कर्ज रियायत समाप्त करने की जरूरत

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 12, 2022 | 9:02 AM IST

आर्थिक समीक्षा की रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि कोविड-संबंधित ऋण छूट समाप्त होने के बाद बैंकों का एक और परिसंपत्ति गुणवत्ता समीक्षा (एक्यूआर) चरण होना चाहिए, भले ही इस तरह के पिछले प्रयास में बैंकों में फंसे कर्ज की अनिश्चितता का सही तरीके से पता लगाने में सफल नहीं रहने के लिए आरबीआई की आलोचना हुई है।
समीक्षा में कहा गया है कि कर्ज से संबंधित माफी या रियायत (फॉरबिएरेंस) के मौजूदा दौर को लंबे समय तक नहीं खींचा जाना चाहिए, लेकिन इसे तब बंद किया जाना चाहिए जब अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत दिखने लगें।
नीति निर्माताओं को आर्थिक सुधार की सीमा तय करनी चाहिए जिसकी मदद से ऐसे रियायत संबंधित उपायों को वापस लिया जाए। ये सीमाएं बैंकों के साथ मिलकर तय की जानी चाहिए जिससे कि वे इसके लिए पूरी तरह से तैयार हो सकें।
2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद चलाया गया छूट का आखिरी चरण 2011 में समाप्त हो जाना चाहिए था। समीक्षा में कहा गया है, ‘मौजूदा बैंकिंग संकट की जड़े 2008 और 2015 के बीच अपनाई गई छूट संबंधित नीतियों के समान हैं।’ इस वजह से बैकों, कंपनियों और अर्थव्यवस्था के लिए अनपेक्षित और नुकसानदायक परिणाम सामने आए हैं।
सकल एनपीए 2014-15 के 4.3 प्रतिशत से बढ़कर 2015-16 में 7.5 प्रतिशत हो गया और 2017-18 में यह 11.2 प्रतिशत पर पहुंच गया। बैंकिंग संकट के शुरुआती समाधानों से नुकसान सीमित हो सकता था, लेकिन आरबीआई को इसमे विफलता नहीं मिली। इसका परिणाम यह निकला कि एनपीए को लेकर हालात और बदतर हो गए।
बैंकों ने कंपनियों के ऋण पुनर्गठन के संबंध में प्रावधान संबंधित शर्तों में नरमी का लाभ उठाया। बढ़े हुए मुनाफे का भुगतान लाभांश के तौर पर मालिकों को किया गया, जिनमें सरकार भी शामिल है। इससे बैंक गंभीर रूप से कमजोर हुए। इससे जोखिम वाली उधारी प्रणालियों को बढ़ावा मिला, जिनमें ‘जोम्बीज’ को उधारी भी शामिल है। जोम्बीज एक ऐसी प्रणाली है जिसमें बड़ी पूंजी फंसे कर्ज को आकर्षक दिखाने के लिए दी जाती है।
फॉरबिएरेंस विंडो के दौरान चूक से संबंधित कंपनियों का अनुपात उनके ऋणों के पुनर्गठन के बाद 51 प्रतिशत तक बढ़ गया, जो पूर्व फॉरबिएरेंस समय में महज 6 प्रतिशत वृद्घि से काफी ज्यादा है। इस तरह से ऐसी रियायत से बैंकों को अपने फंसे कर्ज छिपाने में काफी हद तक मदद मिली।

घरेलू निवेश के लिए भी उपयोग हो आरबीआई कोष
आर्थिक समीक्षा में एक बार फिर सुझाव दिया गया है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को केवल बिना प्रयोग के रखे रहने या विदेशों में कम उपज वाली संपत्ति में निवेश करने के बजाय अपने भंडार का घरेलू उद्देश्यों के लिए भी उपयोग करना चाहिए।
समीक्षा में कहा गया, ‘भारत जैसे विकासशील देश को अपने विकास की गति बढ़ाने के लिए घरेलू निवेश पर खर्च करने की आवश्यकता है। इसलिए हालिया अधिशेष, वित्त वर्ष 2021-22 में निवेश पर खर्च में बढ़ोतरी के लिए पर्याप्त सुविधा देता है।’ पिछली आर्थिक समीक्षा में आरबीआई द्वारा भंडार की पर्याप्तता बनाए रखने के बारे में बातचीत की गई थी और सुझाव दिया गया था कि बैंकों के पुनर्पूंजीकरण के साथ ही इसे बुनियादी ढांचे पर खर्च किया जाना चाहिए। 22 जनवरी को, आरबीआई का विदेशी मुद्रा भंडार 585.33 अरब डॉलर पर था, जो एक साल पहले 466.7 अरब डॉलर था। भंडार का वर्तमान स्तर लगभग 18.4 महीने के आयात एवं देश के लघु अवधि ऋण का 236 प्रतिशत है।  बीएस

First Published : January 29, 2021 | 11:51 PM IST