नीति आयोग ने सुझाव दिया है कि उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना का लाभ 100 करोड़ रुपये से अधिक निवेश वाले वाले मझोले उद्योगों को भी दिया जाना चाहिए। आयोग का मानना है कि इससे कोविड से परेशान सूक्ष्म, लघु, मझोले उद्यमों (एमएसएमई) को मदद मिल सकेगी। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी के अनुसार नीति आयोग ने मझोले आकार के उद्यमों को भी पीएलआई योजना का लाभ देने के लिए विभिन्न मंत्रालय को पत्र लिखे हैं। आयोग ने अपने पत्र में कहा है कि यह पहल करने से देश को आत्मनिर्भर होने में मदद मिलेगी और मझोले स्तर पर भी घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा मिलेगा।
भारत को विनिर्माण का प्रमुख केंद्र बनाने और इसे वैश्विक आपूर्ति व्यवस्था से सक्रिय रूप से जोडऩे के लिए पीएलआई योजना की शुरुआत की गई है। इस योजना के तहत कंपनियों को 13 क्षेत्रों के लिए 2019-20 को आधार वर्ष मानते हुए अगले पांच वर्षों तक के लिए बिक्री पर प्रोत्साहन देने का प्रावधान है। हाल में दूरसंचार क्षेत्र के लिए घोषित पीएलआई योजना में एमएसएमई को भी लाभ देने की बात कही गई है। इसी तरह, दूसरी इकाइयों के लिए 100 करोड़ रुपये निवेश सीमा के साथ 6 प्रतिशत से 4 प्रतिशत तक प्रोत्साहन दिया जाएगा। दवा क्षेत्र के लिए पीएलआई योजना में भी एमएसएमई के लिए आर्थिक प्रोत्साहन दिए जाने का प्रावधान है और उन्हें एक अलग श्रेणी के रूप में वर्गीकृत किया गया है। नीति आयोग ने सुझाव दिया है कि जिन पीएलआई योजनाओं की घोषणाएं हो चुकी हैं उनमें संशोधन नहीं किए जाएंगे लेकिन जहां संभव है वहां इसके तहत मझोले आकार के उद्योगों को लाने के लिए नए दिशानिर्देश जारी किए जाएंगे। दवा, दवा मध्यस्थ, स्वास्थ्य उपकरण, मोबाइल, टैबलेट, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं दूरसंचार के अलावा सरकार सात और क्षेत्रों के लिए पीएलआई योजना की घोषणा करेगी।
अधिकारी ने कहा, ‘इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में अधिक निवेश सीमा एवं बिक्री में बढ़ोतरी का लक्ष्य कम किया जा सकता है क्योंकि ऐसी कंपनियों की संख्या अधिक नहीं होगी जिनके पास इस तरह की पूंजी निवेश करने के लिए उपलब्ध होगी।’