आर्थिक संकेतकों के बदलाव में होगी और देरी

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 15, 2022 | 8:21 PM IST

कोरोनावायरस के कारण आई मंदी की वजह से 2020-21 में उपभोक्ता व्यय सर्वे कराने की सरकार की योजना पटरी से उतर गई है। इससे देश के व्यापक आर्थिक संकेतकों में बदलाव की कवायद में और देरी होगी, जिनके आंकड़ों की गुणवत्ता को लेकर सवाल उठ रहे हैं।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक और जीडीपी के आधार वर्ष को क्रमश: 2011-12 और 2012 से बदला जाना 2017-18 के उपभोक्ता व्यय सर्वे के परिणामों पर निर्भर था, जिसे सरकार ने हाल में छोड़ देने का फैसला किया है। इसके अलावा महामारी की वजह से फील्ड सर्वे में भी चुनौतियां आ रही हैं और इस बात को लेकर चिंता है कि मौजूदा साल को सामान्य आर्थिक साल के रूप में नहीं माना जा सकता है।
आधार वर्ष में बदलाव की प्रक्रिया के तहत 5 साल में बदलाव की सिफारिश की गई है, जिससे खर्च करने के तरीके में ढांचागत बदलावों को शामिल किया जा सके। बहरहाल यह सामान्य आर्थिक वर्ष होना चाहिए। सरकार ने इसके पहले आधार वर्ष 2011-12 की जगह 2017-18 करने का फैसला किया था। अगर 2021-22 या 2022-23 में सर्वे किया जाता है तो  आधार वर्ष में बदलाव 2025-26 में ही होने की संभावना है और 15 साल से ज्यादा समय के बाद इसमें बदलाव हो सकेगा।
भारत के पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद प्रणव सेन, जो इस समय भारतीय सांख्यिकी की गुणवत्ता सुधार समिति के प्रमुख हैं, ने बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत में कहा कि सीपीआई और जीडीपी ‘गंभीर रूप से पुराने’ पड़ गए हैं और इनमें बदलाव की जरूरत है।
उन्होंने कहा, ‘2011-12 के आधार पर जीडीपी पहले ही बहुत पुरानी है। इसमें 2017-18 रे आसपास बदलाव किया जाना चाहिए था, और यही वजह है कि उपभोक्ता व्यय सर्वे किया गया था।’ उन्होंने कहा कि 2020-21 में जब सर्वे को पूरी तरह से खारिज किया जा रहा है, सरकार को 2021-22 में ऐसा करना होगा और यह भी देखा जाना है कि यह सामान्य वर्ष होगा या नहीं। सेन  ने कहा, ‘वित्त वर्ष 21 में ऋणात्मक वृद्धि दर रहेगी। लेकिन अगर आप इससे बाहर निकल भी आते हैं तो स्थिति सामान्य होने पर ही आधार वर्ष चुना जा सकता है। आधार में स्थिर अर्थव्यवस्था शामिल होनी चाहिए।’ सेन ने जीडीपी वृद्धि -10.8 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है, जिसमें से पहली तीन तिमाहियों में ऋणात्मक वृद्धि दर रहेगी।
वहीं रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने 2020-21 में देश के इतिहास में सबसे बड़ी मंदी रहने का अनुमान लाया है, जब जीडीपी में 5 प्रतिशत की ऋणात्मक वृद्धि दर दर्ज होगी।
इसके पहले जीडीपी का आधार वर्ष 2004-05 से 2011-12 किया गया था। 2008 के एसएनए दिशानिर्देशों में आधार में हर पांच साल में बदलाव की सिफारिश की गई है। इसके पहले के मामले में जीडीपी का आधार वर्ष 2004-05 से 2009-10 किया जाना था, लेकिन वित्तीय संकट और सूखे के कारण असामान्य वर्ष होने की वजह से 2011-12 के आधार वर्ष बनाया गया।
राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के पूर्व चेयरमैन पीसी मोहन ने कहा कि सभी सांख्यिकी गतिविधियां स्थिर हो गई हैं क्योंकि कोरोनावायरस महामारी के कारण अगले कुछ महीने तक आंकड़े एकत्र करना करीब असंभव है। उन्होंने कहा कि मौजूदा वर्ष सामान्य वर्ष नहीं होगा।
उन्होंने कहा, ‘जीडीपी से कहीं ज्यादा सीपीआई में बदलाव की जरूरत है क्योंकि लोगों के खपत के तरीके बदल गए हैं और इसमें बदलाव जरूरी है। वहीं दूसरी तरफ जीडीपी को लेकर बहुत चिंता की बात नहीं है। इसे मौजूदा आधार वर्ष पर कुछ और समय तक जारी रखा जा सकता है क्योंकि कंपनियों के आंकड़े एमसीए 21 डेटाबेस पर अद्यतन की जा रही हैं।’
राष्ट्रीय खाते में पूरा व्यय उपभोक्ता व्यय सर्वे पर निर्भर होता है। यह ट्रेड, निजी निवेशों, सरकारी व्यय और मांग का संकेतक है।

First Published : June 2, 2020 | 1:09 AM IST