‘पंत-पुजारा जैसे जज्बे की जरूरत’

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 12, 2022 | 9:02 AM IST

वित्त मंत्रालय के सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन ने अर्थव्यवस्था को दोबारा से पटरी पर लाने के लिए क्रिकेट में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ भारत की हालिया जीत में ऋषभ पंत और चेतेश्वर पुजारा द्वारा दिखाए जुझारूपन से प्रेरणा लेने की बात कही है।
मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) ने 2020-21 की आर्थिक समीक्षा पर प्रेस को संबोधित करते हुए कहा, ‘क्रिकेट की तरह ही अर्थव्यवस्था में भी योजना बनाने का महत्त्व है। जब गेंद बहुत अधिक घूम रहा हो, जब बहुत अधिक अनिश्चितता हो तब आपको ध्यानपूर्वक खेलने की जरूरत होती है और खुद को बचाए रखने पर ध्यान देना होता है। मूल बात यह है कि जब गेंद घूम रहा हो तो पुजारा की तरह बैटिंग करें और जब गेंद का घूमना रुक जाए तब पंत की तरह बैटिंग करें। इसी रणनीति पर देश की अर्थव्यवस्था और नीति निर्माताओं को ध्यान देना चाहिए।’
कृष्णमूर्ति ने कहा कि यह समीक्षा समूचे कोविड-19 योद्घाओं को समर्पित है जिन्होंने शताब्दी में एक बार आने वाले संकट के दौरान देश को संभाला।
वृद्घि को लेकर उन्होंने कहा, ‘भारत ने जीवन और आजीविका को बचाने पर ध्यान दिया। इसने दीर्घावधि के फायदों के लिए लघु अवधि का दर्द झेला। एक ओर जहां सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में सुधार होगा और हो रहा है वहीं जिनकी जान गई उन्हें वापस नहीं लाया जा सकता है। मानवीय सिद्घांत ने भारत की नीतिगत प्रतिक्रिया को निर्देशित किया।’ भारत के कोविड-19 नीतिगत प्रतिक्रिया पर बोलते हुए सीईए ने कहा उस दौरान एक साथ कई सारे ढांचागत सुधारों की घोषित करने वाला भारत एकमात्र देश है।
बजट से पूर्व वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा और राज्य सभा दोनों में आर्थिक समीक्षा पेश की।
राजकोषीय नीति
आर्थिक समीक्षा में खास तौर पर सुस्ती के समय पर सार्वजनिक निवेश की संभावना को रेखांकित किया गया है। इसमें वृद्घि को मजबूती देने के लिए राजकोषीय नीति बनाने की बात कही गई है। इसमें राजकोषीय नियमों पर पुनर्विचार करने की जरूरत पर भी बल दिया गया है। सुब्रमण्यन ने कहा, ‘कोविड से पूर्व के स्तर पर वृद्घि दर के पहुंचने तक निश्चित तौर पर राजकोषीय नीति को वृद्घि को सहयोग देना चाहिए। सार्वजनिक निवेश खर्च मध्यावधि में स्वयं पर खर्च करने जैसा है क्योंकि इससे वृद्घि को सक्षम बनाता है। इस परिप्रेक्ष्य में भारत के राजकोषीय नियम पर दोबारा से सोचने की जरूरत है।’
लॉकडाउन के साथ मामलों की संख्या और मौतों में कमी के मजबूत संबंध के बारे में बात करते हुए सीईए ने कहा कि ऐसा सभी राज्यों में पाया गया है, न कि कुछ राज्यों में ऐसे में सर्वे में इस बात पर जोर दिया गया है कि लॉकडाउन का जिंदगी बचाने और आजीविका पर आकस्मिक असर हुआ है। उनके मुताबिक इस रणनीति से देश में 37 लाख मामले व एक लाख मौतों तक क्षति को सीमित करने में मदद मिली है। उन्होंने कहा, ‘महामारी ने लोगों के खर्च के फैसलों और कॉर्पोरेट इकाइयों के निवेश को प्रभावित किया है। वायरस के कारण अनिश्चितता को देखते हुए लॉकडाउन के बगैर भी इसी तरह की प्रक्रिया बनी हुई है।’
भारत के सॉवरिन रेटिंग के बारे में कृष्णमूर्ति ने कहा कि रेटिंग की विधि में सुधार की जरूरत है क्योंकि इससे विदेशी पोर्टफोलियो निवेश का प्रवाह प्रभावित होता है।
उन्होंने कहा, ‘अगर आप भारत की पूरी बाहरी देनदारी को देखते हैं तो यह राशि कुल विदेशी मुद्रा भंडार की तुलना में कम है। ऐसे में भारत दरअसल ऋणात्मक कर्ज कंपनी की तरह है, परिभाषा के मुताबिक जिसकी पुनर्भुगतान की क्षमता 100 प्रतिशत है। ऐसे में भुगतान की इच्छा और भुगतान की क्षमता के हिसाब से भारत की शीर्ष रेटिंग होगी और इस मामले में तमाम चीतें लिखी गई हैं कि भारत की सॉवरिन रेटिंग पूर्वाग्रह वाली है।’
सुब्रमण्यन ने कहा कि अगर भारत की वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर वित्त वर्ष 23 से वित्त वर्ष 29 तक हर साल 3.8 प्रतिशत के निचले स्तर पर रहती है, तब भी कर्ज कम होगा। उन्होंने आगे कहा कि निजी क्षेत्र को नवोन्मेष और शोध एवं विकास में ज्यादा हिस्सेदारी करने की जरूरत है। सर्वे के मुताबिक अगर शीर्ष 10 अर्थव्यवस्थाओं की तुलना की जाए तो भारत के सकल आरऐंडडी व्यय में उद्योग क्षेत्र की हिस्सेदारी सरकार की तुलना में बहुत कम है।
बहुत ज्यादा नियमन से बहुत ज्यादा पर्यवेक्षण की जरूरत होती है और इसमें विवेकाधीन मामले बढ़ जाते हैं, जिसे देखते हुए सीईए ने आसान नियमन और पारदर्शी पर्यवेक्षण पर जोर दिया है।
 समीक्षा में अपनी प्रतिक्रिया सीईए ने कहा है, ‘अन्य देशों की तुलना में मांग के क्षेत्र में भारत के कदम भी अलग हैं, जहां एक सामान्य विचार आता है कि गति देने वाले कामों पर जोर देने से ही व्यवधान खत्म हो जाते हैं। बड़े पैमाने पर टीकाकरण अभियान से सेवाओं की रिकवरी तेज होगी। महामारी के दूसरी लहर के बगैर वी आकार की आर्थिक रिकवरी परिवक्व नीति निर्माण का उदाहरण है।’
भारत की नीतिगत प्रतिक्रिया और मार्च 2020 में भारत की स्थिति समझने के लिए भारत की स्थानीय ट्रेनों पर विचार किया जा सकता है। यह हमेशा भीड़भरी होती हैं, जिसमें हर कोच में कम से कम 500 लोग होते हैं। सुब्रमण्यन ने कहा कि यह एक उदाहरण है कि कैसी स्थिति से वापसी हुई है।

First Published : January 29, 2021 | 11:51 PM IST