चालू वित्त वर्ष के पहले 8 महीनों के दौरान विशेष आर्थिक क्षेत्रों (सेज) से निर्यात की वृद्धि कुल मिलाकर देश से हुए निर्यात की वृद्धि की तुलना में सुस्त रही है।
सरकार के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत ने अप्रैल-नवंबर के दौरान 418.56 अरब डॉलर के वस्तु एवं सेवाओं का निर्यात किया है, जो पिछले साल की समान अवधि की तुलना में करीब 36 प्रतिशत ज्यादा है। वहीं इस दौरान सेज से निर्यात 31 प्रतिशत बढ़कर 87.95 अरब डॉलर हुआ है।
यह कम से कम पिछले 6 साल से चल रहे ट्रेंड के विपरीत है। इस दौरान सेज से निर्यात की हिस्सेदारी भारत के कुल निर्यात में पांचवां हिस्सा रही है।
वित्त वर्ष की शुरुआत से विदेश भेजे वाले शिपमेंट के आंकड़ों से पता चलता है कि महामारी की पहली लहर का असर खत्म हो गया है और अर्थव्यवस्थाएं खुलने की वजह से विदेशी बाजार में मांग बढ़ी है, इसकी एक वजह दबी हुई मांग भी है। अगर इस साल के सेज निर्यात का विस्तृत ब्योरा देखें तो सॉफ्टवेयर और सेवा के निर्यात की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा 64 प्रतिशत रही है और उसके बाद वाणिज्यिक वस्तुओं के निर्यात का स्थान है, जिसमें विनिर्माण शामिल है।
सॉफ्टवेयर व सर्विस का निर्यात 17 प्रतिशत बढ़कर 51.46 अरब डॉलर हुआ है, जबकि वाणिज्यिक वस्तुओं का निर्यात 62 प्रतिशत बढ़कर 31.51 अरब डॉलर रहा है। इसे महामारी के बाद रिकवरी के बाद विनिर्माण क्षेत्र में सुधार के संकेत मिलते हैं। कुछ आधार का भी असर रहा है और कुछ कीमतों में बढ़ोतरी का भी असर है।
ऐसे जोन से विनिर्माण के निर्यात की हिस्सेदारी कम बनी हुई है, जबकि सॉफ्टवेयर और सर्विस निर्यात तेज है और महामारी के बावजूद इसमें तेज गिरावट नहीं आई है। उद्योग के अनुमान के मुताबिक विनिर्माण में पेट्रोकेमिकल्स, रत्न एवं आभूषण की हिस्सेदारी 60 प्रतिशत से ज्यादा है।
ईओयू और सेज के निर्यात संवर्धन परिषद (ईपीसीईएस) के महानिदेशक आलोक वर्धन चतुर्वेदी के मुताबिक, ‘सेज के लिए दिए गए कुछ प्रत्यक्ष कर प्रोत्साहन समय के साथ वापस ले लिए गए। परिणामस्वरूप नीतिगत अस्थिरता के कारण निवेश प्रभावित हुआ। बड़े पैमाने पर नीतिगत बदलाव होने के कारण कोई वक्त का अनुमान नहीं लगा सकता। इससे निवेशकों का भरोसा डगमगाया है। विनिर्माण क्षेत्र में दीर्घावधि निवेश की जरूरत होती है, ऐसा सेवा के मामले में नहीं है। ऐसे में सेवा क्षेत्र को सस्ते श्रम लागत और भारत के प्रशिक्षित पेशेवरों का लाभ मिल जाता है।’