मौद्रिक नीति निर्धारण करने वाली सर्वोच्च इकाई मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के सदस्यों का मत है कि आर्थिक रिकवरी हो रही है लेकिन मुद्रास्फीति के मोर्चे पर बाहरी कारक बड़ा जोखिम पैदा कर रहे हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के अधीन गठित एमपीसी के छह सदस्यों ने तीन दिनों तक चली चर्चा के बाद नीतिगत ब्याज दरों को यथावत रखने का फैसला किया। रीपो दर 4 फीसदी के स्तर पर बनी हुई है तो रिवर्स रीपो 4.35 फीसदी बना हुआ है। वहीं आरबीआई का रुख भी पहले की तरह उदार बना हुआ है।
आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि केंद्रीय बैंक जहां उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) को 4 फीसदी पर रखने के लिए कृत-संकल्प है वहीं पिछले डेढ़ साल में उसने वृद्धि की बहाली एवं वित्तीय स्थिरता बनाए रखने को प्राथमिकता दी है।
आरबीआई गवर्नर ने उम्मीद जताई कि अर्थव्यवस्था में जारी सुस्ती के बीच चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में आउटपुट कोविड-पूर्व के स्तर पर पार कर जाएगा। दास ने कहा, ‘रिकवरी जोर पकड़ रही है और कुल मांग भी बढ़ रही है लेकिन अब भी अर्थव्यवस्था महामारी से पहले के स्तर से नीचे ही है।’
आरबीआई गवर्नर ने कहा, ‘विनिर्माण एवं सेवा क्षेत्रों में टिकाऊ रिकवरी से अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में बहाली को समर्थन मिलना चाहिए। हालांकि वृद्धि का भावी रास्ता कई चुनौतियों से भरपूर है जिसमें महामारी सबसे अहम है। कुल मिलाकर वृद्धि अब भी नीतिगत समर्थन पर निर्भर है और रिकवरी बनाए रखने के लिए समर्थन की भी जरूरत है। इस संदर्भ में सतत मौद्रिक समर्थन आवश्यक है क्योंकि आर्थिक रिकवरी की प्रक्रिया अब भी नाजुक मोड़ पर है और वृद्धि को अपनी जड़ें जमानी हैं।’ उन्होंने कहा कि इस महत्त्वपूर्ण मोड़ पर हमारे कदम क्रमिक, सोचे-समझे, सही समय पर और सही संदेश देने वाले होने चाहिए ताकि किसी भी तरह के अनचाहे आश्चर्यों से बचा जा सके। आरबीआई के डिप्टी गवर्नर माइकल पात्रा ने कहा कि आगे चलकर खाद्य कीमतों के कम होने से मुद्रास्फीति में नरमी आनी चाहिए लेकिन केंद्रीय बैंक को बार-बार लगने वाले झटकों से सजग रहना चाहिए। संक्रमणकालीन आघातों से अधिक स्थायी प्रवृत्ति वाले झटके नहीं पैदा होने चाहिए। हालांकि एमपीसी की इस राय से असहमति जताने वाले सदस्य जयंत आर वर्मा रिवर्स रीपो में बढ़ोतरी के पक्ष में थे और उन्होंने उदार रुख बनाए रखने का विरोध भी किया। उन्होंने कहा कि दुनिया भर में हरित ऊर्जा की तरफ कदम बढ़ाने से उसी तरह के ऊर्जा मूल्य आघात पैदा होने का जोखिम है जैसा 1970 के दशक में देखने को मिला था। इसके अलावा चीन में वित्तीय क्षेत्र से जुड़ी समस्याएं पैदा होने से वैश्विक वृद्धि के लिए भी जोखिम पैदा हो सकते हैं।
आरबीआई के कार्यकारी निदेशक एवं मौद्रिक नीति विभाग के प्रमुख मृदुल के सागर ने भी वैश्विक वृहत-आर्थिक परिस्थितियों में बदलाव होने से बड़े तूफान आने को लेकर आगाह किया। उन्होंने कहा कि इन वैश्विक नीतियों का व्यापार, वित्तीय एवं बाजार प्रत्याशा के लिए खासा असर हो सकता है। हालांकि उन्होंने यह विश्वास भी जताया कि इन झटकों का सामना करने के लिए भारत के पास पर्याप्त बफर है।