बैंकों के पास भरपूर नकदी है और लॉकडाउन के दौरान कर्ज की मांग भी सुस्त है, इसलिए वे महंगाई बढऩे के बावजूद जमाओं पर ब्याज दरें बढ़ाने की जल्दबाजी में नहीं हैं। दरों में बदलाव इस महीने के अंत तक लघु बचत योजनाओं पर सरकार के फैसले पर निर्भर करेगा। सार्वजनिक बैकों के लिए खास तौर पर यही पैमाना होगा।
अप्रैल में लघु बचत योजनाओं की दरें पहली तिमाही (वित्त वर्ष 2022) के लिए 50 से 100 आधार अंक घटाई गई थीं, लेकिन सरकार ने चार राज्यों में विधानसभा चुनावों के काररण तत्काल फैसला वापस ले लिया।
बैंक ऑफ महाराष्ट्र के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी ए एस राजीव ने कहा कि वित्त वर्ष 2022 की पहली तिमाही के दौरान बैंक की बचत जमाओं में 4-5 फीसदी बढ़ोतरी हुई है। ऐसा लगता है कि लोगों ने अप्रैल से कोविड महामारी के दौरान पैसा बचाने को प्राथमिकता दी है। उन्होंने कहा कि दूसरी तिमाही में ऋण वृद्धि में अहम इजाफा होने पर ही बैंक जमाकर्ताओं को लुभाने के लिए दरें बढ़ाने के बारे में विचार कर सकते हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के आंकड़ों के मुताबिक जून, 2021 की शुरुआत तक जमाओं में सालाना आधार पर वृद्धि 9.7 फीसदी रही है, जबकि ऋण वृद्धि महज 5.7 फीसदी रही। पिछले साल इसी समय तक जमाएं 11.3 फीसदी और ऋण 6.2 फीसदी बढ़ा था।
महामारी को नियंत्रित करने के लिए लॉकडाउन के कारण मांग में अहम कमी आने से ऋण/जमा अनुपात में वित्त वर्ष 2021 के दौरान अहम गिरावट आई। यह मार्च, 2020 में 76 पर था, जो मार्च, 2021 में घटकर 71.5 पर आ गया। शायद यह इस बात का संकेत है कि बैंकों के ज्यादा पैसा जुटाने के लिए जमा दरें बढ़ाने से पहले कर्ज की मांग में बढ़ोतरी को पचाने की गुंजाइश है। बैंकरों ने कहा कि बैंकों के लिए पहली प्राथमिकता ऋण दरों को बढ़ाना हो सकती है। उसके बाद ही वे जमा दरें बढ़ाने के बारे में विचार कर सकते हैं।
आरबीआई के बुलेटिन (जून 2021) के मुताबिक मार्च 2020 से मई 2021 के दौरान सभी अवधियों की नई जमाओं पर मीडियन टर्म डिपॉजिट रेट (एमटीडीआर) में 144 आधार अंक की गिरावट आई है। सावधि जमा दरों में कटौती सबसे अधिक विदेशी बैंकों और उनके बाद निजी बैंकों ने की है। लोगों की कर्ज की मांग कम है, इसलिए बैंक आरबीआई के पास 3.35 फीसदी दर पर पैसा रख रहे हैं, जबकि जमा और रकम संभालने पर 4-5 फीसदी की औसत लागत आती है। इस तरह बैकों को आरबीआई के पास रकम रखने में नुकसान होता है।