औद्योगिक उत्पादन में अक्टूबर में सुधार के बाद नवंबर में एक बार फिर 1.9 प्रतिशत की गिरावट आई है। इस महीने में दीपावली होने का भी कोई सकारात्मक असर नहीं हुआ, जिससे अर्थशास्त्री आगामी बजट में प्रोत्साहन पैकेज जारी रखने की बात कर रहे हैं।
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक अक्टूबर महीने में बढ़कर 4.19 प्रतिशत हो गया था, जबकि शुुरुआत में 3.6 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था। सितंबर में आईआईपी करीब स्थिर रहा था, जबकि मार्च महीने से इसमें लगातार गिरावट आ रही थी। नवंबर, 2019 में आईआईपी वृद्धि दर 2.1 प्रतिशत थी।
वित्त वर्ष 21 के पहले 8 महीने में आईआईपी में 15.5 प्रतिशत की गिरावट आई जबकि इसके पहले वित्त वर्ष की समान अवधि में इस में 0.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। इसका मतलब यह है कि औद्योगिक उत्पादन इसके पहले के साल में भी सुस्त था, लेकिन कोविड-19 के कारण हुए लॉकडाउन से चालू वित्त वर्ष के अप्रैल-नवंबर के दौरान यह संकुचन की ओर चला गया।
आईआईपी के खराब आंकड़ों के संकेत पहले ही प्रमुख क्षेत्र के आंकड़ों और ई-वे बिल से मिल रहे थे। आठ उद्योगों के प्रमुख क्षेत्र का उत्पादन नवंबर में 2.6 प्रतिशत गिरा था, जबकि सितंबर में 0.1 प्रतिशत और अक्टूबर में 0.9 प्रतिशत संकुचन हुआ था। आईआईपी में 40 प्रतिशत हिस्सेदारी प्रमुख क्षेत्र की होती है।
एमके ग्लोबल फाइनैंशियल सर्विसेज के शोध प्रमुख-मुद्रा, राहुल गुप्ता ने कहा, ‘यह स्वाभाविक था कि 8 प्रमुख क्षेत्रों के उत्पादन में दिरावट के बाद औद्योगिक उत्पादन में संकुचन आएगा। कुल मिलाकर औद्योगिक रिकवरी असमान और क्षणभंगुर बनी हुई है और इसके लिए प्रोत्साहन की जरूरत है, जिससे गति बरकरार रहे।’
नवंबर में ई-वे बिल सृजन गिरकर 5.77 करोड़ रह गया, जबकि अक्टूबर में 6.42 करोड़ हुआ था। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में पंजीकृत हर व्यक्ति को ई-वे बिल का सृजन करना होता है, अगर वह वाहनों से 50,000 रुपये से ज्यादा का सामान भेजता है। यही वजह है कि ई-वे बिल सृजन से वस्तुओं की आवाजाही के व्यापक संकेत मिलते हैं।
बहरहाल दिसंबर में ईवे बिल सृजन एक बार फिर बढ़कर 6.42 करोड़ हो गया है, जिससे कुछ उम्मीद बंधती है कि आईआईपी इस महीने बढ़ सकता है।
इक्रा में प्रधान अर्थशास्त्री अदिति नैयर ने कहा, ‘जैसा कि उम्मीद थी, तमाम क्षेत्रों में दिसंबर 2020 में स्थिति सुधरी है, जिससे त्योहार के महीने के बाद मांग में बढ़ोतरी के संकेत मिलते हैं। दिसंबर 2020 में बिजली की मांग, निर्यात, जीएसटी ई-वे बिल सृजन के आंकड़ों में सुधार से गतिविधियों में सुधार का पता चलता है। हम उम्मीद करते हैं कि इस महीने में आईआईपी वृद्धि 2 से 4 प्रतिशत के बीच रह सकती है।’
नाइट फ्रैंक इंडिया में मुख्य अर्थशास्त्री रजनी सिन्हा ने कहा कि कोविड से संक्रमण के मामले घटने, टीके लगने की शुरुआत और अर्थव्यवस्था सामान्य होने के साथ यह देखना अहम होगा कि किस स्तर पर वृद्धि में स्थिरता आती है।
आईआईपी के 3 व्यापक सेग्मेंट में विनिर्माण की हिस्सेदारी करीब 78 प्रतिशत है। इसमें नवंबर में 1.7 प्रतिशत का संकुचन आया है, जबकि इसके पहले महीने में 4.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। खनन क्षेत्र का उत्पादन 7.3 प्रतिशत गिरा है, जबकि पिछले साल इसमें 1.3 प्रतिशत गिरावट आई थी।
बिजली के उत्पादन से आईआईपी को कुछ बल मिला है और इसमें लगातार तीसरे महीने तेजी आई है। नवंबर में यह 3.5 प्रतिशत बढ़ा है, हालांकि यह अक्टूबर के 4.2 प्रतिशत की तुलना में थोड़ा कम है।
उपभोग की श्रेणियों में सभी क्षेत्रों में संकुचन आया है और सिर्फ इन्फ्रास्ट्रक्चर और निर्माण सामग्री में 0.7 प्रतिशत की मामूली वृद्धि हुई है।
पूंजीगत वस्तुओं में अक्टूबर में 3.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है, जिसमें नवंबर में एक बार फिर 7.1 प्रतिशत की गिरावट आई है। आने वाले महीनों में अगर यह धारणा नहीं बदलती है तो यह अन्य वस्तुओं पर भी असर पड़ सकता है।
उपभोक्ता वस्तुओं और रोजमर्रा के उपभोग के सामान में अक्टूबर में 18 प्रतिशत और 7 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी, जिसमें नवंबर में प्रत्येक में 0.7 प्रतिशत गिरावट आई है। जियोजित फाइनैंशियल सर्विसेज में अर्थशास्त्री दीप्ति मैथ्यू ने कहा, ‘आईआईपी में संकुचन चिंता का विषय है। इससे अर्थव्यवस्था में कमजोर मांग का पता चलता है।’