बैंकों ने रुपये में अंतरराष्ट्रीय व्यापार के निपटान को लेकर चिंता जताई है। इस मामले से जुड़े लोगों ने कहा कि बैंकों को डर है कि इस तरह की व्यवस्था होने पर उन्हें पश्चिमी देशों की ओर से आर्थिक प्रतिबंध का सामना करना पड़ सकता है।
विदेश में काम करने वाले बड़े बैंकों ने इस सिलसिले में भारतीय रिजर्व बैंक से स्पष्टता और आश्वासन की मांग की है कि वे रूस जैसे प्रतिबंध झेल रहे देशों के साथ रुपये में कारोबार की सुविधा देने की वजह से प्रतिबंधों के निशाने पर नहीं आएंगे। मौजूदा भुगतान व्यवस्था पहले की इस तरह की व्यवस्था से अलग है, जैसा कि प्रतिबंध प्रभावित ईरान के साथ किया गया था। उस व्यवस्था में ऐसे बैंक निपटान की सुविधा देते थे, जिनका प्रतिबंधित देश के साथ कारोबार नहीं था।
शीर्ष बैंकरों ने वाणिज्य मंत्रालय, वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग के साथ वित्तीय सेवा विभाग के साथ कई दौर की चर्चा की है, जिससे इस मसले में आ रही शुरुआती चुनौतियों से निपटा जा सके। उन्होंने विदेश मंत्रालय के शीर्ष सरकारी अधिकारियों से भी मुलाकात की, जिसमें उपरोक्त उल्लिखित अधिकारियों में से एक शामिल थे। एक बैंकर ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘बैंक रूस के साथ लेन-देन को लेकर आशंकित हैं, क्योंकि उन्हें प्रतिबंधों की तपिश झेलनी पड़ सकती है। बड़े बैंक जैसे भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की विदेश में बैंकिंग संपत्तियां हैं। उन्हें चिंता है कि अगर इस तरह के कारोबार की सुविधा दी जाती है तो उनके विदेश के बैंकिंग परिचालन को लेकर भविष्य में दिक्कत आ सकती है।’
पिछले महीने रिजर्व बैंक ने एक व्यवस्था की पेशकश की थी, जिसके तहत अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लेनदेन का निपटान रुपये में किया जा सकता है, जिससे वैश्विक कारोबार को प्रोत्साहन मिले। इसमें भारत से निर्यात पर विशेष जोर दिया गया है। बैंकों इस तरह के लेन देन की मंजूरी के लिए अनुमति लेनी होगी और दो कारोबारी साझेदार की मुद्राओं की दर बाजार द्वारा तय होगी।