‘डिजिटल सेवाओं पर कराधान पर बहुपक्षीय सहयोग जरूरी’

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 12, 2022 | 12:31 AM IST

शार्दूल अमरचंद और जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल ने नीति आयोग को हाल में सौंपे अपने एक अध्ययन पत्र में डिजिटल सेवाओं पर कर लगाने के लिए आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) के बहुपक्षीय दृष्टिकोण के पक्ष में तर्क दिए हैं। डिजिटल कंपनियों पर कराधान के विषय पर दुनिया के देशों के बीच शुक्रवार तक बातचीत पूरी होने की उम्मीद है।
अध्ययन पत्र में डिजिटल सेवा कर (डीएसटी) का विरोध किया गया है। इस समय अलग-अलग देश इन सेवाओं पर अपने हिसाब से कर लगाते हैं। उदारहण के लिए भारत इन सेवाओं पर ‘इक्वलाइजेशन लेवी’ नाम से कर लगता है। पत्र में इन सेवाओं पर कर लगाने के संयुक्त राष्ट्र एवं जी-24 समूह के रवैये की व्यावहारिकता पर सवाल उठाया गया है।
अध्ययन पत्र में कहा गया है कि बहुपक्षीय समाधान खोजने की भारत की प्रतिबद्धता से देश में कराधान विषय को लेकर पारदर्शिता बढ़ेगी। यह पत्र शार्दूल अमरचंद मंगलदास में पार्टनर गौरी पुरी और सेंटर फॉर कम्परेटिव ऐंड इंटरनैशनल टैक्सेशन में सहायक प्राध्यापक एवं कार्यकारी निदेशक किंशुक झा ने मिलकर तैयार किया है।
‘एड्रेसिंग टैक्स चैलेंजेज ऑफ डिजिटलाइजेशन: एक्सप्लोरिंगग मल्टीलैटेरिज्म एज द वे फॉर इंडिया’ शीर्षक नाम प्रकाशित इस पत्र में कहा गया है कि बहुपक्षीय समाधान खोजने की भारत की प्रतिबद्धता से विदेशी निवेशकों को यह संदेश जाएगा कि देश अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तय मानदंडों का पालन करने के लिए हमेशा तैयार रहता है। पुरी ने कहा, ‘अलग-थलग और बिना अंतरराष्ट्रीय सहयोग के डीएसटी या द्विपक्षीय स्तर पर हुए कर समझौतों से बहुराष्ट्रीय उद्यमों एवं सरकार दोनों के लिए अनिश्चितता की स्थिति पैदा हो सकती है।’
विदेश में भारत के इक्वलाइजेशन लेवी को समर्थन नहीं मिला है और इससे जुड़े अनुपालन खर्च भी अधिक है। इसे देखते हुए कई कंपनियों ने कारोबार पर बढ़ी लागत का बोझ अप्रत्यक्ष रूप से ग्राहकों पर डालना शुरू कर दिया है। पुरी ने कहा, ‘वस्तु एव सेवाओं पर शुल्क बढऩे से सभी उपभोक्ताओं पर असर होता है। इनमें लघु एवं मझोलेक  कारोबार सहित स्टार्टअप इकाइयां भी शामिल हैं। ऐसे में दीर्घ अवधि के लिए डिजिटल सेवा कर एक उपयुक्त समाधान नहीं जान पड़ता है।’

First Published : October 4, 2021 | 11:49 PM IST