नियमन के दायरे में आने वाली वित्तीय इकाइयों के साथ साझेदारी या सीधे उधारी में शामिल बिगटेक नियामकीय चिंता बढ़ा रहे हैं। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने मंगलवार को अपनी एक रिपोर्ट ‘2020-21 में भारत के बैंकिंग की धारणाएं और प्रगति’ में कहा है कि इसमें गतिविधि आधारित और इकाई आधारित नियमन का मिश्रण हो रहा है और यह संभवत स्थिरता, एक समान कारोबार और उपभोक्ता संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए नियमन के हिसाब से पर्याप्त नहीं होगा।
रिपोर्ट में रिजर्व बैंक ने कहा है, ‘तमाम बड़े बहुराष्ट्रीय कॉर्पोरेशन, जिनका प्राथमिक कारोबार टेक्नोलॉजी में है, उन्हें लोकप्रिय रूप से बिगटेक के रूप में जाना जाता है, उन्होंने या तो सीधे या नियमन के दायरे में आने वाली वित्तीय इकाइयों के साथ मिलकर उधारी शुरू कर दी है।’
केंद्रीय बैंक ने कहा, ‘यहां तक कि परंपरागत इकाई आधारित नियामकीय उपाय के साथ गतिविधि आधारित नियमन मजबूत किया जाना भी संभवत: स्थिरता, एक समान काम के अवसर उपलब्ध कराने, और ग्राहकों को संरक्षण देने के हिसाब से पर्याप्त नहीं होगा। वित्तीय सेवाओं में डिजिटल चैनलों का इस्तेमाल जहां स्वागत योग्य कदम है, इस तरह की संभावित तकनीकों में निचले स्तर के जोखिम के समाधान की जरूरत है।’
रिजर्व बैंक के एक कार्यसमूह को नियमन के दायरे में आने वाले वित्तीय क्षेत्र में डिजिटल उधारी के साथ नियमन के दायरे में न आने वाली इकाइयों की उधारी पर अध्ययन का काम सौंपा गया था, जिसने अपनी रिपोर्ट में बिगटेक कारोबारियों को लेकर सावधानी बरतने की बात कही थी, जो डिजिटल उधारी के क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं। कार्यसमूह ने कहा था कि इसके नियामकीय असर हो सकते हैं और प्रतिस्पर्धा को जोखिम भी हो सकता है। ऐसे में रिजर्व बैंक को ऐसे ढांचे पर काम करने की जरूरत है, जो जोखिम को चिह्नित कर उसका प्रबधन करे, जो बिग टेक के साथ ब्लॉकचेन तकनीक के माध्यम से विकेंद्रीकृत वित्त व्यवस्था की वजह से उभर रहा है। उसके बाद रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में यह कहा गया है।
रिजर्व बैंक ने अपनी द्विवर्षीय वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में उभरते बाजारों जैसे भारत की वित्तीय सेवाओं में बिगटेक को लेकर आगाह किया है। इस साल जुलाई में जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि बिगटेक की वजह से कम से कम 3 अनोखी चुनौतियां सामने आ रही हैं। पहली, वे व्यापार की कई अलग (गैर वित्तीय) लाइनों के कारोबार में रहती हैं, जो अपारदर्शी प्रशासनिक ढांचे के मुताबिक चलते हैं। दूसरे, वित्तीय सेवा क्षेत्र में उनके प्रभुत्व की स्थिति में आने की संभावना है। तीसरे, बिगटेक आमतौर पर नेटवर्क प्रभावों का लाभ उठाकर वित्तीय सेवा के प्रावधानों में सीमा पार करने में सामन्यतया सक्षम होती हैं।अहम है कि गूगल, एमेजॉन और व्हाट्सऐप जैसी बिगटेक पहले ही भारत की भुगतान व्यवस्था में सक्रिय हैं और वे यूनीफाइड पेमेंट्स इंटरफेस के माध्यम से जुड़ी हैं।
इसके पहले रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर टी रवि शंकर ने इस साल अक्टूबर महीने में एक भाषण में कहा था कि इस तरह की इकाइयों के नियमन का तरीका तैयार करने की जरूरत है। इस तरह की समान गतिविधियों में एक तरह की इकाई आधारित नियमन का तरीका स्वीकार करने की जरूरत है, वहीं गतिविधि आधारित नियमन संभवत: इकाई आधारित नियमन की तुलना में कम प्रभावी होगा, जब बिगटेक फर्म की गतिविधियों को देखते हैं। हरहाल बैंकिंग नियामक ने भी सुझाव दिया है कि पेमेंट बैंक, लिवरेजिंग तकनीक का इस्तेमाल कर जो समाज के कम सुविधा वाले सेग्मेंट को बुनियादी बैंकिंग सेवाएं प्रदान करते हैं, उनके मुनाफे में गिरावट आई है, क्योंकि बिगटेक की ओर से उनके ऊपर नवाचार बढ़ाने और प्रतिस्पर्धा बनाए रखने का दबाव पड़ रहा है।