दर को 28 फीसदी किए जाने से प्रभावी दर 32.34 हो जाएगी जो ओईसीडी में सर्वाधिक होगी।
अमेरिका में जीआईएलटीआई कर व्यवस्था के तहत फिलहाल कर नियंत्रित विदेशी कंपनियों के शेयरधारकों पर लगाया जाता है जो एक सीमा के आगे कंपनी की सक्रिय आय पर निर्भर होता है।
नए जीआईएलटीआई कर ढांचे से यह सुनिश्चित होगा कि अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर अत्यधिक उच्च कर लगाया जाएगा जिससे विदेशी निवेश का आकर्षण कम हो जाएगा।
केंदीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के पूर्व सदस्य है और फिलहाल पीडब्ल्यूूसी के सलाहकार अखिलेश रंजन ने कहा, ‘अमेरिका एक ऐसा वैश्विक न्यूनतम कर चाहता है जो पूंजी और निवेश में वृद्घि को रोकने वाली उसकी घेरलू नीति के साथ सझेदारी करे। अमेरिका में उच्च कर लागू होने से यहां निवेश करने को लेकर निवेशकों का आकर्षण समाप्त हो जाएगा और उसके बाद वे कम कर वाले गंतव्यों को प्रमुखता देंगे।’    
रंजन ने इंगित किया कि भले ही अमेरिका 21 फीसदी की काफी उच्च वैश्विक न्यूनतम कर दर के लिए दबाव बना रहा है लेकिन ओईसीअडी में अब तक हुई चर्चा 10.5 फीसदी से 12 फीसदी के बीच है।रंजन ने कहा, ‘यह बहुत सारे विकासशील देशों के लिए चिंता की बात हो सकती है जिन्होंने दर को उससे नीचे रखा है। भारत मे भी कुछ कंपनियों के लिए कम दर है। वियतननाम और फिलिपींस जैसे देशों में भी दरें कम हैं। उम्मीद की जा रही है कि सभी देश दरों में इजाफा करेंगे। यह देखना होगा कि किस हद तक दूसरे देश इसे समायोजित करते हैं।’ रंजन ओईसीडी बीईपीएस में भारत के प्रमुख वार्ताकार भी रहे हैं।
उन्होंने कहा कि कम कर दर वाले देशों को यदि न्यूनतम स्तर पर पहुंचने के लिए कर की दरें बढ़ाने की जरूरत पड़ती है तो उनकी प्रतिस्पर्धी बढ़त समाप्त हो सकती है। उन्होंने कहा, ‘यदि भारत को भी विशिष्ट कॉर्पोरेशन कर दर को 21 फीसदी तक बढ़ाना पड़ता है तो हमें कुछ हद तक प्रतिस्पर्धात्मकता के संदर्भ में भी नुकसान होगा। हालांकि, हमारी कर दरें बहुत कम नहीं हैं और सामान्य दर 25 फीसदी है। कम दर केवल दी गई समयावधि में उत्पादन शुरू करने वाली नई कंपनियों पर लागू होती है।’     
भारत ने सितंबर 2019 में 1 अक्टूबर या उसके बाद स्थापित और 31 मार्च, 2023 से हपले उत्पादन शुरू करने वाली विनिर्माण इकाइयों के लिए निगम कर में कटौती कर इसे 15 फीसदी कर दिया था। उपकर और शुल्कों के साथ यह 17.01 फीसदी बैठता है।
कर और परामर्श कंपनी एकेएम ग्लोबल में पार्टनर अमित माहेश्वरी ने कहा कि इसकी बहुत अच्छी गुंजाइश हो सकती है कि वैश्विक न्यूनतम कर को अमेरिका को लगे बड़े आर्थिक झटके के कारण स्वीकार कर लिया जाए। 

First Published : April 16, 2021 | 12:12 AM IST