अब तो मानसून ही जान बचाए…

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 07, 2022 | 5:42 AM IST

महंगाई, कच्चा तेल और मानसून…ये तीन ऐसी एक्सप्रेस हैं, जिन पर सरकार ही नहीं, समूचे देश की निगाहें लगी हुई हैं।


ज्यों-ज्यों कच्चा तेल एक्सप्रेस ने रफ्तार पकड़ी, महंगाई एक्सप्रेस भी दौड़ने लगी। कच्चा तेल एक्सप्रेस को रोकने के लिए जब सरकार ने 5 जून को पेट्रोल-डीजल-गैस की कीमतें बढ़ाने का ब्रेक लगाया तो यह जानते हुए भी कि इससे महंगाई एक्सप्रेस भी रफ्तार पकड़ लेगी।

और इसमें कोई संदेह नहीं है कि कीमतों में की गई इस बढ़ोतरी का असर महंगाई पर पड़ना ही है, जोकि अगले सप्ताह के आंकड़ों में नजर आएगा। जाहिर है, जून के शुरुआती आंकड़े आने पर इसका नौ प्रतिशत के पार जाना तय है।

महंगाई की इसी हौलनाक रफ्तार से खौफजदा होकर उसने 11 जून को रेपो रेट बढ़ाने का ब्रेक भी लगा दिया, यह जानते हुए भी कि इससे देश में मानसून के काले बादल आए न आए, मंदी के काले बादलों के आने की पूरी संभावना है। यानी सरकार के लिए वाकई धर्मसंकट है कि वह किसकी रफ्तार को थामने में अपनी ताकत झोंके।

मजबूरी भांपकर लिहाजा उसने भी लगता है कुदरत के हाथों खुद को छोड़ दिया है। तभी सरकार का कमोबेश हर महारथी हथियार डालकर बस काले बादलों के आने की आस लगाए बैठ गया है। आइए देखते हैं, क्या है इस साल की शुरुआत से ही महंगाई और कच्चे तेल और मानसून की चाल

महंगाई एक्सप्रेस

महंगाई की दर 2008 के शुरुआती तीन महीनों में दुगुनी हो गई है। इसके  सफर पर अगर एक नजर डालें, तो पता चलेगा कि किस तरह ट्रैफिक की परवाह किये बिना मुई महंगाई ने अपनी रफ्तार कायम रखी है। जनवरी की शुरुआत में अगर इसकी रफ्तार देखें तो 5 जनवरी को समाप्त हुए सप्ताह में महंगाई दर 3.79 प्रतिशत थी।

जैसे ही जनवरी खत्म होने पर था, महंगाई की रफ्तार और तेज हो गई और यह 4 प्रतिशत के आंकड़े को भी पार कर गई। जनवरी की ठंड में महंगाई की इस रफ्तार को देखकर लोगों को पसीने आने लगे थे। वैसे भी सभी यह कयास लगा ही रहे थे कि इतनी तेज रफ्तार पर एकाएक ब्रेक भी तो नहीं लग सकता। वहीं हुआ जिसका अंदेशा था। फरवरी में महंगाई अपनी रफ्तार को कायम रखते हुए मार्च स्टेशन पर पहुंची और मार्च के गुजरते-गुजरते इसने 7 प्रतिशत के आंकड़े को पार किया।

इसके बाद अप्रैल स्टेशन पर महंगाई एक्सप्रेस पहुंची और 26 अप्रैल को समाप्त हुए सप्ताह में इसका आंकड़ा 7.61 प्रतिशत था। मई में यह 8 फीसदी को पार कर गई। जनवरी से मई तक अगर महंगाई एक्सप्रेस की रफ्तार देखें तो राजधानी और शताब्दी भी शर्माने को मजबूर हो जा रही है। इससे लगता है कि जून खत्म होते इसकी रफ्तार 9 प्रतिशत तक पहुंच ही जाएगी।

कच्चा तेल एक्सप्रेस

अब आपको एक और एक्सप्रेस के रफ्तार की बात बताते हैं। कच्चा तेल एक्सप्रेस, जिसने अपनी रफ्तार से कई देशों के होश उड़ा दिए। आलम यह है कि 6 जून 2008 को इसकी कीमत 138.83 डॉलर प्रति बैरल हो गई है। इसके रफ्तार की दास्तान दिसंबर 2007 से शुरु होती है, जब प्रति बैरल कच्चे तेल की कीमत 99.29 डॉलर थी।

2 जनवरी 2008 को कच्चे तेल एक्सप्रेस ने अपनी रफ्तार की सेंचुरी बनाई और यह 100 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गई। इसके अगले दिन 3 जनवरी को इसकी कीमत 100.05 डॉलर प्रति बैरल थी। 29 फरवरी यूं तो चार साल में एक बार आता है, लेकिन 2008 की यह फरवरी लोगों को एक लंबे अरसे तक याद रहेगी क्योंकि तेल 103 डॉलर को जो पार कर चुका था।

3 मार्च को इसकी कीमत 104 डॉलर प्रति बैरल थी। अप्रैल के मध्य तक इसकी कीमत 114 डॉलर की रफ्तार पकड़ चुकी थी। 25 अप्रैल को कच्चे तेल की कीमत 119.10 डॉलर प्रति बैरल थी। मई में एक तरफ लोगों को ताबड़तोड़ पसीना आ रहा था लेकिन इस बार इसकी वजह केवल कड़ी धूप नहीं थी। 9 मई को यह 125 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर थी। कच्चे तेल एक्सप्रेस की रफ्तार तो इस कदर बढ़ती जा रही है कि लोगों को इसके 200 डॉलर प्रति बैरल पार करने पर भी आश्चर्य नहीं होगा।

मानसून एक्सप्रेस

मानसून एक्सप्रेस तो सीजन स्पेशल ट्रेन की तरह है, लेकिन लोगों को इसका बेसब्री से इंतजार रहता है। वैसे मानसून ने भी अपनी चाल पकड़ ली है। 31 मई को दक्षिण पश्चिम मानसून केरल पहुंच चुका है। मौसम विभाग के अनुमान के मुताबिक यह अनुमान लगाया जा रहा था कि दिल्ली में मानसून एक्सप्रेस 1 जुलाई को पहुंच जाएगी।

लेकिन इसकी भी रफ्तार ने मौसम विभाग को यह कहने पर मजबूर कर दिया कि यह एक्सप्रेस समय से पहले स्टेशन पहुंचेगी। ताजा अनुमान के मुताबिक अगले दो से तीन दिनों में मानसून एक्सप्रेस दिल्ली पहुंचने वाली है। अगर यह सही रहा तो लोग मेट्रो की रफ्तार भूलकर मानसून एक्सप्रेस पर सवारी करेंगे।

मौसम विभाग ने यह भी कहा है कि 15 जून तक गुजरात, मध्यप्रदेश, बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों तक पहुंच जाएगा। अनुमान के मुताबिक राजस्थान, हरियाणा, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, पंजाब और जम्मू-कश्मीर में 1 जुलाई तक मानसून एक्सप्रेस पहुंच जाएगी।

आने वाली है यूरिया एक्सप्रेस भी?

उर्वरकों की कमी को लेकर भी सुगबुगाहट तेज हो गई है। एक प्रमुख उर्वरक यूरिया के लिए भारत सरकार मुख्यत: आयात पर ही निर्भर है। हाल ही में यूरिया की अंतरराष्ट्रीय कीमत 175 डॉलर प्रति मीट्रिक टन से बढ़कर 370 डॉलर हो चुकी है। इसके बावजूद सरकार इसे भारी सब्सिडी पर किसानों को मुहैया कराती है। तो कहीं ऐसा न हो कि एक और एक्सप्रेस ने अपनी रफ्तार बढ़ा दी हो… 

जाने क्या होगा अगले हफ्ते…

एजेंसी         महंगाई के बारे में भविष्यवाणी   
                                 (प्रतिशत में)
क्रिसिल                          9.5
एक्सिस बैंक                 9.8
एचडीएफसी बैंक          9.8-10.2
लीमान ब्रदर्स                10

First Published : June 14, 2008 | 12:08 AM IST