सरकार ने डीजल की कीमत में भले ही 2 रुपये प्रति लीटर की कटौती कर दी है, लेकिन इससे मालभाड़े पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। ट्रांसपोर्टर मालभाड़े में कटौती करने से साफ इनकार कर रहे हैं।
उनका कहना है कि मालभाडे में कमी का सवाल तब उठता जब उनके किराये की दरें निर्धारित होती। ट्रांसपोर्टरों के मुताबिक मंदी के कारण ट्रक के किराये में पहले ही गिरावट आ चुकी है। हालांकि ट्रांसपोर्टर यह भी कह रहे हैं कि लंबी दूरी के मालभाड़ों में 1,000-1,500 रुपये का फर्क आ सकता है।
गत 6 दिसंबर को भी सरकार ने डीजल की कीमत में 2 रुपये प्रति लीटर की कटौती की थी। इस प्रकार दो महीनों में 4 रुपये प्रति लीटर की गिरावट हो चुकी है। ट्रांसपोर्टरों के मुताबिक दिल्ली से मुंबई आने-जाने के लिए एक ट्रक को 700 लीटर डीजल की जरूरत होती है।
इस हिसाब से 2 रुपये प्रति लीटर की कटौती से उन्हें 1,400 रुपये की बचत होगी। लेकिन ट्रांसपोर्टर मालभाड़े में किसी कटौती की घोषणा नहीं करने जा रहे हैं।
ऑल इंडिया मोटर कांग्रेस के अध्यक्ष एचएस लोहारा कहते हैं, ‘सरकार का यह कदम स्वागत योग्य है लेकिन किराए में कमी इसलिए नहीं होगी क्योंकि यह पहले से ही काफी कम है।’
वे कहते हैं कि 2 रुपये की कटौती के बाद दिल्ली में डीजल की कीमत 30.86 रुपये प्रति लीटर हो गयी जबकि कच्चे तेल की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में वर्ष 2004 के स्तर पर है। इस हिसाब से डीजल की कीमत 21.75 रुपये प्रति लीटर होनी चाहिए।
ट्रांसपोर्टर कहते हैं कि बड़े-बड़े ठेकेदार जिन्होंने डीजल के दाम के आधार पर माल ढुलाई का अनुबंध कर रखा है, उन्हें ही अपने किराये को थोड़ा-बहुत घटाना पड़ सकता है।
फेडरेशन ऑफ संजय गांधी ट्रांसपोर्ट नगर के अध्यक्ष केएस अटवाल कहते हैं, ‘जब रबर की कीमत 137 रुपये प्रति किलोग्राम थी तब एक जोड़ी टायर की कीमत 26000 रुपये थी लेकिन अब रबर की कीमत आधी रह गयी है तब भी टायर 25000 रुपये प्रति जोड़ी बिक रहा है। फिर हम क्यों किराया कम करे?’
वे कहते हैं कि ट्रांसपोर्ट क्षेत्र कोई संगठित क्षेत्र नहीं है। और न ही यहां प्रति किलोमीटर के हिसाब से किराया निर्धारित होता है। मांग अधिक होने पर किराया अधिक हो जाता है और मांग कम होने पर वे काफी कम किराए पर भी सामान उठा लेते हैं।