सरकार की ओर से गुरुवार को जारी आंकड़ों से पता चलता है कि चालू वित्त वर्ष के पहले चार महीने के दौरान भारत का राजकोषीय घाटा 6.06 लाख करोड़ रुपये या पूरे साल के 17.87 लाख करोड़ रुपये लक्ष्य का 33.9 प्रतिशत रहा है। घाटे में बढ़ोतरी मुख्य रूप से कर विभाजन का पहले भुगतान करने और बढ़े व्यय के कारण हुई है।
सरकार के व्यय और राजस्व के बीच अंतर को राजकोषीय घाटा कहा जाता है, जो अप्रैल जुलाई 2022 के दौरान 3.4 लाख करोड़ रुपये या बजट अनुमान का 20.5 प्रतिशत था। अप्रैल-जुलाई के दौरान राजकोषीय घाटे में पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 78 प्रतिशत वृद्धि हुई है।
केंद्र की कमजोर वित्तीय स्थिति की प्रमुख वजह जुलाई के आंकड़े हैं। जुलाई के आंकड़ों में घाटा 1.54 लाख करोड़ रुपये था, जबकि पहले के वित्त वर्ष में यह 11,040 करोड़ रुपये अधिशेष था।
आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि अप्रैल-जुलाई के दौरान कुल प्राप्तियां थोड़ी अधिक रही हैं। हालांकि केंद्र का शुद्ध कर राजस्व 12.6 प्रतिशत कम होकर 5.83 लाख करोड़ रुपये रहा है। राजस्व व्यय भी जुलाई में दोगुना होकर 2.9 लाख करोड़ रुपये हो गया, जिसकी वजह से पिछले साल की समान अवधि की तुलना में राजकोषीय घाटे में तेजी आई है।
कुछ प्राप्तियां गैर कर राजस्व से आई हैं, जो इस अवधि के दौरान दोगुना होकर 1.79 लाख करोड़ रुपये हो गया है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा भारी लाभांश देने के कारण ऐसा हुआ है। बहरहाल पूंजीगत व्यय इस दौरान 3.17 लाख करोड़ रुपये रहा है। सरकार ने आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिए पिछले साल की तुलना में इसमें 52 प्रतिशत वृद्धि की है।
वित्त वर्ष 2024 के अप्रैल जुलाई के दौरान पिछले साल की समान अवधि की तुलना में सकल कर संग्रह सिर्फ 3 प्रतिशत बढ़ा है। प्रत्यक्ष कर ने इस पर बुरा असर डाला, जबकि वस्तु एवं सेवा कर संग्रह और सीमा शुल्क में वृद्धि से इसकी कुछ भरपाई हुई है।