सरकार ने सूक्ष्म, मझोले एवं लघु उद्यमों (एमएसएमई) को राहत देने के लिए ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) में संशोधन किए हैं। एक अध्यादेश के जरिये सरकार ने एमएसएमई के लिए प्रीपैकेज्ड स्कीम का प्रावधान किया है। इस प्रीपैकेज्ड स्कीम की खास बात यह होगी कि निगमित कर्जधारक मुश्किल दौर से गुजर रहीं कंपनियों के लिए खुद ही समाधान योजना पेश कर सकते हैं।
प्रीपैकेज्ड स्कीम ऐसी व्यवस्था है, जिसमें किसी कंपनी को दिवालिया प्रक्रिया में लाने से पहले उस कंपनी के प्रवर्तक कर्जदाताओं के समक्ष समाधान योजना पेश की जाती है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने एमएसएमई क्षेत्र की तकलीफों को ध्यान में रखते हुए 4 अप्रैल को इस अध्यादेश पर मुहर लगा दी। आईबीसी में संशोधन के बाद यह प्रावधान लागू होने से सभी संबंधित पक्षों को कम खर्च के साथ तेजी से बेहतर मूल्यांकन तय करने में मदद मिलेगी। पूरी प्रक्रिया इस तरह अंजाम दी जाएगी कि कारोबार में किसी तरह का खलल नहीं आएगा और किसी की नौकरी भी नहीं जाएगी।
इस योजना का मकसद निश्चित समय में तेजी से समाधान खोजना ही नहीं है बल्कि बैंकों, प्रवर्तकों और खरीदार की आपसी सहमति से तैयार योजना को कानूनी मंजूरी भी देना है। आईबीसी में प्रस्तावित डेटर-इन-पजेशन मॉडल के अनुरूप प्रीपैकेज्ड स्कीम का हिस्सा बनने वाली कंपनी का प्रबंधन निगमित कर्जधारक के निदेशक मंडल या उसके साझेदारों के पास ही रहेगा। लेकिन इसके लिए कुछ शर्तें पूरी करनी होंगी। विधि जानकारों ने कहा कि कार्यवाही शुरू करने के लिए कर्ज में चूक की न्यूनतम सीमा 1 लाख रुपये की गई थी लेकिन अब सरकार ने एक नया प्रावधान जोड़कर इसमें बदलाव किया है। इसमें सरकार अधिसूचना जारी कर भुगतान में चूक की सीमा तय कर सकती है, जो 1 करोड़ रुपये से अधिक नहीं होगी। कानून के जानकारों ने कहा कि जिन मामलों में कोविड-19 महामारी की वजह से भुगतान में हुई चूक (24 मार्च 2020 से 24 मार्च 2021 के बीच के मामले) के बाद समाधान प्रक्रिया शुरू नहीं की जा सकती है, वहां प्रीपैकेज्ड स्कीम मजबूत विकल्प हो सकती है।
विशेषज्ञों के अनुसार प्रीपैकेज्ड स्कीम का एक अहम लाभ यह होगा कि ऋणधारक के तौर पर प्रक्रिया शुरू करने से कानूनी विवाद कम होगा और समाधान भी तेजी से निकलेगा। एमएसएमई के लिए की गई इस नई पहल पर शार्दूल अमरचंद मंगलदास ऐंड कंपनी में पार्टनर मीशा कहती हैं, ‘निश्चित तौर पर यह स्वागत योग्य कदम है। हालांकि उम्मीद की जा रही थी कि एमएसएसमई से इतर दूसरी इकाइयों को भी यह सुविधा दी जाएगी। इस ढांचे में एनसीएलटी की भूमिका एवं पूरी प्रक्रिया में उसके हस्तक्षेप को कम नहीं किया गया है। यह प्रक्रिया केवल उन्हीं कंपनियों द्वारा शुरू की जा सकती हैं, जिन्हें उनके 66 प्रतिशत अनरिलेटेड फाइनैंशियल क्रेडिटर्स की अनुमति प्राप्त होगी। इससे विवाद कम होगा और सामान्य निगमित ऋण शोधन अक्षमता समाधान प्रक्रिया (सीआईआरपी) के मुकाबले प्रक्रिया अधिक सरलता से आगे बढ़ेगी।’ सीआईआरपी के उलट प्रीपैकेज्ड स्कीम में समय सीमा घटाई गई है।
एसबीआई का आवास ऋण महंगा, रियायती योजना बंद
भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने आवास ऋण पर ब्याज दर को बढ़ाकर 6.95 फीसदी कर दिया है। नई दरें 1अप्रैल से लागू हो गई हैं। इस संशोधन के साथ ही 6.70 फीसदी की रियायती ब्याज दर की सीमित अवधि की व्यवस्था 31 मार्च को समाप्त हो गई है। एसबीआई ने सीमित अवधि के लिए 75 लाख रुपये तक का आवास ऋण 6.70 फीसदी ब्याज पर देने की पेशकश की थी। 75 लाख से पांच करोड़ रुपये के आवास ऋण पर ब्याज दर 6.75 फीसदी थी। इसी तरह एचडीएफसी ने भी 6.7 फीसदी की रियायती आवास ऋण योजना बंद कर दी है। अन्य बैंक भी इसी तरह कदम उठा सकते हैं।