वर्ष 2024 में रुपया लगभग 3 प्रतिशत तक कमजोर हुआ और ऐसी आशंका है कि रुपये पर अभी दबाव बना रहेगा क्योंकि बिज़नेस स्टैंडर्ड के 10 प्रतिभागियों वाले सर्वेक्षण के मुताबिक रुपया मार्च के अंत तक करीब 86 प्रति डॉलर के करीब कारोबार करेगा। अमेरिका के फेडरल रिजर्व द्वारा कम दर कटौती की संभावना से भी डॉलर में मजबूती आ सकती है और यह रुपये की भविष्य की दिशा तय करने वाला प्रमुख कारक रहेगा। कुछ प्रतिभागियों को उम्मीद है कि मार्च के अंत तक रुपया करीब 87 प्रति डॉलर के करीब कारोबार करेगा।
2025 के कारोबारी सत्र में रुपया 85.65 प्रति डॉलर के नए निचले स्तर पर पहुंच गया। पिछले तीन महीने से रुपये पर दबाव बना हुआ है और दिसंबर में 22 कारोबारी सत्रों में से 14 कारोबारी सत्रों में अब तक के सबसे निचले स्तर पर बंद हुआ। आईएफए ग्लोबल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) अभिषेक गोयनका कहते हैं, ‘उम्मीद है कि डॉलर मजबूत होगा क्योंकि फेडरल रिजर्व ने 2025 में कम दर कटौती के संकेत दिए हैं।’
गोयनका ने कहा, ‘ऐसा लगता है कि आरबीआई अब चाहता है कि रुपया खुद ही सतही स्तर पर जाकर ठहर जाए क्योंकि इससे वृद्धि को समर्थन मिलेगा। दूसरी तिमाही का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का आंकड़ा बेहद निराशाजनक था। वृद्धि, निर्यात और विनिर्माण बढ़ाने के लिए अच्छा प्रदर्शन करने की जरूरत है और ऐसा होने के लिए यह आवश्यक होगा कि रुपया अन्य एशियाई मुद्राओं विशेषतौर पर चीन की मुद्रा युआन की तुलना में प्रतिस्पर्द्धी बना रहे।’
आरबीआई, मूल्यह्रास धीरे-धीरे हो यह सुनिश्चित करने के प्रयास के साथ ही विदेशी मुद्रा बाजार के सभी तीन क्षेत्रों में बड़ा हस्तक्षेप कर रहा है। हालांकि सख्त रवैया उलटा भी पड़ सकता है अगर ट्रंप प्रशासन के तहत अमेरिका द्वारा आयात पर शुल्क लगाए जाने की प्रतिक्रिया में दूसरे देशों के अन्य केंद्रीय बैंक अपनी मुद्रा को कमजोर होने देंगे। वह कहते हैं, ‘इसका नतीजा यह होगा कि रुपये का अधिक मूल्यांकन होगा और घरेलू मौद्रिक नीतियों में सख्ती बरतने से इस प्रक्रिया में वृद्धि के लिए जोखिम की स्थिति बनेगी।’
यूरोपियन सेंट्रल बैंक (ईसीबी), बैंक ऑफ इंगलैंड (बीओई) और पीपल्स बैंक ऑफ चाइना (पीबीओसी) जैसे प्रमुख केंद्रीय बैंक उदार रुख अपना सकते हैं क्योंकि उनकी अर्थव्यवस्थाओं को वृद्धि के मोर्चे पर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। सर्वेक्षण में शामिल लोगों का कहना है कि अमेरिका के फेडरल रिजर्व और अन्य केंद्रीय बैंकों के बीच मौद्रिक नीति में यह अंतर डॉलर की मूल्य वृद्धि के रुझान को बरकरार रखने की उम्मीद है।
छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की मजबूती को मापने वाला डॉलर सूचकांक 108 के स्तर से ऊपर कारोबार कर रहा है। अमेरिका की दर निर्धारित करने वाले पैनल ने 2025 में दर में 50 आधार अंक की कटौती का अनुमान लगाया है। इसके बाद 2026 में एक और कटौती होगी। 2024 में 100 आधार अंक कटौती के साथ फेडरल रिजर्व द्वारा 2026 के मध्य तक दर समायोजन को टालने की संभावना है। बाकी भविष्य से जुड़े फैसले 20 जनवरी को डॉनल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति का पदभार ग्रहण करने के बाद की परिस्थितियों पर निर्भर होंगे।
डॉलर की मजबूती के साथ ही मौजूदा वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही के दौरान भारत के भुगतान शेष (बीओपी) में तेज गिरावट की आशंका है जिसके चलते आगे रुपये पर और दबाव बढ़ेगा। आरबीआई के हस्तक्षेप के परिणामस्वरूप घरेलू बाजार में नकद रुपये में काफी कमी आई है। नकदी में सख्ती के चलते एक रात की दरें सीमांत स्थायी सुविधा (एमएसएफ) दर के करीब पहुंच गईं जो अल्पकालिक स्तर पर फंडिंग में दबाव वाली परिस्थितियों के संकेत देता है।
सर्वेक्षण में शामिल लोगों का कहना है कि रुपये को तेज रफ्तार से समायोजित करने की अनुमति दिए जाने से अधिक मूल्यांकन का दबाव कम करने में मदद मिलेगी और इससे विदेशी मुद्रा भंडार और घरेलू अंतरबैंक नकदी दोनों पर दबाव कम होगा। आईडीएफसी फर्स्ट बैंक की मुख्य अर्थशास्त्री गौरा सेन गुप्ता का कहना है, ‘रुपये पर मूल्यह्रास दबाव, वित्त वर्ष 2025 की तीसरी तिमाही में डॉलर की मजबूती और भारत के भुगतान शेष के नकारात्मक होने के संकेत देता है।’
पिछले तीन महीने में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में लगभग 60 अरब डॉलर की गिरावट आई है क्योंकि आरबीआई ने अस्थिरता को रोकने के लिए विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप किया था। मुद्रा भंडार ने सितंबर के अंत में 705 अरब डॉलर के स्तर को छू लिया जो अब तक का सबसे ऊंचा स्तर है।
20 दिसंबर को भारत का 644.4 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार दुनिया में चौथे स्थान पर है। विदेशी मुद्रा भंडार ने सितंबर महीने के आखिर तक देश के बाहरी कर्ज का 99 फीसदी या करीब एक वर्ष तक की व्यापारिक वस्तुओं के आयात को कवर किया है।