भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक 9 सितंबर को समाप्त पखवाड़े में बैंकिंग व्यवस्था में ऋण वृद्धि पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 16.2 प्रतिशत रही है, जो कई साल का उच्च स्तर है। इसके पहले 16 प्रतिशत वृद्धि दर नवंबर 2013 में दर्ज की गई थी।
चालू वित्त वर्ष में अब तक बैंकों ने 6.5 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा ऋण दिया है, जिसमें 5.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में ऋण में 0.3 प्रतिशत की कमी आई थी। विश्लेषकों का कहना है कि त्योहारों के मौसम के कारण कर्ज की मांग तेज बनी रहेगी, लेकिन व्यवस्था में नकदी कम होगी क्योंकि ग्राहक इस अवधि के दौरान ज्यादा नकदी रखना चाहेंगे।
मैक्वैरी रिसर्च के सुरेश गणपति और परम सुब्रमण्यन ने हाल की अपनी रिपोर्ट में कहा है, ‘हम उम्मीद करते हैं कि कर्ज की मांग ज्यादा बनी रहेगी औऱ वित्तीय व्यवस्था में कर्ज की वृद्धि करने के लिए संसाधनों की कमी रहेगी। इसी क्रम में हमारा मानना है कि जमा दरों पर आने वाले कुछ महीनों के दौरान दबाव रह सकता है।’
मैक्वैरी रिसर्च की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘कार्यशील पूंजी का इस्तेमाल का स्तर भी ऊपर गया है। कर्ज की बढ़ी मांग का एक अहम हिस्सा महंगाई से जुड़ा है। बैंकर भी अक्षय ऊर्जा, सीमेंट, स्टील आदि जैसे चुनिंदा क्षेत्रों में पूंजीगत व्यय को बढ़ावा दे रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों के दौरान पूंजीगत व्यय की मांग कमजोर रही है, लेकिन हम वित्त वर्ष 23 की पहली छमाही में पूंजीगत व्यय संबंधी ऋण वृद्धि के शुरुआती संकेत पा रहे हैं।’
मोतीलाल ओसवाल की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले कुछ वर्षों में ऋण में वृद्धि जहां खुदरा क्षेत्र द्वारा संचालित रही है, वहीं कॉरपोरेट क्षेत्र में तेजी के मजबूत संकेत मिल रहे हैं। कॉरपोरेट ऋण मुख्य रूप से कार्यशील पूंजी जरूरतों से संचालित होता है क्योंकि निजी पूंजीगत व्यय अभी भी कुछ तिमाही दूर है।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘कॉरपोरेट ऋण धीरे धीरे बढ़ेगा, वहीं खुदरा और एमएसएमई ऋण वृद्धि के मुख्य चालक बने रहेंगे। आवास और असुरक्षित ऋण लगातार खुदरा ऋण वृद्धि को मजबूत बनाए रहेंगे।’अब लगातार 3 पखवाड़ों से ऋण वृद्धि 15 प्रतिशत से ज्यादा बनी हुई है। इससे मांग में टिकाऊ तेजी के संकेत मिलते हैं। 26 अगस्त और 12 अगस्त को समाप्त पखवाड़े में बैंकिंग ऋण में वृद्धि क्रमशः 15.5 प्रतिशत और 15.3 प्रतिशत रही है।
बहरहाल जमा में वृद्धि की दर बड़े अंतर से पिछड़ रही है। बैंकिंग व्यवस्था में जमा 9 सितंबर को समाप्त पखवाड़े में पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 9.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। ऋण-जमा अंतर बढ़कर अब 670 आधार अंक हो गया है। इससे सुस्त जमा दर को लेकर चिंता बढ़ सकती है, जो ऋण वृद्धि की राह में सबसे बड़ी बाधा बन सकता है।
व्यवस्था में नकदी की कमी हो रही है, ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि बैंक आक्रामक रूप से धन जमा कराने की कवायद करेंगे, जिससे व्यवस्था में कर्ज की माग को समर्थन मिल सके।
यह भी उम्मीद की जा रही है कि जमा दरों में बढ़ोतरी की जाएगी। इस सप्ताह की शुरुआत में बैंकिंग व्यवस्था में नकदी तीन साल में पहली बार घाटे की स्थिति में पहुंच गई, जिससे अर्थव्यवस्था की ढीली वित्तीय स्थिति से ढांचागत बदलाव के संकेत मिलते हैं।
इस साल अप्रैल महीने से ही ऋण में वृद्धि लगातार जारी है, भले ही रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति सख्त कर रहा है। इस साल मई से अब तक 6 सदस्यों वाली मौद्रिक नीति समिति ने बेंचमार्क रीपो रेट में 140 आधार अंक की बढ़ोतरी की है। इसी अनुपात में बैंकों ने ऋण पर ब्याज दरें बढ़ा दी हैं।