हाइवे परियोजनाओं के निर्माण में निजी क्षेत्रों को आकर्षित करने के लिए सरकार निजी-सार्वजनिक साझेदारी में बनने वाले हाइवे परियोजनाओं की लागत को बढ़ाने पर विचार कर रही है।
इससे मौजूदा समय में बन रही करीब 50 हाइवे परियोजनाओं को लाभ होगा, जो पूंजी की किल्लत का सामना कर रही हैं। अनुमान के मुताबिक, इन परियोजनाओं को करीब 50,000 करोड़ रुपये की जरूरत है।
सरकार परियोजना के लिए फंडिंग अनुपात में भी बदलाव करने की योजना बना रही है। सूत्रों के मुताबिक मौजूदा पूंजी 40 फीसदी को बढ़ाकर 60 फीसदी करने की योजना है। वर्तमान समय में सरकार परियोजना की कुल लागत का 40 फीसदी सहयोग करती है, जिसे बढ़ाकर 60 फीसदी किया जा सकता है।
दरअसल, कई कंपनियां पूंजी की किल्लत के चलते परियोजना को समय पर पूरा करने में असमर्थता जता चुकी हैं। परियोजना लागत बढ़ाने के साथ ही सरकार बीओटी के तहत परियोजना परिचालन की छूट अवधि को मौजूदा 20 साल से बढ़ाने पर भी विचार कर रही है।
सूत्रों का कहना है कि इस अवधि को पांच या दस साल तक बढ़ाया जा सकता है। इससे हाइवे परियोजना में लगी कंपनियां ज्यादा समय तक टोल के जरिए मुनाफा कमा सकती हैं।
दरअसल, कच्चे माल की लागत बढ़ने और ऊंची ब्याज दरों के कारण परियोजना में लगीं कंस्ट्रक्शन कंपनियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
वहीं कम फायदा होता देख कंपनियों को बैंकों से भी कर्ज मिलने में परेशानी हो रही है। लेकिन टोल वसूली की अवधि पांच से दस साल बढ़ाने से कंपनियों के राजस्व में वृद्धि होगी। यही वजह है कि बैंक भी उन्हें कर्ज देने से परहेज नहीं करेंगे।
योजना आयोग के एक सूत्र ने बताया कि तमाम परियोजनाएं दो साल पहले बनी थीं और उनकी लागत भी उसी समय के मुताबिक तय की गई थी, लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है।