योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया का सलाहकारों के प्रति लगाव जगजाहिर है।
अतीत में झांके तो पता चलेगा कि उनके इस लगाव ने कई विवादों को जन्म दिया है। इसके बावजूद यह दिलचस्प तथ्य है कि अहलूवालिया के साथ फिलहाल 31 सलाहकार शामिल हैं।
अहलूवालिया ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘योजना आयोग कुछ ऐसे काम को भी अंजाम देता है, जो विशिष्ट और लघु अवधि के होते हैं। ऐसे कामों के लिए कुछ समय के लिए सलाहकारों को नियुक्त करना ठीक रहता है। इन सलाहकारों को नियुक्त कर आयोग लघु अवधि के कामों को जल्द से जल्द पूरा कर लेता है।’
योजना आयोग में कुल 155 पदों (इसमें पेशेवर और सरकारी अधिकारी भी शामिल हैं) को भरने की मंजूरी है।
शोध अधिकारी के स्तर से शुरू करते हुए आयोग में विभिन्न ग्रेडों और पदों के लिए भर्तियां होती हैं। फिलहाल यहां 59 अधिकारी नियुक्त हैं। मौजूदा समय में इनमें से 4 अधिकारी विदेशों में प्रतिनियुक्त हैं। वहीं सलाहकारों का जिक्र करें, तो इनकी स्वीकृत संख्या पहले केवल 25 ही थी।
सूत्रों का कहना है कि 2004 में जब योजना भवन की कमान अहलूवालिया के हाथों में सौंपी गई थी, तो उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सामने सलाहकारों की संख्या बढ़ाकर 80 करने की सिफारिश कर दी। कैबिनेट ने सलाहकारों के 50 पदों को मंजूरी दे दी।
फिलहाल, नजारा यह है कि जहां बाबुओं के 60 फीसदी से अधिक पद खाली हैं, वहीं सलाहकारों के 60 फीसदी से अधिक पद भरे जा चुके हैं। अहलूवालिया अपनी टीम में सलाहकारों की भर्ती करने में भी विशेष सतर्कता बरतते हैं।
वे अपनी टीम में युवा और अनुभवियों का बेहतर तालमेल बनाने की कोशिश करते हैं।
अहलूवालिया बताते हैं, ‘टीम में शामिल 31 सलाहकारों में से 7 की उम्र 50 साल से अधिक है और 11 की 30 साल से अधिक। बाकी बचे 13 में से 2 को स्नातकोत्तर करने के बाद ही नियुक्त कर लिया गया था। बाकी के पास कम से कम 2 सालों का अनुभव था।’
सूत्रों का कहना है कि युवा सलाहकारों को उद्योग और ऊर्जा की बजाय बुनियादी और समाज सेवा क्षेत्रों में अधिक देखा जा सकता है। वीआईपी (विशिष्ट व्यक्तियों) के बच्चे भी योजना आयोग में अनुभव प्राप्त करने की ख्वाहिश रखते हैं।
खेल मंत्री एम. एस. गिल की बेटी कावेरी गिल कार्यक्रम मूल्यांकन विभाग में सलाहकार है। योजना आयोग युवा सलाहकारों के लिए बेहतर करियर की चाबी की तरह काम करती है।
यहां का अनुभव पाते ही निजी कंपनियों और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों में मोटी तनख्वाह की पेशकश मिलने लगती है।
वर्ष 2004 में सलाहकारों को भर्ती किये जाने की वजह से ही अहलूवालिया को वामपंथियों का विरोध झेलना पड़ा था।