वियतनाम ने आक्रामक नीति से चीन और वैश्विक कंपनियों को अपनी जमीन की ओर आकर्षित किया है और चाइना प्लस वन रणनीति में उसका प्रदर्शन भारत से बेहतर रहा है।
वियतनाम की सफलता ने भारत में अमेरिका के राजदूत एरिक गार्सेटी का भी ध्यान आकर्षित किया, जिन्होंने इंडो अमेरिकन चैंबर आफ कॉमर्स में दिए अपने हाल के भाषण में कहा कि भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) उस रफ्तार से नहीं आ रहा है, जैसा आना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसके बजाए यह वियतनाम जा रहा है क्योंकि भारत में तमाम नियामकीय व कर संबंधी बाधाएं हैं।
आंकड़ों के मुताबिक कैलेंडर वर्ष 2023 के पहले 11 महीनों के दौरान चीन और हॉन्गकॉन्ग (ग्रेटर चाइना) से वियतनाम में 8.29 अरब डॉलर का निवेश हुआ है। पिछले साल की समान अवधि की तुलना में यह दोगुना है। इसकी वजह से ग्रेटर चाइना, वियतनाम में निवेश करने वाला सबसे बड़ा निवेशक बन गया है और कुल निवेश में उसकी हिस्सेदारी 30 प्रतिशत से ज्यादा हो गई है।
वियतनाम सरकार के आंकड़ों के मुताबिक नई परियोजनाओं में विदेशी निवेश के हिसाब से देखें तो जनवरी से सितंबर 2023 के दौरान नई परियोजनाओं में चीन की हिस्सेदारी 21 प्रतिशत रही, जो सबसे अधिक है।
अमेरिका और चीन के संबंधों में तनाव के कारण चीन की आपूर्ति श्रृंखलाएं ऐसे देश में जाने पर विचार कर रही हैं, जिनके अमेरिका के साथ बेहतर संबंध हैं। वियतनाम इस अवसर का लाभ उठा रहा है। भारत का भी चीन के साथ सीमा पर टकराव है, ऐसे में उसने चीनी निवेश को लेकर अपने दरवाजे बंद कर रखे हैं। कड़े एफडीआई नियमों के कारण चीन से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का प्रवाह कम हुआ है।
वित्त वर्ष 2023 में भारत में आने वाला चीनी FDI गिरकर महज 1.05 करोड़ डॉलर रह गया, जो 10 साल का निचला स्तर है। हॉन्गकॉन्ग से प्रवाह भी वित्त वर्ष 2023 में घटकर 7.84 करोड़ डॉलर रह गया, जो वित्त वर्ष 2023 में 34.4 करोड़ डॉलर था।
चीन से ठिकाना बदल रही गैर चीनी कंपनियों का मिला-जुला रुख है। जापान एक्सटर्नल ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन के एक अध्ययन के मुताबिक सितंबर 2022 तक जापान की 60 प्रतिशत कंपनियां अगले 1-2 साल में वियतनाम में अपने कारोबार का विस्तार करने की योजना बना रही थीं। लेकिन रोडियम ग्रुप की रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि चीन से निवेश हटा रहीं अमेरिका और यूरोप की कंपनियां विकासशील देशों में जा रही हैं और भारत को बड़ी मात्रा में इस पूंजी का हिस्सा मिल रहा है। उसके बाद मैक्सिको और वियतनाम का स्थान है। 2021 की तुलना में 2022 में भारत में नया निवेश 60 अरब डॉलर या 400 प्रतिशत बढ़ा है।
महत्त्वपूर्ण हाईटेक क्षेत्रों में चीन के विकल्प के रूप में भारत तेजी से वियतनाम की बराबरी कर रहा है, यहां तक कि मोबाइल फोन के मामले में भी मुकाबला कर रहा है, जहां वह वियतनाम से 15 साल पीछे है।
जनवरी से नवंबर 2023 के बीच वियतनाम का मोबाइल फोन और उसके पुर्जों का निर्यात करीब 48 अरब डॉलर का रहा है, जिसमें प्रमुख हिस्सेदारी सैमसंग की थी। सैमसंग ने 2009 में चीन से अपना कारोबार वियतनाम में स्थापित करना शुरू किया था।
भारत का 2019 में मोबाइल का निर्यात बहुत मामूली था। लेकिन अब यह 2023 में बढ़कर 14 अरब डॉलर हो गया है, जिसमें ऐपल की प्रमुख भूमिका है। यह 2022 में 9.4 अरब डॉलर था। वहीं वियतनाम का निर्यात नवंबर 2023 तक पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 6 अरब डॉलर कम हुआ है।
आईसीईए के मुताबिक वित्त वर्ष 2024 के दौरान भारत का कुल मिलाकर उत्पादन मूल्य (घरेलू और निर्यात) 50 अरब डॉलर पहुंच जाएगा, जो पहली बार वियतनाम से अधिक होगा। मात्रा से हिसाब से भारत पहले ही वियतनाम से आगे बढ़ चुका है और वह दूसरे स्थान पर है।
कुल मिलाकर इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात के हिसाब से देखें तो भारत को अभी बहुत कुछ करना है। एएनजेड ग्रिंडलेज के मुताबिक कैलेंडर वर्ष 2022 में वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात में वियतनाम की हिस्सेदारी 4.1 प्रतिशत रही है। भारत की हिस्सेदारी 0.5 प्रतिशत से भी कम है। भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात 27.2 अरब डॉलर रहा है।
सरकार इसे चुनौती के रूप में ले रही है। उसका मकसद वित्त वर्ष 2026 तक इलेक्ट्रॉनिक्स का उत्पादन बढ़ाकर 300 अरब डॉलर करना है, जिसमें से 130 अरब डॉलर निर्यात से आएगा।