‘मतगणना के बाद बढ़ेंगे पेट्रोल के दाम’

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 9:26 PM IST

बीएस बातचीत

पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने इंदिवजल धस्माना को एक साक्षात्कार में बताया कि सरकार ने आगामी विधानसभा चुनावों के कारण पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें नहीं बढ़ाई हैं। लेकिन पेट्रोलियम सब्सिडी में कटौती से संकेत मिलते हैं कि कीमतें जल्द बढ़ेंगी और उर्वरक तथा खाद्य सब्सिडी में भी कटौती के संकेत मिल रहे हैं। बातचीत के संपादित अंश:
बजट का पूरा ध्यान पूंजीगत खर्च आधारित आर्थिक सुधार पर है। कोविड की वजह से मंदी के रुझान से जूझ रही अर्थव्यवस्था के संदर्भ में इस तरह की रणनीति पर आपकी क्या राय है?
हमारी समस्या पूंजी की कमी नहीं है। हमारी समस्या रोजगार की कमी है। भारत में बेरोजगारी का स्तर ज्यादा है। शहरी बेरोजगारी की दर लगभग 8.2 प्रतिशत है। ग्रामीण बेरोजगारी दर लगभग 5.6 प्रतिशत है, जो ज्यादातर छिपी हुई बेरोजगारी के कारण है। हमें रोजगार पैदा करने वाले निवेश की आवश्यकता है, न कि पूंजी आधारित निवेश की। हमारे पास काफी पूंजी है लेकिन हमारे पास नौकरियां नहीं हैं। इसलिए मैं पूंजी आधारित निवेश के दृष्टिकोण को अस्वीकार करता हूं और इसका विरोध भी करता हूं।

आपने एक प्रेस वक्तव्य में राजकोषीय पहलू को लेकर भी बजट की आलोचना की है। आपने जिन बातों पर गौर करने की बात कही है, अगर बजट में इन सभी चिंताओं का समाधान किया गया होता, तो क्या इससे केंद्र का राजकोषीय घाटा नहीं बढ़ता?
मैं इस बात से नाखुश नहीं हूं कि उन्होंने राजकोषीय घाटे को ज्यादा कम नहीं किया। यह वह समय है जब राजकोषीय उदारीकरण पर जोर होना चाहिए। आप दोहरा रहे हैं कि आप आज से तीन साल बाद 2025-26 में 4 प्रतिशत राजकोषीय घाटे के लक्ष्य तक पहुंचेंगे। अगर यह आपका लक्ष्य है तब अगले वित्त वर्ष के लिए 0.5 प्रतिशत अंक तक की कमी लाना पर्याप्त नहीं होगा। आपको अब भी बाकी के दो वर्षों में लगभग 2.5 प्रतिशत अंक तक की कमी करनी होगी। आप ऐसा कैसे करेंगे? इस वर्ष के लिए मैं 6.9 प्रतिशत राजकोषीय घाटे के लिए तैयार हूं।

आपने यह भी कहा था कि बड़ी मात्रा में बाजार उधारी से निजी निवेश पर असर पड़ेगा लेकिन सरकार का मानना है कि इससे ये निवेश बढ़ेंगे। आप सरकार के पक्ष को कैसे देखते हैं?
यह एक असामान्य आर्थिक सिद्धांत है। अब तक मैंने हर (आरबीआई) गवर्नर, वित्त मंत्री को यह कहते हुए सुना है कि अगर सरकार बाजार से अधिक उधार लेती है तो इसका असर निजी उधारी पर पड़ता है क्योंकि निजी क्षेत्र के पास बाजार में उधार लेने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं होगा और यहां तक कि अगर पैसा उपलब्ध भी होता तब ब्याज दरें अधिक होंगी। पिछले 20 वर्षों से हमने यही सुना है। आज, आप इसके उलट कहते हैं कि अगर सरकार अधिक उधार लेती है तो इससे निजी निवेश बढ़ेगा। यह अतार्किक है। यानी आपने 20 साल तक जो कहा वह गलत था या फिर आप अब जो कह रहे हैं वह गलत है। मुझे लगता है कि अब आप जो कह रहे हैं वही गलत है।

आपके मुताबिक बजट में हर प्रकार की सब्सिडी में कटौती की गई। क्या आपको नहीं लगता कि यह राजकोषीय मोर्चे पर मजबूती लाने के फैसले का हिस्सा था?
यह बिल्कुल गलत है। लोग आज महंगाई से पीडि़त हैं। थोक मूल्य सूचकांक (मुद्रास्फीति) 12 प्रतिशत के स्तर को पार कर गई है और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) 6 प्रतिशत की ऊपरी सीमा को छू रही है। यह सब्सिडी में कटौती करने का वक्त नहीं है जब महंगाई अधिक है, लोगों ने नौकरियां गंवा दी हैं, उनकी आमदनी कम हो रही है और वे महामारी के कारण पीडि़त हैं। पेट्रोलियम, कच्चे तेल की कीमतें 90 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई हैं, ऐसे में पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें सामान्य रूप से बढ़ेंगी। सरकार ने चुनावों की वजह से इस पर नियंत्रण किया हुआ था। आप मेरी बात याद रखिएगा कि मतगणना की तारीख के बाद ही पेट्रोलियम की कीमतें बढ़ जाएंगी। चालू वर्ष में 6,517 करोड़ रुपये की पेट्रोलियम सब्सिडी है और आप इसे अगले वर्ष घटाकर 5,813 करोड़ रुपये तक कर रहे हैं। इसके संकेत क्या हंै? इसका संकेत यही है कि कच्चे तेल की कीमतें बढ़ेंगी और मैं सब्सिडी में कटौती कर रहा हूं। आप तैयार रहें, कीमतें बढ़ेंगी। यही बात उर्वरक के साथ भी है। वे किसानों को क्या बताते हैं? आप खुद को तैयार करें, उर्वरक की कीमतें बढऩे जा रही हैं। खाद्य सब्सिडी में निर्ममता से कटौती की गई है। चालू वर्ष की सब्सिडी 286,469 करोड़ रुपये है। आपने इसे घटाकर 206,831 करोड़ रुपये कर दिया है यानी 80,000 करोड़ रुपये की कटौती की गई है जो लगभग 40 प्रतिशत है। इसका क्या मतलब है? या तो आप राशन की मात्रा कम कर देंगे, जो मुश्किल है इसीलिए आपको कीमतें बढ़ानी पड़ेंगी।

आपने यह भी कहा कि बजट में उन 142 अति धनाढ्य लोगों से संसाधन जुटाने के बारे एक शब्द नहीं बोला गया, आपके अनुसार जिनकी संपत्ति पिछले दो वर्षों में 2,314,000 करोड़ रुपये से बढ़कर 5,316,000 करोड़ रुपये हो गई है। लेकिन क्या ऐसे कदम से इतनी संपत्ति बनाने वालों का डर नहीं बढ़ेगा?
मैं संपत्ति सृजन के खिलाफ  नहीं हूं। मैं संपत्ति संचय का भी समर्थन करता हूं क्योंकि नई संपत्ति, नई पूंजी है और नई पूंजी ही नया निवेश है। मुद्दा यह है कि किस बिंदु पर पूंजी निर्माण को रोकना चाहिए। इसकी कुछ सीमा तो कहीं तय करनी होती है। 142 लोगों की 53 लाख करोड़ रुपये की संपत्ति क्या है? इसका मतलब है कि इन 142 लोगों की औसत संपत्ति 37,000 करोड़ रुपये है। यह शायद इस साल और अगले साल और बढ़ जाएगा। आखिर यह कब बंद होगा? अगर हमारी कल्पना से भी परे कई अमीर लोग होंगे तब आपको इसी संपत्ति से संसाधन जुटाने चाहिए।

आपने बजट को पूंजीवादी बताया। पूंजीवाद के खिलाफ  आपका अचानक गुस्सा क्यों बढ़ गया?
पूंजीवाद के खिलाफ  कोई गुस्सा नहीं है। मेरा मानना है कि विनियमित पूंजीवाद एक प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था का चालक है। एक प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ती है और अधिक संपत्ति का सृजन करती है और इसकी वजह से लोगों के साथ अधिक संपत्ति साझा होती है। लेकिन इसके साथ ही जनकल्याण भी होना चाहिए। अधिक गरीब लोगों को नकद सहायता देने के बारे में एक शब्द भी बजट में नहीं कहा गया। अति गरीब की श्रेणी में आ चुके 4.6 करोड़ लोगों, नौकरियां गंवाने वाले लोगों के बारे में बजट में एक भी शब्द नहीं कहा गया। उन 60 लाख सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों के बारे में एक भी शब्द नहीं कहा गया जो बंद हो गए हैं। इसके अलावा उन 84 प्रतिशत परिवारों को सहूलियत देने के लिए कुछ नहीं कहा गया जिनकी आमदनी खत्म हो गई। इसीलिए, मैंने इसे पूंजीवादी बजट कहा था।

यदि आप वित्त मंत्री होते तो आप इस बजट में क्या करते?
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में वित्त मंत्री के पास करने के लिए कुछ भी नहीं है। वित्त मंत्री को प्रधानमंत्री कार्यालय में तैयार किए गए भाषण को ही पढऩा होता है। आप मुझे बताइए कि किस प्रधानमंत्री के वित्त मंत्री की बात कह रहे हैं?

मनमोहन सिंह की सरकार के वित्त मंत्री होते तो क्या करते…
मनमोहन सिंह के नेतृत्व में वित्त मंत्री ने 2022-23 का बजट तैयार किया होता तो उसमें तीन बिंदुओं पर जोर दिया जाता जैसे कि रोजगार के मौके कैसे तैयार किए जाए, जनकल्याण के मकसद से पिछले दो वर्षों में पीडि़त लोगों को राहत देने के लिए क्या किया जाए और संपत्ति सृजन के लिए क्या किया जाए। इन सभी बिंदुओं को मनमोहन सिंह सरकार के बजट में संतुलित किया जाता।

लेकिन क्या आप इस सरकार को इस बात का श्रेय देंगे कि पांच विधानसभा चुनावों के बावजूद लोकलुभावन बजट पेश करने से परहेज किया गया?
उनका यही कहना है कि पांच चुनाव नजदीक हैं लेकिन हम आम तौर पर लोकलुभावन घोषणाएं करते रहते हैं लेकिन इस बार हमने खुद को संयमित किया है, हम लोकलुभावन घोषणाएं नहीं कर रहे हैं। आप इस वजह से वित्त मंत्री को बधाई देना चाहते हैं कि उन्होंने कुछ गलत नहीं किया तो मेरी बधाई पाने के लिए उन्हें सही काम करना होगा। 

First Published : February 4, 2022 | 10:58 PM IST