कुछ मंदी ने मारा तो कुछ चीन ने

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 08, 2022 | 9:08 AM IST

मंदी की मार से सबसे ज्यादा भारतीय निर्यात उद्योग की अहम कड़ी रेडीमेड गारमेंट (सिले-सिलाए कपड़े) कारोबारियों पर पड़ी है।


मांग में आई कमी से गारमेंट का काम करने वाले छोटे कारोबारियों का तकरीबन 90 फीसदी काम ठप हो गया है। हालात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि विदेशी मांग पर आधारित कपड़ा निर्यात करने वाले लगभग 25 फीसदी कारखानों में ताला जड़ चुका है।

मुंबई के धारावी में सना गारमेंट्स चलाने वाले नफीस अहमद शेख कहते हैं कि एक साल पहले तक विदेशों में विशेषकर, खाड़ी देशों में मैक्सी और नाइट गाउन की बहुत मांग रहती थी। हर महीने 3000 से 4000 पीस का ऑर्डर आसानी से मिल जाता था, लेकिन आज 100 पीस का ऑर्डर भी मुश्किल से मिल पाता है।

यही कारण है कि 35 सिलाई मशीनों की जगह इस समय सिर्फ 8 ही चल रही हैं। काम जोरों पर था, तो 60 लोग सिलाई का काम करते थे और बाकी कारीगर कढ़ाई, प्रेस, बटन लगाने और पैकिंग का काम देखते थे। प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से 500 लोगों को काम मिला हुआ था। लेकिन मांग की कमी के चलते यह आंकड़ा सिमट कर 50 कारीगरों तक रह गया है।

शेख के मुताबिक, सिर्फ धारावी में एक हजार से ज्यादा चलने वाली गारमेंट्स की छोटी इकाइयों में से लगभग 25 फीसदी बंद हो चुकी हैं। काम न मिलने की वजह से खर्च भी निकाल पाना मुश्किल हो रहा है।

इसके अलावा, बड़े व्यापारियों को जो माल दिया गया है, उसका भी पूरा पैसा समय से न मिल पाने से कारीगरों को मजदूरी देना भी दूभर हो रहा है।

मंदी के साथ-साथ चीन से आने वाले सस्ते कपड़ों की वजह से भी निर्यात पर असर पड़ा है। चीनी कारोबारी कम कीमतों में माल की आपूर्ति करते हैं, जिसकी वजह से खाड़ी देश के लोग भारतीय कपड़ों से मुंह मोड रहे हैं। जबकि गुणवत्ता के आधार पर चीन के कपड़े कहीं भी भारतीय कपड़ों के आगे नहीं टिक पाते हैं।

मेहनत, ईमानदारी और पक्की जुबान को कारोबार का मूल-मंत्र मानने वाले नफीस ने 1990 में मुंबई में गारमेंट्स कारोबार के चार साल तक गुर सीखने के बाद 1994 में अपने एक दोस्त की मदद से खुद का कारखाना शुरू किया।

शुरुआती दौर में 5 लोगों को लेकर काम शुरू करने वाले नफीस ने अपने भाई लतीफ के साथ मिलकर इस कारोबार को आगे बढाया।

1996 में तक सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा था, लेकिन 1997 से धीरे-धीरे मांग में कमी आनी शुरू हो गई और आज हालात बदतर हो गए हैं। नफीस के अनुसार, माल पहले देना पड़ता है, इसके एक-दो महीने बाद बड़े कारोबारी भुगतान करते हैं।

सीधे तौर पर हम निर्यात नहीं कर सकते हैं, इसी मजबूरी का फायदा उठाकर लोग कीमतें अपनी सुविधा अनुसार लगाने लगते हैं। इसके अलावा, पिछले एक साल में कई व्यापारी माल लेकर फरार हो गए। संगठित न होने और छोटी पूंजी के चलते सरकार भी ध्यान नहीं देती है।

मांग में कमी से 90 फीसदी काम ठप

500 कारीगरों की जगह, केवल 50 कारीगरों से चल रहा है काम

30-40 लाख रुपये सालाना कारोबार सिमट कर 1 से 1.5 लाख रुपये रह गया

मंदी और चीनी बाजार से कड़ी टक्कर

धारावी की करीब 25 फीसदी इकाइयां बंद

First Published : December 15, 2008 | 11:44 PM IST