कैलेंडर वर्ष 2025 में अब तक डॉलर के मुकाबले रुपये में मजबूती आई है, लेकिन यूरो और पाउंड के मुकाबले वह उल्लेखनीय रूप से कमजोर हुआ है। इस अवधि के दौरान यूरो और पाउंड के मुकाबले रुपया क्रमशः 6.83 प्रतिशत और 5.44 प्रतिशत कमजोर हुआ है, क्योंकि डॉलर के मुकाबले ये दोनों मुद्राएं उल्लेखनीय रूप से मजबूत हुई हैं।
2025 में अब तक डॉलर के मुकाबले रुपया स्थिर बना रहा है और इसमें 0.01 प्रतिशत की मजबूती आई है। चालू कैलेंडर वर्ष में डॉलर के मुकाबले यूरो 8.13 प्रतिशत मजबूत हुआ है जबकि इसी अवधि में पाउंड 6.12 प्रतिशत मजबूत हुआ है। डॉलर सूचकांक से विभिन्न मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की ताकत का पता चलता है, जिसमें 2025 में 7.09 प्रतिशत गिरावट आई है। शुक्रवार को यह 100.79 पर बंद हुआ।
करूर वैश्य बैंक के ट्रेजरी प्रमुख वीआरसी रेड्डी ने कहा, ‘ट्रेड टैरिफ के कारण यूरो और पाउंड में डॉलर के मुकाबले बहुत मजबूती आई है।’ उन्होंने कहा, ‘हालांकि कुछ सकारात्मक प्रगति हुई है और डॉलर सूचकांक मजबूत हो रहा है। चीन और अमेरिका के बीच कारोबार को लेकर भी कुछ उम्मीद बढ़ी है।’
अमेरिका और ब्रिटेन ने 9 मई को व्यापार समझौता किया था, जिससे शुल्क कम करके और बाजार तक पहुंच बढ़ाकर आर्थिक संबंध बढ़ाए जा सकें। इस समझौते के तहत हर साल 1,00,000 ब्रिटिश कारों के आयात पर अमेरिकी शुल्क में कटौती की गई है तथा ब्रिटेन के इस्पात और एल्युमीनियम पर शुल्क हटा दिया गया है, जबकि ब्रिटेन ने अमेरिकी गोमांस और एथेनॉल के सीमित, शुल्क मुक्त आयात पर सहमति व्यक्त की है।
इस समझौते का बाजार ने स्वागत किया है। ब्रिटेन से निर्यात की मजबूत संभावना और ब्रिटिश अर्थव्यवस्था में नए विश्वास के कारण निवेशकों की धारणा में सुधार होने से अमेरिकी डॉलर के मुकाबले ब्रिटिश पाउंड में मजबूती आई। बहरहाल डॉलर में सीमित तेजी आई है, क्योंकि फेडरल रिजर्व द्वारा दरों में कटौती जारी रखने की संभावना से इसके प्रदर्शन पर असर पड़ा। एक बाजार हिस्सेदार ने कहा, ‘डॉलर का मूल्यांकन उसकी क्षमता से ज्यादा हो गया है। आगे यूरो और पाउंड में और तेजी की संभावना है।’
उन्होंने कहा कि अगर हम आंकड़ों को देखें तो अमेरिकी फेडरल रिजर्व दर में कटौती कर सकता है, जिसका मतलब यह हुआ कि डॉलर सूचकांक फिर गिरकर 100 से नीचे आ सकता है। अमेरिका के आर्थिक परिदृश्य को लेकर बढ़ती चिंता के कारण 2025 की शुरुआत में यूरोप की प्रमुख मुद्राएं उल्लेखनीय रूप से डॉलर के मुकाबले मजबूत हुईं। निवेशकों ने अपने पोर्टफोलियो का आवंटन यूरोप और ब्रिटेन की ओर किया।