केंद्र सरकार ने अधिसूचित किया है कि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) भुगतान में देरी पर ब्याज भुगतान 1 सितंबर 2020 से शुद्ध आधार पर किया जा सकता है। शुद्ध आधार का मतलब यह है कि इनपुट टैक्स क्रेडिट और रिफंड को ब्याज लगाने के लिए नहीं जोड़ा जाएगा और सिर्फ नकद पर कर देनदारी पर विचार किया जाएगा।
कई खेमों से आलोचना के बाद यह फैसला लिया गया था कि इसे 1 जुलाई 2017 से पूर्ववर्ती प्रभाव से लागू किया जाएगा। जीएसटी परिषद के फैसले के हिसाब से केंद्रयी अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) ने कुछ तकनीकी सीमाओं के साथ इस अधिसूचना को भविष्य में प्राप्यता के आधार पर जारी की है।
सूत्रों ने कहा कि पूर्ववर्ती कदम उठाने के लिए सीजीएसटी अधिनियम में संशोधन करने की जरूरत होगी, जो कोविड-19 की स्थिति को देखते हुए करना संभव नहीं है।
बहरहाल सीबीआईसी ने आश्वस्त किया है कि यही नियम पिछले भुगतानों के लिए भी लागू होंगे और नोटिसों पर कोई वसूली नहीं होगी, जो विभिन्न कारोबारियों को सकल आधार पर ब्याज भुगतान के लिए भेजे गए हैं।
इसमें कहा गया है कि इससे यह सुनिश्चित हो सकेगा कि करदाताओं को पूर्ण राहत मिले, जैसा कि परिषद ने फैसला किया था।
इसके पहले विशेषज्ञों ने इस बात को लेकर आश्चर्य जताया था कि अधिसूचना में परिषद के फैसले को लागू नहीं किया गया है। उन्होंने कहा था कि सिकी वजह से बड़े करदाता याचिका दायर करेंगे और छोटे व मझोले करदाताओं का उत्पीडऩ होगा।
एएमआरजी एसोसिएट्स के पार्टनर रजत मोहन ने कहा, ‘जीएसटी परिषद ने फैसला किया था कि देरी से जीएसटी के भुगतान पर बकाया ब्याज शुद्ध नकदी कर देनदारी पर लिया जाएगा, जो 1 जुलाई 2017 से प्रभावी होगा। बहरहाल अधिसूचना में यह लाभ 1 सितंबर 2020 से दिया गया है। इस मसले के एक बार फिर न्यायिक मंच पर जाने की संभावना हो गई है और बड़े करदाता याचिका दायर करेंगे, जबकि एमएसएमई का उत्पीडऩ बढ़ेगा।’
ईवाई में पार्टनर अभिषेक जैन ने कहा कि जीएसटी परिषद ने पूर्ववर्ती संशोधन को मंजूरी दी थी, जो शुद्ध देनदारी पर लागू होनी थी और कारोबारी अब इसे पूर्ववर्ती प्रभाव से लागू होने का इंतजार करेंगे।
स्वतंत्र चार्टर्ड अकाउंटेंट विमल जैन ने ट्वीट किया, ‘जीएसटी परिषद की सिफारिशें व उनके शब्दों का सम्मान क्यों नहीं किया गया।’
मार्च में जीएसटी परिषद की बैठक के बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था, ‘परिषद ने यह भी फैसला किया है कि जीएसटी के देर से भुगतान पर ब्याज शुद्ध आधार पर लगाया जाएगा, न कि सकल आधार पर। इसके लिए जीएसटी कानून में संशोधन किया जाएगा, जो 1 जुलाई 2017 से पूर्व प्रभाव से लागू होगा।’
सरकार ने यह कदम विवाद घटाने और वसूली की प्रक्रिया आसान करने और ज्यादातर इकाइयों की नकदी की तात्कालिक समस्याओं से राहत देने के मकसद से उठाया था।